बेबी हालदार संघर्ष में कामयाब होंगी - जसम

Update: 2024-04-14 10:25 GMT
लखनऊ: जन संस्कृति मंच, लखनऊ की मासिक गोष्ठी उर्दू लेखक व जसम लखनऊ इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष असग़र मेहदी साहब के निवास तहसीनगंज, ठाकुरगंज में हुई। इसमें दिनेशपुर, उत्तराखंड से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'प्रेरणा अंशु' का अप्रैल अंक जारी किया गया जो बांग्ला की प्रसिद्ध लेखिका बेबी हालदार के जीवन, साहित्य और संघर्ष पर केंद्रित है। गौरतलब है कि बेबी हालदार काफी अरसे से कैंसर से पीड़ित हैं और कोलकाता के एम एस के एम पीजी अस्पताल में भर्ती हैं जहां उनका इलाज चल रहा है। बेबी हालदार का जीवन संघर्ष से भरा है। तेरह साल में विवाह हुआ। तीन बच्चे हुए । बचपन में ही मां का निधन हो गया। ससुराल में पति का अत्याचार बर्दाश्त नहीं हुआ तो 23 साल की उम्र में उन्होंने पति को छोड़ा । फिर कोलकाता छोड़कर फरीदाबाद पहुंच गई । लोगों के घर में वर्षों तक झाड़ू पोछा किया । नौकरानी से साहित्यकार बनी । उन्हें मुंशी प्रेमचंद के दौहित्र प्रबोध कुमार का साथ मिला। उन्होंने झाड़ू की जगह कलम थमाया और फिर आ गई कृति 'आलो- आंधारी'। यह उनकी आत्मकथा है। बेबी मानती हैं कि मौत की दया पर जीने से बेहतर जिंदा रहने की ख्वाहिश के हाथों मर जाना है । बेबी ऐसी ही विशिष्ट लेखिका हैं जो कामवाली से लेखन के क्षेत्र में आई।
गंभीर बीमारी से पीड़ित होने के बाद भी बेबी की जीजिविषा कम नहीं हुई है। वे कहती हैं 'लेखन एक ऐसी चीज है /जिसे मैं कहीं भी कर सकती हूं/ पेड़ के नीचे, सड़क के किनारे /घर पर - भले ही मेरे पास /कोई काम ना हो /मेरे पास हमेशा मेरी कलम होगी'। उनकी आत्म कथात्मक कृति 'आलो आंधारि' की भूमिका ज्ञानपीठ विजेता बांग्ला के प्रसिद्ध कवि शंख घोष ने लिखी है। प्रेरणा अंशु के अप्रैल अंक का आवरण पृष्ठ और आवरण कथा उन्हीं पर केंद्रित है। जसम की मासिक गोष्ठी में सभी ने बेबी हालदार के शीघ्र स्वस्थ होने की अपनी शुभकामनाएं दी और भरोसा दिलाया कि हम उनके साथ हैं। वे अपने संघर्ष में कामयाब होंगी। इस मौके पर तस्वीर नक़वी, असग़र मेहंदी, भगवान स्वरूप कटियार, दयाशंकर राय, विमल किशोर, रफत फातिमा, सिम्मी अब्बास, फरजाना महदी, राकेश कुमार सैनी, सत्य प्रकाश चौधरी, कौशल किशोर आदि मौजूद थे।
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