झोलाछापों के सहारे लाचार ग्रामीण, सकौती में चिकित्सा सुविधा से महरूम है ग्रामीण
दौराला: शहरी जनता मौजूदा चिकित्सा सेवाओं से किसी तरह काम चला रही है। शहरों में प्राइवेट अस्पताल भी काफी होते हैं, इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं होती। असली दिक्कत होती हैं ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के सामने। गांवों में शहरों की तुलना सरकारी चिकित्सा सेवाओं का कहीं बुरा हाल है। कई गांवों में स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं हैं।
जिन गांवों में हेल्थ सब सेंटर खुले हुए हैं, वहां सुविधाएं नहीं हैं। न तो स्टाफ है और न ही दवाइयां हैं। इस स्थिति में ग्रामीण जनता जाए तो जाए कहां। प्राथमिक चिकित्सा के लिए सिर्फ झोलाछापों का सहारा है। गांवों की ज्यादातर आबादी झोलाछापों पर निर्भर होकर रह गई है। शहर से दूर रहने वाले लोगों के सामने और भी बड़ा संकट है। रात के समय कोई बीमार पड़ जाए तो झोलाछापों के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
चुनाव आते हैं तो नेता आते हैं। नेता आते हैं, तो लगे हाथों वादे भी कर जाते हैं, लेकिन अफसोस ये वादे महज वादे ही रह जाते हैं। कुछ ऐसा ही हाल सकौती गांव का है। गांव विकास से अछूता है। आज भी लोग यहां मूलभूत सुविधाओं के अभाव में त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर सकौती गांव आज भी चिकित्सा सुविधाओं से महरूम है। क्योंकि यहां आज तक कोई भी सरकारी अस्पताल स्थापित नहीं हुआ है।
जो लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। हालांकि अस्पताल की मांग को लेकर यहां के ग्रामीण पहले भी लड़ाई लड़ चुके हैं, लेकिन आज तक इस मांग पर किसी भी अधिकारी या जनप्रतिनिधि ने ध्यान नहीं दिया है। सकौती में एक शुगर मिल, रेलवे स्टेशन स्थापित है। यहां 300 से भी ज्यादा बाहरी मजदूर रह रहे हैं, लेकिन आज तक यहां सरकारी अस्पताल नहीं है।
शाम के बाद कहां जाएं लोग: गांवों में कोई सरकारी अस्पताल नहीं है। स्वास्थ्य संबंधी परेशानी कभी भी हो सकती है। ऐसे में दिक्कत खासकर रात को होती है। सामान्य चोट लगने, सिर दर्द, बुखार या पेट दर्द जैसी पीड़ा होने पर लोगों के पास कोई विकल्प नहीं होता। कई गांव शहरों से काफी दूर हैं। उन लोगों को गांव से शहर तक पहुंचने में घंटों लग जाते हैं। रात को वाहन की सुविधा भी नहीं होती। उस स्थिति में मरीजों को सिर्फ झोलाछापों की शरण लेनी पड़ती है।
योजनाओं की लंबी फेरहिस्त: देश की जनता के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए सरकारों की योजनाओं की लंबी फेरहिस्त है, लेकिन हकीकत यही है कि देश की आम जनता बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं तक से महरूम है। ग्रामीण भारत में तो कोई चिकित्सक काम करने को तैयार भी नहीं है, जबकि देश की आधी से अधिक आबादी गांवों में रहती है। यही वह आबादी है, जिसकी सरकार चुनने में सबसे अधिक भागीदारी है, लेकिन विकास के दूसरे मुद्दों के साथ ही आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाओं से गांवों के निवासी आज भी महरूम हैं।
जमीन भी कराई आवंटन: ग्रामीण प्रशांत चौधरी ने बताया कि जिलाधिकारी से लेकर कमिश्नर तक और सीएमओ तक अस्पताल की फाइल पहुंचा चुके हैं, लेकिन काफी समय बीतने के बावजूद अभी तक कोई भी अस्पताल की स्वीकृति नहींं मिल पाई है। अस्पताल के लिए जमीन भी आवंटन कराई गई, लेकिन उसके बाद भी आज तक कोई भी अस्पताल के लिए काम नहीं हुआ है।
प्रशासन का कराया अवगत: पूर्व प्रधान मुकेश कुमार का कहना है कि कई बार सरकारी अस्पताल के लिए प्रशासन को अवगत करा गया। परंतु कोई सुनवाई नहींं हुई। गांवों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के दावे किए जा रहे हैं। सच्चाई ये है कि गांवों के लोगों तक इन योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता। अधिकारी दफ्तरों में बैठकर आदेश जारी करते हैं। जमीन स्तर पर जाकर कोई जांच ही नहीं करता कि आदेश लागू हो रहे हैं या नहीं।
प्रशासन को सौंपी फाइल: ग्रामीण परवेज अली ने बताया कि सकौती गांव में होम्योपैथिक और एलोपैथिक अस्पताल को लेकर शासन-प्रशासन को फाइल सौंप दी गई है और जमीन भी अधिग्रहण कर दी गई है। जल्द ही सरकारी अस्पताल बनना चाहिए। सरकार योजनाएं तो बहुत शुरू कर रही हैं, लेकिन उन पर काम नहीं हो पाता। कर्मचारियों की मनमानी के कारण लोग लाभ से वंचित रह जाते हैं।
जमीन हो चुकी अधिग्रहण: ग्राम प्रधान पति शैलेंद्र कुमार ने बताया कि जमीन पूरी तरह अधिग्रहण हो चुकी है। 300 मीटर के लगभग जमीन हॉस्पिटल के लिए छोड़ दी गई है। कई दिन बाद अधिकारियों के पास शिकायत भी आते हैं, लेकिन उन पर एक्शन नहीं होता। इस सिस्टम में बदलाव लाने की जरूरत है। तभी कुछ हो सकता है और गांवों में भी शहर जैसी चिकित्सा मिल सकती है। झोलाछाप चिकित्सकों से कुछ मोह तो कम हो सकता है