बरेली की सड़कों पर गोवंश
आईजीआरएस पर शिकायतें भी खोल रही हैं फर्जी रिपोर्ट की पोल
बरेली: शासन को बरेली में एक भी छुट्टा पशु न होने की रिपोर्ट भेजने वाले अफसरों की पिछले ही महीने मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्रा के कार्यक्रम के दौरान लगातार धड़कनें बढ़ी रही थीं। बरेली से आंवला के दौरे पर गए मुख्य सचिव के रास्ते में कोई छुट्टा पशु न आ जाए, इस आशंका से डरे अफसरों ने सड़कों पर ब्लॉकों के चौकीदारों को तैनात कर दिया था। इन चौकीदारों ने सड़कों पर मौजूद पशुओं को खेतों में खदेड़ा तो किसानों से उनका जमकर विवाद भी हुआ था।
सांड़ अब वन्य प्राणी, हमले में मौत दैवीय आपदा, मुआवजे में मिलेंगे चार लाख रुपये
सांड़ के हमलों में होने वाली मौतों को शासन की ओर से अब दैवीय आपदा की श्रेणी में रख दिया गया है ताकि मृतकों के परिवारों को इसका मुआवजा दिया जा सके। ऐसी मौत पर बतौर मुआवजा चार लाख रुपये देने का प्रावधान किया गया है। हालांकि शासन की इस घोषणा के बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं है। बरेली में तमाम मौतों के बावजूद अभी किसी को यह मुआवजा दिए जाने की खबर भी नहीं है। लोगों को मुआवजा देने के लिए सांड़ को सरकार ने वन्य प्राणी भी घोषित कर दिया है। हालांकि यह वन्य प्राणी शहर और गांवों में घूम रहा है।
आईजीआरएस पर शिकायतें भी खोल रही हैं फर्जी रिपोर्ट की पोल
पशुपालन विभाग की फर्जी रिपोर्ट की पोल आईजीआरएस पर होने वाली शिकायतें भी खोल रही हैं। हर महीने सैकड़ों शिकायतें छुट्टा गोवंशीय पशुओं के फसलों को नुकसान पहुंचाने की होती हैं। फरवरी में जिले भर से करीब आठ सौ शिकायतें आईजीआरएस पर की गई थीं। कुछ कम या ज्यादा हर महीने इसी तादाद में छुट्टा पशुओं के बारे में लगातार आईजीआरएस पर शिकायतें की जा रही हैं। पशु पालन विभाग की रिपोर्ट से जाहिर है कि इन शिकायतों का भी जमकर फर्जी निस्तारण किया जा रहा है।
बरेली में अब कहीं छुट्टा गोवंश नहीं... हर सड़क पर चलता-फिरता मिलेगा अफसरों का यह सफेद झूठपशुपालन विभाग के अफसरों की
सड़कों-गलियों और गांवों-खेतों में घूम रहे हजारों गोवंशीय पशु खेतों में खड़ी फसलों के ही नहीं, अब राह चलते लोगों की जिंदगी के लिए भी भारी पड़ रहे हैं। साल भर के ही अंदर जिले में दर्जन भर से ज्यादा लोग सांड़ों के हमले में जान गंवा चुके हैं लेकिन फिर भी पशुपालन विभाग के अफसरों ने पूरे बरेली को छुट्टा गोवंशीय पशुओं से पूरी तरह मुक्त घोषित कर दिया है। शासन को भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि जिले में अब एक भी छुट्टा गोवंशीय पशु सड़कों पर नहीं घूम रहा है। छुट्टा पशुओं की वजह से फसलों के नुकसान की स्थिति को भी शून्य बताया गया है। पशुपालन विभाग की इस रिपोर्ट पर प्रशासन ने भी मोहर लगाई है। सरकार के लिए शायद यह रिपोर्ट ही पर्याप्त है लेकिन असल में अफसरों का यह सफेद झूठ हर रोज हर सड़क पर भटकता देखा जा सकता है। हादसों और नुकसान का भी सिलसिला जारी है। अफसरों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच आपसी समझ का अंदाजा भी इस बात से लगाया जा सकता है कि पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह भी इसी जिले की आंवला सीट से विधायक हैं।
गो आश्रय स्थलों में 11 हजार पशुओं के संरक्षण का दावा, हजारों सड़कों पर सरकार के साथ ग्राम पंचायतों से भी गोशालाओं को दिया जाता है बजट
हेराफेरी के लिए गोशालाओं में नहीं रखे जाते क्षमता के मुताबिक पशु
पशु पालन विभाग की रिपोर्ट में जिले भर में करीब 11 हजार गोवंशीय पशुओं को संरक्षित करने का दावा किया गया है। इस सरकारी आंकड़े में कितनी सच्चाई है, यह जांच के बगैर पता चलना मुश्किल है लेकिन असलियत में इससे कई गुना ज्यादा गोवंशीय पशु सड़कों पर भटक रहे हैं। गोशालाओं में पशुओं को न रखने और बजट की हेराफेरी के आरोप भी आम हैं।
छुट्टा गोवंशीय पशुओं के संरक्षण के लिए पांच साल से गो आश्रय स्थल चलाए जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक बरेली के ग्रामीण इलाकों में 30 अस्थाई गोशालाएं हैं जिनमें 1337 पशुओं को संरक्षित किया गया है। नवाबगंज, भुता, फतेहगंज पश्चिमी और मझगवां में चार वृहद गो आश्रयस्थल हैं, जिनमें 1355 पशुओं संरक्षित करने का दावा किया गया है। शहरी क्षेत्र की आठ स्थाई और अस्थाई गोशालाओं में 2125 पशु संरक्षित हैं। इसके अलावा पांच कांजी हाउस भी हैं जिनमें फिलहाल 106 पशु हैं। इसके अलावा शहरी और ग्रामीण इलाके में 12 पंजीकृत और अपंजीकृत गोशालाओं में 884 पशु रिपोर्ट में संरक्षित बताए गए हैं। 1945 गोवंशीय पशुओं को सुपुर्दगी में देने का दावा किया गया है।
पशुपालन विभाग के मुताबिक गोशालाओं के देखरेख की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों की है। इसके लिए सरकार प्रति पशु के हिसाब से 30 रुपये प्रतिदिन देती है। इसके अलावा ग्राम निधि के राज्य वित्त की 10 फीसदी धनराशि गोशालाओं को गोवंश के भरणपोषण के लिए देने के निर्देश हैं, लेकिन आरोप लगते रहे हैं कि यह बजट बचाने के लिए गोशालाओं में क्षमता के मुताबिक पशु नहीं रखे जा रहे हैं।
भूसा महंगा होने के बाद छोड़ दिए पशु
करीब एक महीने में ही भूसे के दाम दोगुने हो गए हैं। जुलाई की शुरूआत में भूसा पांच सौ से सात सौ रुपये क्विंटल था जो अब बढ़कर एक हजार रुपये से भी ज्यादा हो गया है। पशुपालकों का कहना है कि एक गोवंशीय पशु रोज करीब दस किलो भूसा खाता है। इस वजह से उन्हें पाल पाना काफी महंगा पड़ रहा है।
फर्जी रिपोर्ट की गारंटी, कम नहीं होंगी किसानों की मुश्किल
आवारा गोवंशीय पशु लगातार फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। दिन-रात खेतों में पहरा देने के बावजूद फसलों को बचाना मुश्किल पड़ रहा है। कोई भी फसल सुरक्षित नहीं बच पा रही है।- सीताराम, भुता
विकास भवन में होने वाले किसान दिवस में डीएम के सामने कई बार छुट्टा गोवंश की समस्याएं रखी है मगर आज तक कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। छुट्टा पशु आए दिन हमलावर हो जाते हैं। -नरेंद्र, गुलड़िया
डीएम से छुट्टा पशु पकड़वाने की कई बार फरियाद की है। फसल की रखवाली के लिए किसान जान को दांव पर लगा रहे हैं। फिर आवारा गोवंश खेतों में घुसकर फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं।- सर्वेश गंगवार, ग्रेम
फसल की रखवाली के लिए किसान जान को दांव पर लगा रहे हैं। छुट्टा गोवंश कुछ ही देर में फसल चट कर जाते हैं। नुकसान से बचने के लिए किसानों को हर समय खेतों में ही रहना पड़ता है।-ओमप्रकाश, रजपुरा माफी