हाईकोर्ट का आदेश, प्राइवेट स्कूलों को फीस प्रतिपूर्ति की हर साल समीक्षा हो

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत फ्री शिक्षा देने वाले प्राइवेट स्कूलों की फीस प्रतिपूर्ति की हर साल समीक्षा करने का आदेश दिया है।

Update: 2022-08-31 05:30 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत फ्री शिक्षा देने वाले प्राइवेट स्कूलों की फीस प्रतिपूर्ति की हर साल समीक्षा करने का आदेश दिया है। अभी ऐसे सभी निजी स्कूलों को वर्ष 2013 में नियत साढ़े चार सौ रुपये प्रति छात्र के हिसाब से दिया जाता है। कोर्ट ने कहा कि हर कैलेंडर साल के 30 सितम्बर को सरकारी या स्थानीय निकायों द्वारा संचालित विद्यालयों के कुल छात्र अनुपात को उन पर प्रति वर्ष सरकारी खर्चे से विभाजित करके आने वाली राशि को ध्यान में रखकर प्रतिपूर्ति तय की जाए। यह भी आदेश दिया है कि ऐसे स्कूलों को प्रतिवर्ष नियत प्रतिपूर्ति नियमित रूप से प्रदान की जाए।

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने लखनऊ एजुकेशन एंड ऐस्थेटिक डेवलपमेंट सोसायटी की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया। याची की ओर से दलील दी गई कि सरकार ने आरटीई अधिनियम और इसके तहत 2011 में बने नियमों के तहत 20 जून 2013 को प्रतिपूर्ति नियत किया था, जिसके अनुसार आज भी भुगतान किया जा रहा है।
दलील दी गई कि तब से आज तक हर चीज की कीमतें काफी बढ़ गई हैं। न्यायालय ने अधिनियम और नियमावली के परिशीलन के बाद पाया कि राज्य सरकार को प्रति साल प्रतिपूर्ति की समीक्षा करनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि एक ओर तो सरकार अधिनियम की मंशा के अनुरूप पर्याप्त संख्या में स्कूलों की स्थापना नहीं कर पा रही है, दूसरी ओर जो स्कूल आरटीई के तहत दायित्व निभा रहे हैं, उन्हें फीस की प्रतिपूर्ति में भी नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।
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