सामाजिक समरसता से ही कर सकते हैं मानवीय मूल्यों की रक्षा: चम्पत राय

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Update: 2023-01-16 09:36 GMT
अयोध्या। कारसेवकपुरम् में मकरसंक्रांति पर समरस्ता भोज आयोजित किया गया है। इस मौके पर करीब सात सौ लोगों को खिचड़ी के साथ तिललड्डू, घी, पापड़, दही और अचार परोसा गया। इस मौके पर श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चम्पत राय ने कहाकि समरसता की दृष्टि से यह उत्सव महत्वपूर्ण है। छोटे–छोटे एवं बिखरे हुए तिलों के समान हिंदू समाज को संगठित करना और गुड़ रुपी मिठास लपेटकर प्रेम और अपनत्व का भाव समाहित करना ही, इसे महत्वपूर्ण बनाता है। उन्होंने कहा अकेला कड़ुआ तिल को खाया नहीं जा सकता है। बिना गुड़ को मिलाये वह मीठा नहीं हो सकता है। उसी प्रकार समाज की स्थिति है,अकेले किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। उसके लिये सभी को मिलाना होगा। उन्होंने कहा 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। आज संघ भारत के तीन लाख गांवों में सक्रीय है। पांच लाख गांवों में श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण कायक्रम की व्यापक्तता का आधार संघ परिवार की सामूहिक एक जुटता थी। उन्होंने कहा सामाजिक समरसता से ही हम मानवीय मूल्यों की रक्षा कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगातार 98 वर्षों से लोगों में राष्ट्रभक्ति जगा कर व्यक्तित्व का निर्माण कर रहा है। संघ का मानना है कि समरस समाज के द्वारा ही देश को परम वैभव पर पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऊंच-नीच, छोटे-बड़े का भेद किसी को भी नहीं करना चाहिए। भारत देश में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर का अंश है अर्थात एक है। कहाकि स्नेह आत्मीयता एवं एकात्मकता की अनुभूति एवं व्यवहार के आधार पर एक समरस सुसंगठित, समृद्धि व सभी प्रकार से सुखमय व सुरक्षित समाज की रचना में ऐसे कार्यक्रम माध्यम बनते हैं। उन्होंने कहाकि जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है और दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान करता है, जो अंधकार से प्रकाश की ओर तथा अशुभ से शुभ की ओर का संकेत है। इस अवस पर विहिप केंद्रीय प्रबंध समिति के सदस्य पुरूषोत्तम नारायण सिंह, संघ प्रचारक गोपाल जी, शरद शर्मा, श्रीराम जन्मभूमि पुजारी संतोष जी, प्रधानाचार्य इंद्रेव मिश्रा, गोविंद बंसल, जगदीश आफले, अविनाश संगम, घनश्याम, केएम सिंह, राहुल जी, आदित्य उपाध्याय, धीरेश्वर वर्मा, वीरेंद्र वर्मा, रामशंकर सर्वेश रामायणी, बालचंद, राजा वर्मा, राजेंद्र वर्मा, भूपेंद्र, आचार्य नारद भट्टाराई, दुर्गा प्रसाद अजय विक्रम आदि उपस्थित रहे।
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