अतिक्रमणकारियों की करतूत की वजह से खतरे में आया प्राचीन गंगा नदी का अस्तित्व
हस्तिनापुर न्यूज़: देश में सभ्यता नदियों के किनारे विकसित हुई है। गंगा नदी देश की लाइफ लाइन कही जाती है। इसके किनारे अनेकों शहरों का विकास हुए हैं। महाभारत कालीन तीर्थ नगरी की मुख्य पहचान प्राचीन गंगा नदी से है। ऐतिहासिक तीर्थ नगरी को गंगा नदी एक किनारे पुष्पित और पल्लवित होने का सौभाग्य हासिल हुआ, लेकिन शासन प्रशासन की मिली भगत के चलते अतिक्रमणकारियों की करतूत ने इसके अस्तित्व पर ही ग्रहण लगा दिया है। हाल के कुछ वर्षों में प्राचीन गंगा नदी पर जहां प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है। वहीं, अतिक्रमण के कारण इसके अस्तित्व पर ग्रहण लगता दिख रहा है। वर्तमान हाल में प्रशासन की रोके के बाद भी गंगा की तलहटी में अवैध निर्माण खुलेआम होने के बाद भी प्रशासन मौन है। इन जमीनों को मुक्त कराने के लिए सरकार या प्रशासन द्वारा किसी तरह की पहल नहीं की जा सकी है। एनजीटी द्वारा गंगा नदी के अतिक्रमण पर कई बार सवाल खड़े किये जा चुके हैं। एनजीटी ने राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण को लेकर 13 जुलाई 2017 को 543 पृष्ठों का विस्तृत फैसला सुनाते हुए कहा था कि न सिर्फ डूब क्षेत्र का संरक्षण होना चाहिए, बल्कि इसका सीमांकन भी होना चाहिए। गंगा के डूब क्षेत्र सीमांकन को लेकर ठोस पहल नहीं की जा सकी है। बता दें कि विकास की अंधी दौड़ में लोग गंगा नदी को भी नहीं बख्श रहे हैं। गंगा नदी के सीने पर अतिक्रमण कर गगनचुंबी इमारतें खड़ी की जा रही है। साल-दर-साल अतिक्रमण बढ़ता ही जा रहा है।
सीमा में नहीं फिर भी लगा दिया गृह एंव जलकर: सिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती का कहना है कि नगर पंचायत द्वारा पट्टा संख्या 806 पर कई हिस्सों में गृहकर एवं जलकर लगा दिया गया था। जिससे माफियाओं के हौसले बुलंद हुए और निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ। फसली संख्या 1378 में इन नंबरों पर बूढ़ी गंगा दर्ज है। जब जानकारी हुई तब मेरे द्वारा जिलाधिकारी मेरठ से शिकायत की गई। तब प्रशासन हरकत में आया और निर्माण कार्य रुकवा दिया गया। हालांकि डीएम दीपक मीणा ने तत्काल इस संदर्भ में एक बैठक भी बुलाने का निर्णय लिया। शनिवार को आयुक्त से इस बारे में बैठक हुई तो उन्होंने जांच जिलाधिकारी को सौंप दी। सरकारी छुट्टी को देखते हुए भूमाफियाओं ने पुन: निर्माण कार्य प्रारम्भ किया रात में भी मिट्टी डालने का कार्य शुरू कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के आदेश भी हस्तिनापुर में हवा-हवाई: प्रियंक भारती का कहना है कि भूमाफियाओं के हौसले इतने बुलंद है कि बार-बार निर्माण कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट आॅफ इंडिया के 25 जुलाई 2001 में अपने जजमेंट में कहा था कि झील, पोखर, तालाब देश कि शान है। उन पर कोई भी निर्माण नहीं किया जा सकता। वहीं, दूसरी ओर प्रयागराज हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने वर्ष 2010 में अपने फैसले में कहा कि कई भी सार्वजानिक उपयोग कि संपत्ति को प्राइवेट लैंड नहीं घोषित किया जा सकता, अगर उस पर कोई निर्माण हुआ है तो उसे ध्वस्त/खाली कराया जाये।