संविधान को विकसित करने में कार्यपालिका न्यायपालिका की कोई भूमिका नही: धनखड़

Update: 2023-03-20 05:39 GMT

लखनऊ: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि संविधान का विकास संसद में होना है। न्यायपालिका और कार्यपालिका सहित किसी अन्य संस्था की इसमें कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा कि संविधान लोकतांत्रिक शासन की स्थिरता को निर्धारित करता है। संसद संविधान का अंतिम पड़ाव है। धनखड़ तमिलनाडु के पूर्व राज्यपाल पीएस राममोहन राव के संस्मरण के विमोचन के मौके पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

क्या बोले उपराष्ट्रपति?

धनखड़ ने कहा, “संविधान को संसद के जरिए लोगों से विकसित होना है, कार्यपालिका से नहीं। संविधान को विकसित करने में न तो कार्यपालिका की कोई भूमिका है न ही और न्यायपालिका की।” उन्होंने कहा कि वो उन देशों के संविधानों का अध्यनन कर चुके हैं जहां लोकतंत्र फलता-फूलता है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और सरकार में खींचतान के बीच सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने एक दिन पहले ही कॉलेजियम सिस्टम का बचाव किया था। उन्होंने कहा कि कोई भी प्रणाली दोष से मुक्त नहीं है, लेकिन यह सबसे अच्छी प्रणाली है, जिसे हमने विकसित किया है। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली का उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करना है। सीजेआई के बयान के बाद उपराष्ट्रपति ने फिर से सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम पर हमला बोला है।

अभी कॉलेजियम सिस्टम में चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों का एक समूह जजों की नियुक्ति और तबादले का फैसला करता है। उसकी सिफारिश पर सरकार मुहर लगाती है। यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि संविधान में कॉलेजियम व्यवस्था की चर्चा नहीं है। 1998 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही यह अस्तित्व में आ गया।

हालांकि, जजों की नियुक्ति के लिए मोदी सरकार ने NJAC के रूप में एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था का प्रस्ताव रखा था। यह कॉलेजियम सिस्टम की जगह लेने वाला था। फिलहाल कॉलेजियम के तहत ही जजों की नियुक्ति हो रही है। नए सिस्टम में 6 सदस्यों को रखने का प्रस्ताव था। चीफ जस्टिस इस आयोग के प्रमुख होते और सुप्रीम कोर्ट के 2 सीनियर जज, कानून मंत्री और 2 जानीमानी हस्तियां सदस्य के रूप में शामिल होतीं।

NJAC अधिनियम निरस्त करने को लेकर न्यायपालिका की आलोचना करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कुछ समय पहले कहा था कि संसद के बनाए कानून को किसी और संस्था की ओर से अमान्य ठहराना प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एनजेएसी अधिनियम को निरस्त कर दिया था। धनखड़ ने कहा कि दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है। लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता सबसे ऊपर है।

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