CAG report: कोविड महामारी से अर्थव्यवस्था बिगड़ा, 14 वर्ष बाद यूपी को राजस्व घाटा

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति पर तैयार रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई।

Update: 2022-05-31 11:25 GMT

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति पर तैयार रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गई। इसमें वित्त वर्ष 2020-21 की आर्थिक स्थिति का विस्तृत विश्लेषण है। कोविड महामारी का प्रभाव वित्त वर्ष 2019-20 के अंतिम दिनों में ही सामने आ गया था। तब सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में 6.50 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग पूरे वित्त वर्ष ही कोविड का असर रहा। इस वर्ष जीएसडीपी की वृद्धि 1.05 प्रतिशत पर सिमट गई। इसका असर यह सामने आया कि वर्ष 2006-07 के बाद पहली बार 2020-21 में राज्य को राजस्व घाटे का सामना करना पड़ा। इस वर्ष 2367.13 करोड़ राजस्व घाटा था।


हालात इतने विकट थे कि केंद्र ने राज्य को अतिरिक्त आर्थिक संसाधन बढ़ाने के लिए जीएसडीपी की दो प्रतिशत अतिरिक्त ऋण सीमा मंजूर की। इससे यह ऋण सीमा पूर्व निर्धारित जीएसडीपी के तीन प्रतिशत से बढ़कर पांच प्रतिशत हो गई। हालांकि राज्य ने काफी सावधानी से कदम उठाया और राजकोषीय घाटे को जीएसडीपी के 3.20 प्रतिशत तक सीमित रखा। वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटा 54,622.11 करोड़ रुपये था। इसी तरह 2020-21 में राज्य के लिए बकाया ऋण की सीमा जीएसडीपी का 32 प्रतिशत तक मान्य थी लेकिन यह 32.77 प्रतिशत पहुंच गई।
लॉकडाउन प्रतिबंधों से राजस्व स्रोतों पर तगड़ा असर
वित्तीय वर्ष 2020-21 की शुरुआत कोविड महामारी और सख्त लॉकडाउन प्रतिबंधों के साथ हुई। इसने राज्य की राजस्व प्राप्तियों पर बेहद खराब असर डाला। हालात ये हुए कि बजट अनुमान 2020-21 की तुलना में स्वयं के कर राजस्व में 27.78 प्रतिशत, गैर कर राजस्व में 62.01 प्रतिशत, केंद्रीय कर हस्तांतरण में 30.21 प्रतिशत और केंद्र से सहायता अनुदान में 20.35 प्रतिशत की कमी रही। यही नहीं राज्य का राजस्व व्यय कुल खर्च का 84.83 प्रतिशत पहुंच गया।

पांच वर्ष में जीएसडीपी की वृद्धि दर
वित्तीय वर्ष राज्य की जीएसडीपी वृद्धि दर (प्रतिशत में)
2016-17 12,88,700 13.26
2017-18 14,16,006 9.88
2018-19 15,84,764 11.92
2019-20 16,87,818 6.50
2020-21 17,05,593 1.05 (नोट : जीएसडीपी करोड़ रुपये में)
कोविड संकट काल में कृषि सेक्टर ही आया काम
कोविड संकट काल में एक बात और सामने आई। वह थी, राज्य के कृषि सेक्टर की ताकत। महामारी के दौरान उद्योग व सेवा सेक्टर एक तरह से बैठ गया। वर्ष 2020-21 में सेवा सेक्टर की वृद्धि दर -1.91 प्रतिशत व उद्योग सेक्टर की -5.52 प्रतिशत रही जबकि कृषि सेक्टर की वृद्धि दर 8.08 प्रतिशत थी। कृषि की वृद्धि दर पूर्व के दो वर्षों की वृद्धि दर से भी ज्यादा थी।

पांच वर्ष में क्षेत्रवार वृद्धि दर (प्रतिशत में)
वित्तीय वर्ष कृषि उद्योग सेवा
2016-17 8.84 24.06 9.79
2017-18 12.32 03.41 12.61
2018-19 6.26 11.06 13.21
2019-20 6.28 00.56 8.87
2020-21 8.08 -05.52 -1.91

26,237 करोड़ रुपये दबाए बैठे हैं विभाग
तमाम महकमे सरकार से सहायता लेने के बावजूद 26,237 करोड़ रुपये का हिसाब-किताब नहीं दे रहे हैं। वित्त वर्ष 2001-02 से सितंबर 2019-20 तक जारी सहायता अनुदान में से 26,237.08 करोड़ रुपये के 39,587 उपभोग प्रमाणपत्र बकाया थे। सीएजी ने कहा है कि बड़ी संख्या में उपभोग प्रमाणपत्रों का बकाया होना, निधियों के गबन व गलत तरीके से खर्च के जोखिम से भरी हुई हैं। सीएजी ने उपभोग प्रमाणपत्र समय से जमा करना सुनिश्चित कराने व बिना उपभोग प्रमाणपत्र प्राप्त किए नया अनुदान देने से पहले पूर्व के सभी बकायों की समीक्षा का सुझाव दिया है।

सीएजी की सलाह को नजरंदाज कर रही सरकार
सीएजी व अन्य संस्थाएं सरकारी खजाने के नियमानुसार प्रबंधन के लिए कई तरह की निधियों के गठन की संस्तुति कर रहा है। इनमें कई निधियां सांविधानिक व्यवस्था के अंतर्गत गठित की जानी हैं। इसके बावजूद राज्य सरकार ने कई निधियों का गठन नहीं किया। इस तरह कुछ गठित निधियों का नियमों के हिसाब से संचालन नहीं हो रहा है।
कर्मचारियों के नई पेंशन का 385 करोड़ नहीं किए जमा
कर्मचारियों की नई पेंशन स्कीम में अंशदान की धनराशि राष्ट्रीय प्रतिभूति निक्षेपागार लि. के माध्यम से तय निधि प्रबंधक को हस्तांतरित किए जाने की व्यवस्था है। मगर, सरकार ने 2020-21 के दौरान कर्मियों के 385.08 करोड़ रुपये नामित निधि प्रबंधक को दिए ही नहीं गए। यह धनराशि कर्मियों के निवेश फंड का हिस्सा नहीं बन सका। बताते चलें, कर्मचारी नई पेंशन स्कीम की तमाम विसंगतियों के साथ फंड के निवेश में लापरवाही कर नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाकर पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते आ रहे हैं।

एक चौथाई से ज्यादा बजट खर्च ही नहीं, 1.47 लाख करोड़ लैप्स
जनता छोटे-छोटे काम के लिए धरना-प्रदर्शन और आंदोलन को मजबूर होती है लेकिन सरकार बजट होने के बावजूद खर्च ही नहीं कर पाती है। वित्त वर्ष 2020-21 के कुल बजट 5,44,571.20 करोड़ का करीब चौथाई से ज्यादा हिस्सा 1,48,547.50 करोड़ रुपये (27.28 प्रतिशत) खर्च ही नहीं कर पाई। सीएजी ने सरकार की बजट प्लानिंग पर सवाल उठाया है। इसी तरह बिना मूल बजट खर्च किए मनमाने तरीके से पुनर्विनियोग का भी खुलासा किया गया है। सीएजी के मुताबिक 1298.55 करोड़ के पुनर्विनियोग अनावश्यक साबित हुए। नियम है कि बचत की धनराशि 25 मार्च तक वित्त विभाग को सरेंडर कर देनी चाहिए। मगर 1,48,547.50 करोड़ रुपये की कुल बचत में से वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन मात्र 1477.51 करोड़ रुपये सरेंडर किए गए। बाकी 1,47,069.99 करोड़ रुपये लैप्स हो गए।

गबन, नुकसान और चोरी के 9.31 करोड़ के मामले में कार्रवाई नहीं
धोखाधड़ी या लापरवाही से होने वाली हानि, सरकारी संपत्ति की हानि या विनाश के लिए जिम्मेदारी तय किए जाने की व्यवस्था है। 31 मार्च तक इस तरह के9.30 करोड़ रुपये के 135 मामले लंबित थे। यही नहीं 1.71 करोड़ के 32 मामलों में विभागीय व आपराधिक जांच तक शुरू नहीं की गई।


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