तेलंगना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने बनाई विपक्षी दलों से दूरी

Update: 2023-06-09 09:42 GMT

तेलंगाना तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव 23 जून को पटना में हो रही विपक्षी दलों की बैठक में शामिल नहीं होंगे। जेडीयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री ने इसके लिए काफी कोशिशें की हैं, लेकिन उन्होंने इस बैठक से असहमति जता दी है। जबकि, विपक्षी दलों को एकजुट करने का पहला प्रयास उन्होंने ही शुरू किया था। दअरसल, 5 मुख्य वजहें हैं, जिससे केसीआर इस बैठक से दूर रहने वाले हैं।

 तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक अपनी यह बात पहुंचा दी है कि 23 जून की मीटिंग में उनसे पहुंचने की अपेक्षा न करें। ईटी ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि केसीआर किसी भी ऐसे विपक्षी गुट का हिस्सा नहीं बनना चाहते, जिसमें कांग्रेस को जगह दी जाए। जबकि पटना में होने वाली बैठक में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पहुंचने की बात कही गई है।

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के प्रमुख ने पटना की बैठक से दूर रहने का फैसला बहुत सोच-समझकर लिया है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तेलंगाना में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और कांग्रेस अबतक वहां मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी है। 2018 के चुनाव में तब की टीआरएस को 88 सीटें मिली थीं और कांग्रेस को सिर्फ 19 फिर भी वह दूसरे नंबर पर थी। अगर बीआरएस मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के साथ एक प्लेटफॉरम पर आती है तो इससे चुनावी साल में वोटरों का कंफ्यूजन बढ़ सकता है। 

यह स्थिति राज्य में दो कार्यकाल से सत्ता में बैठी पार्टी की सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।  नॉन-बीजेपी-नॉन, कांग्रेस फ्रंट की बात की थी केसीआर ने विपक्षी एकता का जो अभियान छेड़ा था, वह नॉन-बीजेपी और नॉन-कांग्रेसी गठबंधन की बात थी। एक वरिष्ठ बीआरएस पदाधिकारी ने बताया है, 'केसीआर बाबू ने हमेशा एक नॉन-कांग्रेस-नॉन बीजेप फ्रंट की बात की है। यह मीटिंग उस मूल सिद्धांत के ही खिलाफ है, जिसके लिए वह खड़े हैं। वह कांग्रेस के साथ जगह साझा नहीं कर सकते।'

वन इंडिया ने गुरुवार को एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें विस्तार से बताया गया था कि भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता के सूत्रधार केसीआर ही थे। लेकिन, बाद में बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने उस मुद्दे को उनसे लपक लिया। जिस बैठक का आयोजन और अगुवाई नीतीश कर रहे हों , उसमें जाने का मतलब होगा अपनी जगह का समर्पण कर देना। 

भारत राष्ट्र समिति के सपने का क्या होगा? जो काम आज नीतीश कर रहे हैं, उसकी रूपरेखा कभी केसीआर ने ही तैयार की थी और वह विपक्षी गठबंधन की अगुवाई करके अपने लिए राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जगह देख रहे थे।

उन्होंने राष्ट्रीय इरादे से ही अपनी पार्टी का नाम भी तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदलकर भारत राष्ट्र समिति किया है। लेकिन, जो विपक्षी महागठबंधन बन रहा है, वह उनके मंसूबों से मेल नहीं खाता।

कुछ समय पहले तक बीआरएस जिस तरह से केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक थी, वह आक्रमकता पिछले कुछ महीनों में कम होती नजर आई है। केसीआर की बेटी कविता केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं। ऐसे में विपक्ष के साथ एकजुटता दिखाने का मतलब केंद्र के साथ टकराव की स्थिति को और हवा देना हो सकता है; और यह चुनावी साल में उनकी राजनीति के लिए मुश्किलें भी पैदा कर सकता है।  वैसे तेलंगाना में बीते पांच वर्षों में राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। कांग्रेस भले ही मुख्य विपक्षी दल हो, लेकिन जमीन पर भाजपा ही ज्यादा सक्रिय हुई है। हैदराबाद नगर निगम के चुनाव से लेकर विधानसभा उपचुनावों में भी पार्टी सत्ताधारी दल की प्रमुख चैलेंजर बनकर उभरी है। बीआरएस को लगता है कि ऐसे में कांग्रेस के साथ नाम जुड़ने से भाजपा की चुनौती और बढ़ सकती है।


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