गांव हसनपुर लुहारी की गलियों में कूड़ा बीन रहे बच्चे, पढ़ने की उम्र सड़कों पर कूड़ा बीन रहे नौनिहाल
हसनपुर लुहारी: जिस उम्र में बच्चों के हाथ में कलम, किताब और मन में कुछ कर दिखाने का जज्बा होना चाहिए, उम्र की उस दहलीज की शुरूआत यदि कूड़े-करकट में हो तो ऐसे में उनके भविष्य एवं सक्षम राष्ट्र के कर्णधार बनने की क्या उम्मीदें हो सकती हैं? सर्व शिक्षा अभियान का स्लोगन 'सब पढ़ें, सब बढ़ें' उस समय धूंधला पड़ जाता है जब बचपन कूड़े के ढेर में बिखरने लगता है। फिर भी, बच्चों को मुफ्त, अनिवार्य शिक्षा देने के दावे कर शिक्षा विभाग अपनी पीठ थपथपाने में पीछे नहीं है।
गांव हसनपुर लुहारी में बस स्टैंड निकट बच्चे कांच के शीशा को उठाते नजर आए। जहां एक बच्चे ने सरकारी स्कूल की ड्रैस भी पहनी हुई थी लेकिन वो स्कूल में नही सडकों पर कबाड़ चुनने के कंधे पर बोरे लिये हुए था। शिक्षा एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर हर बच्चे को शिक्षा के लिए प्रेरित करने का दावा किया जाता है। लेकिन, गांव में घूम रहे बच्चे विभाग की इस धारा से वंचित हैं।
इसका कारण विभाग द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा प्रसार अभियान या फिर इस प्रकार के अन्य अभियान को हैंडल करने वाले अधिकारियों की कार्यप्रणाली में खामियों को कहा जा सकता है। एक ओर हर बच्चे को शिक्षित करने के दावे किए जा रहे हैं तो दूसरी ओर शहर की सड़कों, गलियारों, बाजारों में अपने कंधों पर बोरे लिए कूड़ा बीनते, किसी स्टॉपेज पर कारों के शीशें व दुकानों में बर्तन साफ करते नजर आ रहे हैं। ऐसे में सर्व शिक्षा अभियान के ये दावे केवल कागजी नहीं तो क्या हो सकते हैं।
ऐसे में बात अगर गांव हसनपुर लुहारी की करें तो यहां सुबह करीब सात बजे से ही नंगे पैरों, तन पर फटे-पुराने कपड़े पहने और कंधे पर बोरा लिए बच्चे कूड़ा बीनने के लिए निकल पड़ते हैं।
गर्मी हो या सर्दी अपनी आजीविका के लिए कूड़े के ढेर को छांटना इनकी मजबूरी हो गया है। एक ओर स्कूलों में जब बाल दिवस के मौके पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है उस दौरान ये बच्चे सड़कों पर कूड़ा एकत्रित करते हैं। इन्हें बाल दिवस से कोई मतलब नजर नहीं आता।