कांशीराम की विरासत पर छिड़ी असली नकली की जंग

Update: 2023-04-07 08:27 GMT

लखनऊ न्यूज़: लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में नए सिरे से जातीय समीकरण बनाने की जद्दोजहद चल रही है. राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने में ओबीसी और दलित वोट बैंक का बड़ा महत्व है. इसीलिए इनका साथ पाने के लिए सभी पार्टियां बेताब रहती हैं. भाजपा हो या सपा या फिर बसपा.... समाजवादी पार्टी कांशीराम के सहारे दलित वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहती है, तो बसपा इसे बचाने में लगी हुई है. यूपी में कांशीराम की विरासत पाने के लिए असली और नकली की जंग भी छिड़ी हुई है.

बसपा की स्थापना वर्ष 1984 में कांशीराम ने की थी. उन्होंने ही इस पार्टी के साथ दलितों और अति पिछड़ों को जोड़ने का काम किया. मायावती इसी वोट बैंक के सहारे यूपी की सत्ता में राज करती आई हैं. इसीलिए सपा द्वारा कांशीराम का नाम लिए जाने और प्रतिमा का अनावरण किए जाने से मायावती बेचैन हैं.

वह यह भी कह रही हैं कि सपा ने ऐहसान फरामोशी न की होती तो यह गठबंधन देश पर राज कर रहा होता, न कि भाजपा. मायावती इसके सहारे कॉडर वोट बैंक को यह बताना चाह रही हैं कि भाजपा के सत्ता में आने के लिए सपा जिम्मेदार है.

चुनाव दर चुनाव गिरा बसपा का वोट बैंक

बसपा को भाजपा की सक्रियता की भी चिंता सता रही है. कारण यह कि भाजपा के सबका साथ सबका विकास के मंत्र के चलते दलित उत्थान के कार्यक्रम चलाए जाने, दलितों के घर भोज और सरकारी योजनाओं में कोई भेदभाव न होने के चलते बसपा का वोट बैंक वर्ष 2014 से लगातार घटता जा रहा है. वर्ष 2014 में गिरकर 19.77 फीसदी रह गया और कोई भी सीट नहीं मिली, लेकिन वर्ष 2019 में सपा से गठबंधन पर चुनाव लड़ने पर बसपा का वोटिंग प्रतिशत 19.36 ही रहा, लेकिन सीटें 10 मिल गई. देखा जाए तो भाजपा की सक्रियता से पहले उसका वोट बैंक लोकसभा चुनाव वर्ष 2004 में उसे 24.67 फीसदी वोट मिला. वर्ष 2009 में यह 27.20 था.

कांशीराम के कुछ करीबी अब सपा में शामिल हो चुके

कांशीराम के सहयोगी रहे कई नेता सपा में पहुंच चुके हैं. खासकर आरके चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य, लाल जी वर्मा, रामअचल राजभर जैसे बसपाई इन दिनों अखिलेश को मजबूत करने में लगे हैं. अखिलेश इनके सहारे ही बसपा वोटबैंक में सेंधमारी करने की चालें चल रहे हैं. इन नेताओं का कहना है कि असली बसपाई वे ही हैं.

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