शांतिनिकेतन अब विश्व धरोहर, टैगोर की शिक्षा व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति

Update: 2023-09-28 17:23 GMT
कोटा। कोटा यूनेस्को का शांतिनिकेतन को विश्व विरासत स्थल घोषित करना बेहद महत्त्वपूर्ण है। यह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की शिक्षा व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति तो है ही। इसका एक अभिप्राय यह भी है कि शिक्षा वैसी हो जिसमें बच्चे प्रकृति से प्रेम करना सीख्रें। रवींद्रनाथ टैगोर के पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने शांतिनिकेतन में 1851 में आश्रम की स्थापना की थी। वहां विद्यालय की स्थापना 1901 में स्वयं टैगोर ने की। प्रकृति के सान्निध्य और साहचर्य में खुले परिवेश में बालकों को शिक्षा दी जाती थी। बच्चे प्रकृति से प्रेम करना सीखते थे। कमोबेश यह बात अब भी वहां बची हुई है। विश्व भारती विश्वविद्यालय की शुरुआत 1918 में हुई।
विश्व भारती का प्रारंभिक कार्य था विभिन्न स्तरों पर भारतीय विद्या की चर्चा के साथ पूर्व और पश्चिम के विचारों का आदान-प्रदान। विश्व भारती में रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय धर्म, दर्शन, ज्ञान, साहित्य, संगीत, कला के साथ ही एशिया और यूरोप की भाषाओं, और साहित्य के अनुशीलन का यथोचित प्रबंध किया। 1908 में आचार्य क्षितिमोहन सेन ने शांतिनिकेतन आकर संत साहित्य के अध्ययन की शुरुआत की। आचार्य सेन के ‘कबीर' (1910) के आधार पर रवींद्रनाथ ने ‘वन हंड्रेड पोयम्स ऑफ कबीर’ (1914) प्रस्तुत किया। 1913 में रवींद्रनाथ को नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद देश-विदेश में उनकी प्रसिद्धि बढ़ी। इसका लाभ शांतिनिकेतन को भी मिला। यूरोप के विद्वान भी अध्ययन-अध्यापन के लिए शांतिनिकेतन आने लगे। 1921 में फ्रांस से प्रो. सिल्वां लेवी अतिथि अध्यापक के रूप में शांतिनिकेतन आए। वे बहुभाषाविद् थे। वे बौद्ध अध्ययन में निष्णात थे। विश्व भारती में चीनी और तिब्बती भाषा-संस्कृति के अध्ययन की शुरुआत उन्होंने ही की। प्रो. लेवी पूर्व और पश्चिम के दर्शन पर भी व्याख्यान देते थे। उनकी कक्षा में रवींद्रनाथ भी आते थे। 1922 में चेकोस्लोवाकिया से मारिस विंटरनित्स आए। 1923 में कला समीक्षक स्टेला क्रॉमरिश तथा अरबी-फारसी के रूसी पंडित बग्दानोव शांतिनिकेतन आए। बग्दानोव के साथ ही विश्वभारती में इस्लामी धर्म- संस्कृति के अध्ययन की शुरुआत हुई।
रवींद्रनाथ टैगोर ने 1924 में चीन और जापान की यात्रा की जिससे इन देशों का भी शांतिनिकेतन से घनिष्ठ संबंध कायम हुआ। 1928 में चीन से तान युन शान शांतिनिकेतन आए। उन्होंने चीन में साइनो-इंडियन सोसाइटी की स्थापना कर शांतिनिकेतन में चीनी अध्ययन के केन्द्र के लिए अर्थ संग्रह किया जिससे 1937 में शांतिनिकेतन में चीन भवन का निर्माण हुआ। 1928 में मुनि जिनविजय ने शांतिनिकेतन में जैन धर्म तथा डॉ. तारापोरवाला ने जरतुस्ती धर्म के अध्ययन की शुरुआत की। इस प्रकार शांतिनिकेतन में हिन्दू, बौद्ध, जैन, इस्लामी तथा पारसी धर्म और संस्कृति तथा अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रेंच, जर्मन, चीनी, तिब्बती, अरबी-फारसी आदि भाषाओं का विशेष अध्ययन होने लगा। हिंदी पढ़ाने के लिए 1930 में हजारी प्रसाद द्विवेदी शांतिनिकेतन आए। शांतिनिकेतन में 1938 में हिंदी भवन की स्थापना हुई। रवींद्रनाथ की यह भी इच्छा थी कि भारतीय संस्कृति में जिस सर्वधर्म का मिलन हुआ है, उसकी प्रत्येक धारा का विस्तृत अध्ययन और शोध विश्वभारती में हो। विश्वभारती का घोषित उद्देश्य है- यत्र विश्वं भवत्येक नीड़म्। समस्त विश्व यहां एक नीड़ में समाहित होगा। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ही गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पूरे प्रयास किए। शांतिनिकेतन पहले आश्रम था, विद्यालय बना और फिर विश्वविद्यालय, जो वैदिक ऋषि की तरह पूरे विश्व को एक नीड़ मानता है। 1952 में संसद के एक अधिनियम द्वारा विश्व भारती को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया। विश्व भारती के पास गौरवशाली अतीत रहा है। वह अतीत जिसमें निरंतर यह प्रयास होता रहा कि ज्ञान के नए क्षितिज उदित हों। उस परंपरा को निरंतर आगे बढ़ाने की चुनौती है।
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