बूंदी में दिखा महाराष्ट्र का राजकीय पक्षी, पर्यावरण के लिए माना जाता शुभ

Update: 2023-04-12 16:18 GMT
बूंदी। बूंदी राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय गरमपुरा, लखेरी, बूंदी में महाराष्ट्र का राजकीय पक्षी हरा कबूतर देखा गया। हरे कबूतर के बच्चे को सबसे पहले जमीन पर पड़े छात्रों ने देखा। हरे कबूतर का बच्चा घायल बताया जा रहा है। शिक्षकों ने मौके पर पहुंचकर उसका इलाज कराया और उसे सुरक्षित रखते हुए भोजन पानी की व्यवस्था की। लंबे समय बाद लखेरी में हरा कबूतर देखा गया है। इसे पर्यावरण के लिए शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र का राजकीय पक्षी हरा कबूतर है जिसे हरियाल के नाम से भी जाना जाता है। हरे रंग के कबूतर दुर्लभ माने जाते हैं। वे अब कम ही नजर आते हैं। बूंदी के लखेरी स्थित राजकीय वरिष्ठ विद्यालय गरमपुरा में दुर्लभ हरे कबूतर का एक बच्चा जमीन पर पड़ा देखा गया. सबसे पहले जब छात्रों ने कबूतर के बच्चे को देखा तो वे भी हैरान रह गए। छात्रों ने इसकी जानकारी शिक्षकों को दी।
शिक्षकों ने मौके पर पहुंचकर उसे सुरक्षित रखा और अनाज व पानी की व्यवस्था की। स्कूल के शिक्षक अमरीश गोचर और भूपेंद्र परेटा ने बताया कि हरे कबूतर के बच्चे को देखकर छात्रों ने आपबीती सुनाई. कबूतर के बच्चे को देखा तो वह थोड़ा जख्मी लग रहा था, जिसके कारण वह उड़ नहीं पा रहा था। कबूतर के बच्चे का उपचार कराकर सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया गया है। शिक्षक अमरीश गोचर बताते हैं कि लंबे समय बाद हरे रंग का कबूतर देखा गया है। पहले ऐसे पक्षी पीपल और गूलर के पेड़ों पर काफी दिखाई देते थे।
बूंदी के लखेरी में लंबे समय बाद हरा कबूतर देखकर पर्यावरण प्रेमियों की यादें ताजा हो गईं। लखेरी के सरकारी अस्पताल के फार्मासिस्ट इरशाद पठान ने बताया कि बहुत पहले कस्बे की एसीसी कॉलोनी में पीपल और गूलर के पेड़ों पर अक्सर ऐसे पक्षी देखे जाते थे. बदलते परिवेश के साथ अब ये दिखना बंद हो गए हैं। पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि हरे कबूतर अक्सर जोड़े में रहते हैं और उन पेड़ों में बसेरा करते हैं जहां भोजन और पानी के साथ सुरक्षित आश्रय उपलब्ध होता है। इनकी चोंच और टांगें पहले सामान्य और बाद में पीली हो जाती हैं। कोटा के पक्षी विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का कहना है कि हरा कबूतर दुर्लभ है। बहुत समय पहले ये हर जगह देखे जाते थे, लेकिन पर्यावरण परिवर्तन और पक्षियों के आवास के नुकसान के कारण कई बार ये शहरों और कस्बों के आसपास देखे जाते हैं। इन दिनों इन्हें कोटा के आसपास घने पेड़ों पर देखा जा सकता है।
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