अदालत ने 67 साल पुराने 'आदेश' की फॉरेंसिक जांच का दिया आदेश

Update: 2022-12-24 12:03 GMT

लखनऊ न्यूज़: चकबंदी मामले के एक मुकदमे में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष एक 67 साल पुराने आदेश की 35 साल पुरानी प्रति प्रस्तुत करते हुए, उसे चुनौती दी गई. न्यायालय ने कथित आदेश पर संदेह होने पर, इसकी फॉरेंसिक जांच के आदेश दिए हैं. इसके साथ ही न्यायालय ने डीएम, उन्नाव को भी आदेशित किया है कि वह पता लगाएं कि क्या कथित आदेश की प्रति चकबंदी कार्यालय से जारी की गई व क्या वर्ष 1987 व इसके पूर्व उन्नाव के चकबंदी कार्यालय में टाइप राइटर का प्रयोग किया जाता था.

यह आदेश न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ओम पाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया. याची की ओर से 22 जुलाई 1955 के उप संचालक चकबंदी, उन्नाव के कथित आदेश को विधि विरुद्ध बताते हुए, इसकी एक प्रति याचिका के साथ दाखिल की. वहीं राज्य सरकार व ग्राम सभा के अधिवक्ताओं ने बहस के दौरान कथित आदेश की प्रति को कूटरचित बताया. इस पर याची की ओर से कथित आदेश की सर्टिफाइड प्रति प्रस्तुत की गई और बताया गया कि उक्त सर्टिफाइड प्रति वर्ष 1987 में जारी की गई थी. इस पर सरकार व ग्राम सभा की ओर से कहा गया कि वर्ष 1955 में चकबंदी कार्यवाही के लिए टाइप राइटर प्रचालन में नहीं थे. यह भी कहा गया कि 1955 के आदेश की सर्टिफाइड प्रति 32 साल बाद 1987 में जारी ही नहीं की जा सकती क्योंकि चकबंदी के रेग्युलेशन्स के तहत 12 साल बाद अनावश्यक रिकॉर्ड नष्ट कर दिया जाता है.

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