आरटीयू में खुलेआम चल रहा था आरोपी प्रोफेसर का खेल

Update: 2023-01-02 13:27 GMT

कोटा न्यूज़: राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों पर दबाव बनाना और अपनी बात न मानने पर फेल करने का खेल आरोपी प्रोफेसर गिरीश परमार पिछले कई सालों से खुलेआम खेल रहा था। यदि, विश्वविद्यालय प्रशासन थोड़ी भी गंभीरता दिखाता तो 4 साल पहले ही उसकी करतूतों की परतें खुल चुकी होती। लेकिन, आरटीयू के किसी भी प्रोफेसर ने इसके खिलाफ आवाज तक नहीं उठाई और मनमानी पर पर्दा डालते रहे। वह छात्रों को क्लास में खुलेआम धमकाता था कि यूनिवर्सिटी में किसी से उसकी शिकायत की तो वह उसे फेल कर देगा। दैनिक नवज्योति को मिली आरोपी छात्रा ईशा यादव व परमार की बातचीत की रिकॉर्डिंग में इस बात का खुलासा हो रहा है कि परमार ने वर्ष 2019 बीटेक बैच के छात्र अमन मीना सहित उसके सहयोगी दस छात्रों को फाइनल सेमेस्टर में जानबूझकर फेल किया है। जबकि, छात्रों की पढ़ाई का ट्रैक रिकॉर्ड काफी अच्छा था। नवज्योति के पास सबूतों सहित कई छात्र सामने आए हैं लेकिन आरटीयू की लचर व्यवस्था के चलते उनके नाम नहीं दिए जा रहे। एक छात्र पूरी तरह से पहले से सामने आ चुका था लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी।

आरटीआई लगानी पड़ी: छात्र अमन मीना ने बताया कि पहले सेमेस्टर से सातवें सेमेस्ट तक उसे सीजीपीए (ग्रेडफर्स्ट डिवीजन) मिली हैं। इसमें कोई बैक भी नहीं है। लेकिन, आठवें सेमेस्टर में उसे मात्र डेढ़ नम्बर से प्रो. गिरीश ने जानबूझकर फेल कर दिया। इसकी तस्दीक छात्रा ईशा यादव व परमार की बातचीत की रिकॉर्डिंग से होती है। आरटीयू में कॉपी चेक होने के बाद छात्रों को दिखाई जाती है लेकिन मुझे नहीं दिखाई गई। इसके विरोध में 3 अगस्त 2022 को मैंने 181 मुख्यमंत्री सूचना पोर्टल पर शिकायत की। कार्रवाई नहंी होने पर सितम्बर माह में कॉपी दिखाने के लिए आरटीआई लगाई लेकिन कॉपी नहीं दिखाई गई। इसके बाद एवीडेंस एक्ट 72 के तहत फिर से आरटीआई लगाने पर नवम्बर के आखिरी सप्ताह में कॉपी दिखाई गई। कॉपी देखने पर पता लगा कि अधिकतर प्रश्नों के जवाब में मुझे परमार ने 2 ही नम्बर दिए।

सबसे बड़ी लापरवाही: ग्रेड मॉडरेशन का निष्क्रिय होना

आॅटोनॉमस रेगुलेशन में ग्रेड मॉडरेशन कमेटी गठित किए जाने का प्रावधान है। विभागाध्यक्ष इस कमेटी का गठन करता है, जिसमें तीन सदस्य मनोनित किए जाते हैं। यह कमेटी विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम पर नजर रखती है, हर गतिविधियों की मॉनिटरिंग करती है। असमान्य परिणाम घोषित होने पर कमेटी द्वारा जांच की जाती है। यदि इसमें कॉपी चेक करने वाला शिक्षक दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ अग्रिम कार्रवाई के लिए रिपोर्ट तैयार कर विभागाध्यक्ष को दी जाती है। लेकिन वर्ष 2019 के बाद से इस कमेटी का गठन नहीं किया गया। जिसकी वजह से आरोपी प्रोफेसर परमार द्वारा परीक्षा परिणाम में बरती गई मनमानी अंकुश नहीं लग सका। यह आरटीयू प्रशासन की सबसे बड़ी कमी थी कि उसने इस कमेटी को निष्क्रय रखा।

बैच-बीटेक वर्ष 2019 छात्रों की जुबानी: 5 से 8वें सेमेस्टर तक यूं चली परमार की मनमानी

वर्ष 2019 में बीटेक के पांचवे सेमेस्टर से ही प्रो. परमार की मनमानी का सिलसिला शुरू हो गया था, जो आखिरी 8वें समेस्टर तक जारी रहा। पांचवे सेमेस्टर में ही उसने विद्यार्थियों को टारगेट करना शुरू कर दिया था। वह क्लास में खुलेआम कहता था कि जो उससे बनाकर नहीं रखेगा वह उसे फेल कर देगा। नाम न छापने की शर्त पर छात्र ने बताया कि वर्ष 2020 में कोराना काल चल रहा था। यूनिवर्सिटी बंद थी। उस वक्त परमार ने छात्र को फोन कर पांचवे सेमेस्टर के सभी छात्रों का आॅनलाइन असाइनमेंट लेने और पोर्टल पर नम्बर चढ़ाने का काम सौंपा। इस पर छात्र ने ग्रुप पर लिंक भेजकर सभी के असाइनमेंट जमा कर दिए। लेकिन, एक आंदोलन के कारण इंटरनेट बंद होने से पोर्टल पर नम्बर चढ़ाने में असमर्थता जताते हुए मना कर दिया। इस पर परमार ने अपशब्द बोलते हुए देख लेने की धमकी दी।

5वां सेमेस्टर: छात्रों ने आरोप लगाया कि जनवरी 2021 में पांचवे सेमेस्टर की परीक्षा के दौरान प्रैक्टिकल एग्जाम देने हम लोग आरटीयू आए थे। उस समय प्रो. परमार एग्जाम से पहले ही कह दिया था कि तुम लोग तो फेल होने वाले हो। हालांकि, तैयारी होने के चलते हम फेल नहीं हुए। क्लास में उनका घूरना, बात-बात पर ताने मारना, फेल करने की धमकी देना जारी रहा। उनके इस बर्ताव से सभी छात्र मानसिक दबाव में रहते थे।

6 सेमेस्टर: फरवरी 2021 में छठा सेमेस्टर शुरू हुआ। इस दौरान परमार ने कुछ छात्रों को क्लास के सभी विद्यार्थियों का असाइनमेंट लेना, पोर्टल पर नंबर चढ़ाना, उनके लिए मुखबरी करना, गर्ल्स को उनके रसूख के बारे में बताने सहित अन्य काम सौंपे। इस पर छात्रों के मना करने पर भुगतने की धमकी दी गई।

खुले आम कहता था, वीसी हो या डीन सब मेरे आदमी

7वां सेमेस्टर : एक छात्र ने बताया कि जुलाई 2021 में सातवां सेमेस्टर शुरू हुआ। उस समय प्रो. परमार प्रोजेक्ट हैड थे। उनके अंडर में दो सब्जेक्ट, एक लैब, प्रोजेक्ट सेमीनार थी। बीटेक में सबसे ज्यादा नम्बर प्रोजेक्ट व इंडस्ट्रियल रिपोर्ट के ही होते हैं। जिसके चलते विद्यार्थियों को उनकी मनमानी सहनी पड़ती थी। वे क्लास में खुलेआम कहते थे कि जो मुझसे बनाकर नहीं रखेगा, उसे तो मैं फेल करूंगा। वीसी हो या डीन सब मेरे आदमी है। शिकायत पर भी मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसी सेमेस्टर के दौरान उन्होंने टेस्ट लिया। जिसकी कॉपी चेक होने के बाद क्लास में दिखाई गई। एक प्रश्न का सभी ने एक जैसा ही आंसर लिखा। इसके बावजूद एक छात्रा को 10 में से 9 नम्बर दिए गए जबकि, अन्य विद्यार्थियों को 7 से कम नम्बर दिए गए। क्लास की एक छात्रा ने विरोध किया तो प्रोफेसर ने उसकी कॉपी ही फाड़ दी।

8वां सेमेस्टर: छात्रों ने बताया कि फरवरी 2022 में 8वां सेमस्टर शुरू हुआ तो परमार ने बोला कि यह आखिरी सेमेस्टर है। इसमें वो ही पास होगा जो मुझसे बनाकर रखेगा। नहीं, तुम लोगों को अगले साल भी मेरे पास ही आना पड़ेगा। मेरे आगे-पीछे चक्कर काटने पड़ेंगे।

20 में से 14 प्रश्न हल किए और 2 नंबर मिले

एक छात्र ने बताया कि आरटीआई द्वारा मांगी गई रिलाइबिलिटी इंजीनियरिंग परीक्षा की कॉपी देखने पर पता लगा कि अधिकतर प्रश्नों के जवाब में मुझे 2 ही नम्बर दिए गए। पेपर में कुल प्रश्नों की संख्या 20 थी, जिसमें से 14 प्रश्न हल किए थे। सभी प्रश्न 2, 5 और 10 अंकों के थे। सबसे ज्यादा 10 अंकों के प्रश्न हल किए थे। जिसमें से एक ही प्रश्न में 3 नम्बर मिले बाकि के प्रश्नों के जवाब मे दो-दो ही नम्बर मिले। जबकि, हल किए गए प्रश्नों के औसत 5 से 7 नम्बर आसानी से मिलने चाहिए थे।

रि-चेकिंग में 1 नम्बर और काट लिया

उत्तर पुस्तिका की जांच से संतुष्ट नहीं था। ऐसे में रि-चेकिंग के लिए एप्लाई किया लेकिन आरटीयू में कॉपी री-चेकिंग के लिए आॅनलाइन फॉर्म भरना पड़ता है। जिसके लिए लिंक ओपन होना जरूरी है। जब मैंने एप्लाई किया तो लिंक बंद था। जिसे खोलने के लिए अन्य प्रोफेसरों से गुहार लगाई लेकिन किसी ने भी मदद नहीं की। बाद में तत्कालीन कुलपति निलिमा सिंह ने लिंक ओपन कर दिया। इसके बाद री-चेकिंग के लिए एप्लाई कर सका। प्रो. मनीषा भंडारी ने पुन: कॉपी की जांच कर एक नम्बर और काट लिया। इस तरह से अब ढाई नम्बर से फेल कर दिया गया।

यूनिवर्सिटी ने नहीं की कार्रवाई

उनके पास कई शिकायतें आती थी। एक छात्र तो इतना परेशान था कि वह आत्महत्या करने पर उतारू था। उसको काउंसलिंग के जरिए हमने समझाया। यूनिवर्सिटी को पत्र भी भेजे लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रो. परमार का शिकार अकेला अमन नहीं है बल्कि 10 और छात्र हैं, जिन्हें भी दुष्भावनाओं से फेल किया गया था। रिकॉर्डिंग में वह इस बात का जिक्र कर रहा है कि उसने अमन मीना सहित अन्य छात्रों को फेल किया। छात्र अमन की कॉपी को निष्पक्ष रूप से चेक करवाकर इंसाफ किया जाए।

- प्रतिभा माहेश्वरी, संस्थापक, अस्मिता संस्था जयपुर

शिक्षिका के अंडर गारमेंट चुराता पकड़ा गया था

आरोपी प्रोफेसर की करतूतों की परतें जैसे-जैसे खुल रही हैं वैसे वैसे चौंकाने वाले खुलासे भी हो रहे हैं। परमार एक शिक्षिका के छत पर सूख रहे अंडर गारमेंट चुराते हुए पकड़ा गया था। इस पर शिक्षिका के पति ने उसकी जमकर पिटाई भी की थी। यह मामला थाने तक पहुंचा था। परीक्षा में पास करने की एवज में छात्रा से अस्मत मांगने के मामले में परमार वर्तमान में जेल में है।

इस संबध में मैं कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि यह मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। प्रोक्टर का काम केवल एडमिशन, अनुशासन, डिग्री, टीसी देने का होता है। इस संबंध में एग्जाम चेयरमैन से बात की जा सकती है। मुझसे किसी ने शिकायत नहीं की।

- ब्रजेश त्रिपाठी, चीफ प्रोक्टर आरटीयू

मैने संबंधित छात्रों की कॉपी प्रश्नों के जवाब देखकर ही चेक किए हैं। री-चेकिंग की कॉपी में कोई नाम या रोल नंबर नहीं आता। ऐसे में यह कहना गलत है कि हमने बेवजह किसी के नम्बर काटे हों। रही बात री-मार्क की तो आॅटोनॉमी में यह नियम है कि कॉपी जांचने वाला शिक्षक कॉपी में नंबर देने के बाद हाऊ या कुछ और यह रिमार्क लिख सकता है। फिर भी कोई विद्यार्थी असंतुष्ट है तो वह फिर से री-चेकिंग करवा सकता है। इस संबंध में एग्जाम कंट्रोलर से बात कर सकते हैं।

- प्रो. मनीषा भंडारी, आरटीयू

यदि विद्यार्थियों ने डिपार्टमेंट में किसी तरह की कोई शिकायत की है तो मामले की नए सिरे से जांच करवाई जाएगी। जांच में संबंधित प्रोफेसर दोषी मिलता है तो उसके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।

- प्रो. एके द्विवेदी, डीन फैकल्टी अफेयर, आरटीयू

प्रो. परमार द्वारा द्वेषतापूर्वक छात्रों को परीक्षा में फेल करने जैसी कोई शिकायत मुझे नहीं मिली है और न ही विद्यार्थियों ने इस संबंध में कोई ई-मेल किया है। इसके अलावा कोई सोशल एक्टिविस्ट की भी ई-मेल द्वारा कोई शिकायत नहीं मिली है।

- प्रो. अनिल माथुर, पूर्व डीन फैकल्टी अफेयर, आरटीयू

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