Allahabad: सिर से गर्दन के कैंसर के बाद सर्वाधिक मौत लंग कैंसर की वजह से
धूम्रपान न करने वाले भी हो रहे लंग कैंसर से ग्रसित
इलाहाबाद: आमतौर पर लंग कैंसर यानी फेफड़ों का कैंसर धूम्रपान करने के चलते होता है. सिगरेट, बीड़ी, हुक्का जैसे तंबाकू उत्पादन इसके प्रमुख कारण होते हैं. विशेषज्ञों की मानें तो सिर से गर्दन के कैंसर के बाद सर्वाधिक मौत लंग कैंसर की वजह से होती है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में धूम्रपान नहीं करने वाले भी लंग कैंसर के तेजी से शिकार बनते रहे हैं. एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज के रेडियोथैरेपी विभाग में इस तरह के मामले देखने को मिल रहे हैं. यहां साल दर साल जहां लंग कैंसर के मरीजों में इजाफा हो रहा है, तो वहीं इसमें महिलाओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है.
रेडियोथैरेपी विभाग के पिछले तीन साल के आंकड़ों पर गौर करें, तो लंग कैंसर के मामले में बढ़ोतरी जारी है. मरीजों में 85 फीसदी से अधिक धूम्रपान करने वालों की संख्या हैं. हालांकि तकरीबन 15 प्रतिशत ऐसे भी मरीज हैं, जिन्हें कभी धूम्रपान नहीं किया. इसके बावजूद वे लंग कैंसर से ग्रसित हो गए. वर्ष 2021 से 2023 तक एएमयू में कुल 10 हजार 948 कैंसर के मरीज पंजीकृत किए गए. इसमें एक हजार से अधिक लंग कैंसर के मरीज मिले हैं. वहीं चौकाने वाली बात तो यह हैं कि इन 1025 लंग कैंसर के मरीजों में तकरीबन 200 महिलाएं भी शामिल हैं. महिला मरीजों में आधे से भी कम धूम्रपान के सेवन की वजह से लंग कैंसर से ग्रसित हुई हैं. जबकि अधिकांश महिला बिना धूम्रपान के ही लंग कैंसर से पीड़ित हैं. वहीं पुरुष मरीजों में भी कुछ मामले बिना धूम्रपान के ही सामने आए हैं.
पैसिव स्मोकिंग व प्रदूषण भी जिम्मेदार पिछले कुछ सालों में धूम्रपान के अलावा अन्य कारणों से भी लंग कैंसर के मामले सामने आने लगे हैं. खासकर सेकेंड हैंड स्मोकिंग (पैसिव स्मोकिंग) यानी सार्वजनिक स्थानों व घरों में धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के संपर्क में लंबे समय से रहना. इसके अलावा वायु प्रदूषण, पत्थर व कोयले की खदानों और फैक्ट्रियों में काम करना, डीजल का एक्सपोजर जैसे मामलों की वजह से भी लंग कैंसर बढ़ रहे हैं.
बेसमेंट का फर्श न रखें क्षतिग्रस्त: एएमयू के रेडियोथैरेपी विभाग की मानें तो हाल में हुए वैज्ञानिकों के अध्ययन से रेडॉन गैस को भी लंग कैंसर के लिए जिम्मेदार माना गया है. खासकर घरेलू व व्यवसायिक भवनों के बेसमेंट के टूट फर्श व दीवारों की दरारों से रेडॉन गैस का रिसाव होता है. इस गैस का रंग व महक नहीं होती और इसे देखा भी नहीं जा सकता है. गैस सांस के माध्यम से शरीर के अंदर जाता है और व्यक्ति को इसका आभास तक नहीं होता है. इसके अलावा रेडॉन गैस चट्टानों, पत्थरों, रेत, मिट्टी, जलते हुए कोयले व फॉसिल फ्यूल से निकलती हैं.