वन विभाग ने संजय वन को विकसित करने के लिए तैयार किया प्लान

Update: 2023-01-30 09:12 GMT

मेरठ: सब कुछ योजना के अनुसार हुआ तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश का पहला चिड़ियाघर अपने मेरठ में बनेगा। प्रस्तावित चिड़िया घर के निर्माण को लेकर हालांकि 2021 में इसकी रूपरेखा तैयार करने का काम शुरू हुआ, जिसे 2023 में अमली जामा पहनाने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे है। रैपिड आने के बाद से इसका महत्व और बढ़ गया हैं, क्योंकि यहां मेट्रो का स्टेशन भी बनाया जा रहा है।

जिसके बाद वन विभाग और प्रशासन की ओर से संजय वन को विकसित करने की कवायद और तेज कर दी गई है और कंसलेटेंट के जरिए संजय वन के सौंदर्यीकरण से लेकर उसमें इको टूरिज्म विकसित करने के साथ ही मिनी चिड़िÞया घर का प्रस्ताव नए सिरे से तैयार किया गया है। हालांकि प्रदेश सरकार की ओर से इसके निर्माण को लेकर पहले ही स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है अब केवल बजट आने का इंतजार है।

बता दें कि चिड़ियाघर का नाम लेते ही बच्चों के चेहरे मुस्कान आ जाती हैं, लेकिन मेरठ और उसके आसपास के अधिकतर बच्चे चिड़ियाघर में जानवरों को देख नहीं पाते है। ऐसे में चिड़ियाघर बनने से वन्य जीवों के बारे में न सिर्फ यहां के छात्र-छात्राओं को जानने को मिलेगा बल्कि पर्यटन की स्थिति से मेरठ के लिए यह बड़ी सौगात होगी। प्रदेश में अभी दो चिड़िया घर कानपुर और लखनऊ में है।

गोरखपुर में चिड़ियाघर बनाने का काम चल रहा है। प्रदेश सरकार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी एक चिड़ियाघर बनाना चाहती है। मेरठ में यह चिड़ियाघर दिल्ली रोड स्थित संजय वन में बनाया जाएगा। संजय वन 23 हेक्टेयर एरिया मेें फैला हुआ है। यहां कनेक्टिीविटी की समस्या भी नहीं है क्योंकि यह शहर से एक सटा हुआ है। चिड़ियाघर यहां बनता है तो आने जाने वालों को सुविधा रहेगी। डीएफओ राजेश कुमार ने बताया की रैपिड आने के बाद पर्यटन की दृष्टि से संजय वन अहम होगा। वन विभाग की ओर से प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसको जिलाधिकारी के माध्यम से प्रदेश सरकार को भेजा जाएगा।

पहले भी था संजय वन में मिनी चिड़ियाघर

वन अधिकारियों के मुताबिक पहले भी संजय वन में मिनी चिड़ियाघर हुआ करता था। जहां 1992 तक मिनी चिड़ियाघर था। उसमें सैकड़ों प्रकार के पक्षी हिरन, खरगोश, लोमड़ी और यहां तक की मगरमच्छ भी था।

जलीय जीवों का बड़ा हेबिटेट है मेरठ

मेरठ, हस्तिनापुर सेंचुरी जलीय जीवों का बड़ा हेबिटेट है। गंगोटिक डॉल्फिन पाई जाती है। यहां एक समय उद बिलाव भी बड़ी संख्या में होते थे। घड़ियाल और कछवे भी काफी संख्या में पाए जाते थे। इसलिए चिड़ियाघर में इस प्रकार के जीवों को रखा जाएगा। जिन्हें बच्चे देख उनकी जानकारी ले सकें।

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