IPCC की रिपोर्ट: ग्लोबल वार्मिंग में सिक्किम का योगदान भारत में सबसे अधिक

पृथ्‍वी के तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी और जलवायु में परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है

Update: 2022-03-16 05:31 GMT
पृथ्‍वी के तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी और जलवायु में परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है। इसी बीच बीते 28 फरवरी को इंटरगवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने पर्यावरण से संबंधित रिपोर्ट जारी किया है। आईपीसीसी की रिपोर्ट ने पूरे विश्व में खलबली मचा दिया है। वहीं भारत मे पश्चिम बंगाल और सिक्किम का वार्षिक औसत तापमान सबसे अधिक बढ़ रहा है। फलस्वरूप अत्यधिक वर्षा और चक्रवात का सामना करना पड़ रहा है।
इस तरह बढ़ रहा धरती का तापमान
आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2050 तक 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक धरती का तापमान बढ़ेगा। वहीं नेशनल ओसेनिक एंड एट्मोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनोएए) के नेशनल सेंटर फार एनवायरमेंटल इन्फार्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2022 का जनवरी महीना इतिहास में छठवीं बार सर्वाधिक गर्म रहा है। बीती जनवरी मे तापमान बीसवीं सदी के औसत तापमान से 0.89 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया है। बताते चलें की पिछले 143 वर्षों के इतिहास मे जनवरी-2020 में बीसवीं सदी के औसत तापमान का सबसे अधिक 1.14 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। इसके अतिरिक्त वर्ष 2016 में तापमान 1.12 डिग्री सेल्सियस, 2017 में 0.98 डिग्री सेल्सियस, 2019 में 0.94 डिग्री सेल्सियस और जनवरी-2007 मे औसत तापमान बीसवीं सदी की तुलना मे 0.92 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसी तरह सभी महीनों की बात की जाए तो यह लगातार 445वां महीना है, जब तापमान बीसवीं सदी के औसत से ज्यादा है। यह स्पष्ट तौर से दर्शाता है कि धरती का तापमान कितनी तेजी से बढ़ रहा है। इससे पहले एनओएए कि रिपोर्ट ने वर्ष 2021 को इतिहास का छठा सबसे गर्म वर्ष बताया था।
पश्चिम बंगाल और उसके पड़ोसी सिक्किम का योगदान सर्वाधिक
ग्लोबल वार्मिंग मे भारत की भी सहभागिता है। जिससे सरकार के साथ पर्यावरणविदो का चिंतित होना लाज़मी हैं। ग्लोबल वार्मिंग इस वैश्विक घटना में भारत के 28 राज्य और 8 गणराजयों में से दो पश्चिम बंगाल और उसके पड़ोसी सिक्किम का योगदान सर्वाधिक है। इंडियन मेट्रोलाजिकल डिपार्टमेंट (आईएमडी) सिक्किम शाखा प्रमुख गोपीनाथ राहा ने बताया कि वर्ष 1951 से 2010 के आंकड़ो का विश्लेषण करने पर यह पाया गया है कि छत्तीसगढ़, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, मेघालय, ओड़ीशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर भारत के अधिकांश राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों मे वार्षिक औसत तापमान बढ़ा है। बल्कि पश्चिम बंगाल और सिक्किम मे सर्वाधिक 0.05 डिग्री सेल्सियस तापमान की बढ़ोत्तरी प्रति वर्ष वार्षिक औसत तापमान में दर्ज किया गया है। वहीं भारत के वार्षिक औसत तापमान बढ़ोत्तरी मे मणिपुर का 0.03 डिग्री सेल्सियस प्रति वर्ष योगदान रहा है। वहीं गोवा, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडू का 0.02 डिग्री सेल्सियस प्रति वर्ष का योगदान रहा है। उन्होंने आगे कहा कि तापमान में वृद्धि या जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहाड़ी और समुद्रतटीय इलाकों पर ही अधिक पड़ता है। अत्यधिक बारिश और चक्रवात की लगातार बदलती आवृति भी जलवायु और तापमान को प्रभावित करता है।
क्लाइमेट चेंज की वजह से प्राकृतिक आपदाओं से नुकसान
सेंटर फार साइंस एंड एनवायरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण बताती हैं कि कुदरत के साथ मानव के बिगड़ते रिश्तों कि वजह से हमारी अनिश्चित्त दुनिया में अब केवल एक चीज निश्चित है- वह यह कि प्रकृति अब आफ्ना रौद्र रूप दिखाने लगी है। और हमसे कह रही है कि बस, अब बहुत हो गया। कोरोना महामारी के बीच बीते दो वर्ष सबके लिए समझ से परे ही रही है। वर्ष 2021 मे सामने आई प्राकृतिक आपदाओं के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को 20.7 लाख करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा था। इसमे 43 फीसदी यानि 8.9 लाख करोड़ रुपए का ही बीमा था, बाकी का बोझ लोगों को खुद पड़ा था। इतना ही नहीं बाढ़, सूखा, तूफान, भूकंप, जंगलों मे लाग्ने वाली आग और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के चलते 2021 के दौरान दुनियाभर में करीब 9200 लोगों को की मौत हुई थी। इससे पहले वर्ष 2020 मे प्राकृतिक आपदाओं के चलते 15.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। जिसमें मात्र 6 लाख करोड़ रुपए का ही बीमा था। ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज रोजाना नई-नई मुसीबतें खड़े कर रहा है।
बदल रहा है जीवन चक्र
हिमालयन नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन (एचएनएएफ) के संयोजक अनिमेष बसु ने बताया कि आईपीसीसी कि रिपोर्ट पूरे विश्व के लिए एक चेतावनी है। धरती का तापमान लगातार बढ्ने से जलवायु, जंगल, पहाड़, ग्लेशियर, नदी आदि को काफी नुकसान हो राहा है। पहाड़ कि चोटियों और ग्लेशियर का तापमान बढ्ने से नदियां प्रभावित हो रही है। बल्कि भूस्खलन और भूकंप की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग कि वजह से पेड़-पौधे और उसके फल-फूल प्रभावित होते है। कभी फल-फूल प्राकृतिक समय के पहले तो कभी बाद में खिल रहे हैं। उन फलों और फूलों के पराग पर आधारित कीट-पतंगो का जीवन चक्र बदल रहा है। जिसकी वजह से कई पेड़-पौधे और कीट-पतंग विलुप्त हो चुके हैं और कुछ विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं। इसका सीधा असर मानव जीवन को भी प्रभावित कर रहा है।
Tags:    

Similar News

-->