वैक्सीनेशन के एक साल बाद लोगों में देखी गई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं

30 फीसदी लोग हुए प्रभावित

Update: 2024-05-30 04:41 GMT

वाराणसी: कोविशील्ड के बाद भारत बायोटेक की कोवैक्सीन में भी दुष्प्रभाव पाए गए हैं. आईएमएस बीएचयू के शोधकर्ताओं के दल ने 1024 किशोर और वयस्कों पर एक साल तक अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष दिया है.

अध्ययन में पाया गया कि कोवैक्सीन की डोज लेने के एक साल बाद 30 फीसदी से ज्यादा लोगों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं देखी गईं. इसमें स्किन से जुड़ी दिक्कतों से लेकर स्ट्रोक तक के खतरे शामिल हैं. चिकित्सा जगत के विशिष्ट जर्नल ‘ड्रग सेफ्टी’ में यह अध्ययन प्रकाशित किया गया है.

कोवैक्सीन लगवाने वाले लोगों पर एक साल तक हुए इस अध्ययन में पाया गया कि 30 फीसदी से ज्यादा लोगों में सांस संबंधी संक्रमण, चर्मरोग, एलर्जी और खून का थक्का जमने की परेशानियां हैं. किशोरों में भी कई तरह की दिक्कतें देखी गईं. कोवैक्सीन लेने वाले 635 किशोरों और 291 वयस्कों को अध्ययन में शामिल किया गया था. अध्ययन के दौरान चार लोगों की मौत भी हुई. इनमें तीन महिलाएं और एक पुरुष (सभी वयस्क) थे. इनकी केस स्टडी के मुताबिक चारों मधुमेह से पीड़ित थे और तीन को उच्च रक्तचाप था. दो की मौत स्ट्रोक के कारण हुई, जबकि एक की मृत्यु कोविड टीकाकरण के बाद फैले राइनोसेरेब्रल म्यूकोर्मिकोसिस के कारण हुई. चौथी एक महिला थी जो टीकाकरण के बाद बेहोशी की समस्या से जूझ रही थी, हालांकि उसकी मृत्यु का कारण अज्ञात रहा.

अध्ययन में एईएसआई (विशेष रुचि के प्रतिकूल प्रभाव) टर्म का भी इस्तेमाल किया गया है. इसे टीकाकरण के बाद होने वाली विशिष्ट समस्याओं के तौर पर देखा गया है. अध्ययनकर्ताओं ने यह भी कहा कि कोवैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों को सिलसिलेवार ढंग से जानने के लिए संक्रमित और टीकाकृत लोगों की लंबे समय तक निगरानी जरूरी है.

दो डोज लेने वाले सबसे कम खतरे में: एक और तथ्य मिला. शोधकर्ताओं ने पाया कि कोवैक्सीन की दो डोज लेने वाले सबसे कम खतरे में हैं. उनके मुकाबले तीन टीके लगवाने वालों को खतरा चार गुना ज्यादा है. जबकि एक टीका लगवाने वाले पर यह खतरा दो डोज लेने वालों से दोगुना है.

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