सीकर की इस होनहार बेटी कहानी कभी पिता के साथ काम में बटाती थी हाथ,आज कर रही यूरोप में देश को रिप्रेजेंट

सीकर की इस होनहार बेटी कहानी

Update: 2022-06-27 07:38 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सीकर. यदि जीवन में कुछ कर गुजरने की चाह व कोशिश हो तो कठिनाइयां भी कामयाबी को नहीं रोक सकती है। ये साबित कर दिखाया है,सीकर जिले के धोद कस्बे की सांवलोदा लाडखानी की हैंडबॉल खिलाड़ी पूजा कंवर ने। जिसके पिता एक साधारण किसान व मैकेनिक हैं। जो छोटी- मोटी खेती के साथ कुओं में नीचे उतरकर मोटर ठीक करने जैसा काम करते हैं। लेकिन, अभावों से जूझते परिवार से निकलकर भी आज पूजा यूरोप के स्लोवेनिया में आयोजित हो रहे विश्व जूनियर हैंडबॉल चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है। एक छोटी सी गौडों की ढाणी से निकलकर इस मुकाम तक पहुंची पूजा के संघर्ष की बानगी ये है कि जयपुर एकेडमी की फीस व यूरोप भेजने के लिए भी पिता सुरेन्द्र के पास रुपये नहीं थे। ऐसे में एक लाख 80 हजार रुपए लोगों से उधार लेकर उन्होंने बेटी को देश के लिए खेलने भेजा है।

सरकारी स्कूल में की पढ़ाई
आर्थिक स्थिति कमजोर की होने की वजह से पूजा की पढ़ाई सरकारी स्कूल में ही हुई। उसने सांवलोदा लाडखानी की राजकीय माध्यामिक विद्यालय में प्रवेश लिया। जहां कक्षा सात में शारीरिक शिक्षक मघाराम ने उसे हेंडबॉल की ट्रेनिंग देना शुरू किया। बाद में शारीरिक शिक्षक भंवर सिंह ने प्रशिक्षण दिया। अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार करती हुई पूजा ने जिला व राज्य स्तार की चार तथा राष्ट्रीय स्तर की दो प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। जहां अपने उम्दा प्रदर्शन के चलते पूजा का चयन पिछली साल जयपुर में आयोजित 8वीं एशियन महिला यूथ हैंडबॉल चैंपियनशिप के लिए हुआ। जिसके बाद इस बार भी पूजा यूरोप में 22 जून से 3 जुलाई तक आयोजित हो रहे जूनियर विश्व चैंपियनशिप के लिए चुनी गई।
पिता के साथ करती है खेती, उधार से भेजा यूरोप
पूजा खेल के साथ खेती भी करती है। बचपन से ही वह पिता व मां के साथ खेती का काम संभाल रही थी। अब भी वह अपनी प्रेक्टिस से फ्री होते ही घर पहुंचती है और माता- पिता के घरेलु व खेती के काम में हाथ बंटाती है। पूजा के चाचा उम्मेद सिंह के अनुसार खराब माली हालत के चलते इस बार भी परिवार के पास जयपुर की हेंडबॉल एकेडमी व यूरोप भेजने के रुपये नहीं थे।
परिवार ने उधार लेकर भेजा विदेश, सरकार से की ये अपील
अपनी बिटियां के सपनों को पूरा करने के लिए परिवार ने लोगों से उधार में रुपये लेकर उसे खेलने भेजा। साथ ही उन्होंने सरकार से मांग की कि खिलाडिय़ों को आने- जाने का टिकट ही नहीं बाकी खर्चा भी देना चाहिए। ताकि गरीब खिलाडिय़ों को भी प्रोत्साहन मिले।


Tags:    

Similar News

-->