कानपूर: ऑस्टियो ऑर्थराइटिस जैसी लाइलाज बीमारी के इलाज में आईआईटी कानपुर ने बड़ी सफलता हासिल की है. संस्थान के वैज्ञानिकों ने कुछ दवाओं के मॉलिक्यूल तैयार कर इंसानों के डेड कार्टिलेज पर प्रयोग किए तो बेहतर परिणाम सामने आए. डेड कार्टिलेज में कोशिकाएं उगाने के बाद इसमें मॉलिक्यूल का प्रयोग किया गया, फिर हानिकारक वातावरण में रखा गया. इसके बावजूद कार्टिलेज की कोशिकाओं को नुकसान नहीं हुआ. यही नहीं, मैट्रिक्स ब्रेक डाउन के पदार्थों की मात्रा भी काफी कम रही. वैज्ञानिक अब ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के शिकार कुछ मरीजों पर इस मॉलिक्यूल के प्रयोग की तैयारी कर रहे हैं. इससे पहले मॉलिक्यूल का इस्तेमाल बकरों के डेड घुटनों पर किया गया था, जिसके परिणाम भी बेहतर मिले थे. आईआईटी के जैविक विज्ञान और बायो इंजीनियरिंग विभाग के एचओडी प्रो. धीरेंद्र एस कट्टी के साथ शोध टीम में डॉ. अरिजीत भट्टाचार्य और डॉ. निहाल सिंह समेत कई वैज्ञानिक शामिल हैं. डॉ. कट्टी के मुताबिक जल्द ही ऑस्टियो ऑर्थराइटिस से ग्रसित मरीजों पर मॉलिक्यूल का प्रयोग किया जाएगा. इंसानों के डेड कार्टिलेज जीएसवीएम कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. प्रग्नेश कुमार ने वैज्ञानिकों को कोरोना काल से पहले उपलब्ध कराए थे.
इस तरह किया शोध: शोध में वैज्ञानिकों ने 14 से ज्यादा डेड कार्टिलेज के सैंपल लिए. लैब में कोशिकाएं उगाईं और उसमें एससीएमसी-टिम्प 3 (सल्फेटेड कार्बोक्सी मिथाइल सेल्यूलोज एवं टिश्यू इन्हिबिटर ऑफ मेटालोप्रोटीनेस-3) मॉलिक्यूल से इलाज किया. इसके प्रयोग में पाया कि डेड कार्टिलेज में कोशिकाएं मरी नहीं और इन्हें बांधे रखने वाले मैट्रिक्स का क्षरण भी न के बराबर मिला.
कुछ घरेलू उपचार:
● एप्पल साइडर विनेगर
● अदरक का इस्तेमाल
● सरसों का तेल
● हल्दी भी फायदेमंद
● लहसुन का उपयोग
कैसे पा सकते हैं राहत: खाने में सुधार से यह बीमारी ठीक नहीं होती है पर दिक्कतें कम जरूर की जा सकती हैं. एंटी इन्फ्लेमेटरी आहार से कुछ राहत मिल सकती है. विटामिन ए, सी, और ई का नियमित सेवन जोड़ों में होने वाले नुकसान को कम करता है.
ऑस्टियो ऑर्थराइटिस का अभी तक कोई इलाज नहीं था लेकिन आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने बड़ी उम्मीद जगाई है. यह रिसर्च कार्बोहाइड्रेट पॉलीमर जर्नल में हाल ही में प्रकाशित भी हुई है. -डॉ. प्रग्नेश कुमार, पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज
आस्टियो ऑर्थराइटिस पर हुए शोध के आशाजनक परिणाम मिले हैं. लैब में तैयार मॉलिक्यूल का प्रयोग इंसानों पर किया जाएगा. भविष्य में इस बीमारी का इलाज मिल जाएगा. - प्रो. धीरेंद्र एस कट्टी, एचओडी जैविक विज्ञान और बायोइंजीनियरिंग विभाग आईआईटी कानपुर