137.60 मीटर तक पहुंचा चंबल का जलस्तर
चंबल में आई बाढ़ ने चंबल पट्टी के 21 गांव में तबाही मचा दी है। जनजीवन अस्तव्यस्त कर दिया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चंबल में आई बाढ़ ने चंबल पट्टी के 21 गांव में तबाही मचा दी है। जनजीवन अस्तव्यस्त कर दिया है। बाढ़ में जरूरी सामान सहित लोगों के मकान तक डूब गए हैं। 26 साल बाद नदी में 26,439,50 क्यूसेक पानी डिस्चार्ज हुआ है। इससे पिनाहट पर जलस्तर गुरुवार रात तीन बजे 137.60 मीटर तक पहुंच गया। छह घंटे तक पानी नदी में स्थिर रहा। उसके बाद दस सेंटीमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से जलस्तर गिरना शुरू हो गया है। बाढ़ नियंत्रण कक्ष के मुताबिक मंगलवार को कोटा बैराज से 12 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था।
राजस्थान और मध्यप्रदेश की बारिश से तीन नदियों का पानी भी चंबल में गिरना शुरू हो गया था। 24 अगस्त रात दो बजे से पिनाहट पर जलस्तर तेजी से बढ़ना शुरू हो गया। हालात ये हो गए कि गुरुवार शाम सात बजे 24 अगस्त 1996 का रिकार्ड तोड़कर पानी 137 मीटर पहुंच गया। रात तीन बजे जलस्तर 137.60 मीटर हो गया। इसके बाद चंबल थम गई। शुक्रवार सुबह नौ बजे तक जलस्तर में कोई वृद्धि नहीं हुई। दस बजे के बाद पानी धीरे-धीरे उतरना शुरू हो गया। शुक्रवार शाम सात बजे जलस्तर 136.70 मीटर पर था। यानि की खतरे के निशान से पानी 6.70 मीटर ऊपर बह रहा था। सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने बताया कि दस सेंटीमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पानी उतर रहा है। रात 12 बजे के बाद तेजी से पानी उतरेगा।
ग्रामीणों ने तंबू में ली शरण, मकानों में भरा पानी
चंबल में आई बाढ़ ने जनजीवन अस्तव्यस्त कर दिया है। पानी में मकान डूब जाने के बाद उन्होंने तंबुओं में शरण ले ली है। ऊंचे-ऊंचे टीलों पर दूर से उनके रंग-बिरंगे टापु नजर आते हैं। अब एक महीने तक ग्रामीण इन तंबुओं में जीवन यापन करेंगे। उसके बाद इनकी घर वापसी होगी। पिनाहट का गांव उमरैठापुरा बाढ़ के पानी में पूर्ण रूप से डूब गया है। सभी ग्रामीण ऊंचे टीलों पर पलायन कर चुके हैं।
ग्रामीणों टीलों पर त्रिपाल तान बच्चों और महिलाओं के साथ जरूरी सामान, मवेशियों संग रहने लगे हैं। महिला मलुआ देवी और भूरी सिंह ने बताया कि पिछले चार साल में ये तीसरी बार बाढ़ आई है। पहली बार भयंकर रूप देखा है। ग्रामीणों का बहुत नुकसान हुआ है। प्रशासन से दशकों से मांग कर रहे हैं कि ऊंचे टीलों पर हमें जमीन मुहैया करा दी जाए। हम लोग यहां अपने पक्के मकान बनाकर रह लेंगे। लेकिन, वन विभाग इसमें बाधा डाल रहा है। सेंचुरी के नाम पर स्थायी मकान नहीं बनाने देते हैं।
खेतों पर गए तीन किसान बाढ़ में फंसे, तीन दिन बाद निकाला
बाह के गांव भटपुरा में बुधवार शाम को खेत देखने गए किसान बाढ़ में फंस गए। तीन दिन तक किसानों को भूखे प्यासे चंबल के टापुओं पर रहना पड़ा। कंट्रोल रूम की सूचना पर शुक्रवार को एसडीआरएफ की टीम पहुंची। वे तीनों किसानों को पीठ पर लादकर स्टीमर तक लाए। उन्हें सुरक्षित बाहर निकाला। किसानों का कहना था कि राम नाम के जाप में दो रातें उनकी कटी हैं।
भटपुरा निवासी जगत सिंह, राम सिंह और रामबरन सिंह बुधवार शाम को अपने खेत देखने के लिए गए थे। अचानक से चंबल में पानी बढ़ जाने के कारण वे लौटकर वापस नहीं आ सके। पानी से बचने के लिए वे टापुओं पर चढ़ते चले गए। जलस्तर गिरने की प्रतीक्षा में उनकी दो रात और तीन दिन बीत गए। उन्होंने बताया कि भयानक काली रात और पानी की तेज आवाज के बीज रामनाम का जाप में रतजगा करते थे। सांप और बिच्छुओं का आतंक भी भयभीत कर रहा था। शुक्रवार को टापू पर फंसे इन ग्रामीणों को निकालने के लिए उपजिलाधिकारी और कंट्रोल रूम पर सूचना दी गई। एसडीआरएफ की टीम मोटर वोट लेकर मौके पर पहुंच गई। टीम के प्रभारी सुरेश राजभर, मोटर वोट चालक शिवचंद्र मौर्य, अजय व शैलेष ने टीले पर बैठे तीनों किसानों को पीठ पर बिठाया। उन्हें वोट तक लेकर आए और सुरक्षित बाहर निकाला। किसानों ने टीम का आभार व्यक्त किया।
बाढ़ में गिरे परिवार को निकाला सुरक्षित
बाढ़ के पानी में गुढ़ा गांव चारों तरफ डूब गया है। ग्रामीणों ने अपनी छतों को आशियाना बना लिया था। वे अपनी छतों पर ही जरूरी सामान रखकर जलस्तर घटने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन, बुधवार तक नदी का जलस्तर कम नहीं हुआ। इससे ग्रामीणों को डर सताने लगा। ग्रामीणों ने कंट्रोल रूम पर फंसे होने की सूचना दी। इस पर एसडीआरएफ की टीम गांव पहुंची। उन्होंने छत पर बैठी तीन महिला व पांच बच्चों को मोटर वोट की सहायता से सुरक्षित बाहर निकाला।