23 संविदा कर्मियों की फर्जी नियुक्तियों को हुआ एक वर्ष, फिर भी जांच अधूरी
मेरठ निगम न्यूज़: बाड़ ही जब खेत को खाने लगे, वाली कहावत नगर निगम पर सटीक बैठ रही है। जिस अपर नगरायुक्त ममता मालवीय को जांच समिति का अध्यक्ष बनाया गया। अब उनकी ही जांच की भूमिका संदेह के घेरे में आ गए हैं। अपर नगरायुक्त को जो जांच 30 दिन में करनी थी, वो 365 दिन में भी पूरी नहीं कर पाई है। इसी वजह से अपर नगरायुक्त की भूमिका संदेह के घेरे में डाल दिया है। नगर निगम में 23 नियुक्तियों का मामला जांच के नाम पर ठंडे बस्ते में डाल दे गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कमिश्नर के आदेश के बाद भी जो जांच 30 दिन में पूरी होनी थी, वो जांच एक वर्ष में भी पूरी नहीं हो पाई। जांच के नाम पर भ्रष्टाचार के इस मामले को दबा दिया गया है। आखिर नगर निगम के अधिकारी फर्जी नियुक्ति पाकर नगर निगम के राजस्व को चूना लगाने वालों पर क्यों मेहरबान है? यह कहना मुश्किल होगा, लेकिन इतना अवश्य है कि जानबूझकर 23 अवैध नियुक्तियों के मामले को दबा दिया गया है। बता दे कि यह जांच अपर नगर आयुक्त ममता मालवीय को मिली थी। उनकी अध्यक्षता में एक जांच समिति भी गठित की गई थी, जिसे 30 दिन में जांच पूरी करने के आदेश दिए गए थे, लेकिन इस तरह से पूरा एक वर्ष बीत गया है, मगर जांच पूरी नहीं हो पाई। आखिर जांच पर लीपापोती क्यों की जा रही है और इन फर्जी नियुक्तियों के मामले में अपर नगर आयुक्त ममता मालवीय क्यों मेहरबान बनी हुई है?
यह तो वही बता सकते हैं या फिर इसकी उच्च स्तरीय जांच होने पर ही सच सामने आ जाएगा। 27 सितंबर 2021 को तत्कालीन नगर आयुक्त मनीष बंसल ने 23 अवैध नियुक्ति के मामले में एक जांच समिति गठित की थी, जिसकी अध्यक्ष अपर नगर आयुक्त ममता मालवीय को बनाया गया था। यह भी आदेश दिया गया था कि जांच रिपोर्ट एक माह में पूरी की जाए। जांच को लटका दिया गया और अनावश्यक तरीके से नगर निगम में अवैध तरीके से नियुक्ति पाने वालों को लाभ दिया जा रहा है। इनका नियमित वेतन का भुगतान भी वित्तीय राजस्व की हानि लगातार पहुंचाई जा रही है, जिसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह आला अफसरों को तय करना है। अवैध नियुक्तियों की अब तक की गई जांच की क्या स्थिति है? इसमें दोषी है या फिर नहीं? इसकी भी जांच कमेटी की अध्यक्ष ममता मालवीय भी तय नहीं कर पाई है। अवैध नियुक्तियों के मामले में कर्मचारियों का वेतन आहरण रोकने का भी कोई आदेश नहीं दिया गया है।
किस वजह से यह जांच लंबित है? क्या जांच को लंबित डालने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी? यह बड़ा सवाल है। जिन 23 कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ती का आरोप लग रहा हैं, उनकी तैनाती नगर निगम आॅफिस में महत्वपूर्ण पदों पर की गई हैं। एक तरह से मलाईदार पदों पर ये फर्जी नियुक्ती पाने वाले कर्मचारी जमे हुए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीरो टोलरेंस की नीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद अधिकारियों के स्तर पर एक-एक वर्ष तक जांच को दबाकर भ्रष्टाचार किया जा रहा हैं। दिखावा करने के लिए अधिकारी ईमानदारी का चौला पहने हुए हैं, लेकिन 23 अवैध नियुक्ती के मामले में कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही हैं? इसमें देरी क्यों की जा रही हैं? इसमें जांच अधिकारी का क्या निजी हित जुड़ा हुआ हैं। ऐसे आरोप भी जांच अधिकारी पर लग रहे हैं। डा. प्रेम सिंह और बीके गुप्ता ने इस प्रकरण की शिकायत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से की हैं।
इसके बाद से जांच पड़ताल चल रही हैं, लेकिन जांच सिर्फ खानापूर्ति वाली चल रही हैं। ऐसा कभी सपा सरकार में किया जाता था, लेकिन भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार के मामले में तत्काल कार्रवाई की जाती हैं, मगर इस मामले को पेंडिंग डालकर भ्रष्टाचार की 'बू' आ रही हैं। आरोप भी जांच समिति पर लग रहे हैं, लेकिन फिर भी कार्रवाई की दिशा में कदम नहीं बढ़ाये जा रहे हैं।