Kota: मनोज मुंतशिर शुक्ला ने कोचिंग छात्रों में भरा जोश, सफलता हासिल करने का दिया मूल मंत्र
Kota कोटा । कोई भी असलफता आपके सपनों और जीवन से बड़ी नहीं हो सकती। हारा वही जो लड़ा नहीं और वह लड़ाई ही क्या जिसे जीते बिना छोड़ दिया जाए। इसलिए जिंदगी का हर लम्हा पूरी शिद्दत से जीयो। सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज याद रखो कि हमें सफल होकर ही रहना है। सफलता साधन से नहीं सिर्फ साधना से ही हासिल की जा सकती है। वो सपने ही क्या जो औकात से बड़े न हों।
राष्ट्रीय दशहरा मेला के विजयश्री रंगमंच पर मंगलवार को कोटा ने हौसलों की उड़ान भरी। मौका था प्रख्यात लेखक और गीतकार मनोज मुंतसिर से रूबरू होने का। उन्होंने, मोटिवेशनल प्रोग्राम के जरिए कोटा कोचिंग छात्रों को अपने अनमोल अनुभवों से खूब प्रेरित किया। उन्होंने गीत, संगीत, कविता, शायरी और अनुभवों से छात्र छात्राओं को आत्मविश्वास से भर दिया। उन्होंने अनवरत बोलते हुए जिन्दगी के सूत्र, सफलता के टिप्स, तनाव मुक्ति की सीख दी। मनोज मुंताशिर शुक्ला के मंच पर आते ही मोबाइल की टॉर्च से रंगमंच परिसर सराबोर हो उठा। कार्यक्रम एलन कैरियर इंस्टिट्यूट की ओर से प्रायोजित किया गया था।
कार्यक्रम की शुरुआत जिला कलक्टर डॉ.रविन्द्र गोस्वामी, मेला समिति के अध्यक्ष विवेक राजवंशी, एलन कैरियर इंस्टिट्यूट के निदेशक नवीन माहेश्वरी, बृजेश माहेश्वरी, आयुक्त अशोक त्यागी, मेलाधिकारी जवाहर लाल जैन, अतरिक्त मेलाधिकारी महेश चंद गोयल, योगेन्द्र शर्मा, विजयलक्ष्मी, मेला प्रभारी महावीर सिसोदिया ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया।
मंच पर आते ही कोटा के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि कोटा सपनों का शहर है। मुम्बई से ज्यादा सपने कोटा की आंखें देखती हैं। छोटे-छोटे शहरों और गांवों से आए बच्चे यहां दुनिया की सबसे बड़े शिक्षण संस्थानों में पढ़ने और फिर दुनिया के सबसे बड़े संस्थानों में काम करने जाते हैं। कोटा शहर नहीं पूरा मुल्क है। और, मुल्कों में भी राजस्थान जैसी वीर भूमि। आखिर, कैसे कोई हार सकता है। इस मिट्टी में रहकर। चम्बल का पानी पी कर। जो सिर्फ और सिर्फ लड़ना ही सिखाता है। यह महाराणा प्रताप की भूमि है। जिसने घास की रोटियां खाकर भी हथियार नहीं डाले, हार नहीं मानी। इसलिए कोटा आने वाले बच्चों को पहले से ही बता दिया जाना चाहिए कि “जनाब..! हारना मना है, यह कोटा है। चम्बल का पानी और वीरों की धरा है।”
उन्होंने कहा कि वह शिक्षा अधूरी है, जिसमें संस्कार ना हो और संस्कारों के बिना सफलता अधूरी है। आज हम मंगल पर जीवन खोज रहे हैं, लेकिन भगवान राम ने आज से 7500 साल पहले जीवन में मंगल खोज लिया था। हम दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है। लेकिन इंसान की तरह धरती पर रहना केवल राम सिखा सकते हैं। रामायण से बड़ा कोई फार्मूला नहीं हो सकता और राम से बड़ा कोई नायक नहीं हो सकता। उन्होंने बाहुबली और केबीसी के संवाद बोलकर सुनाए। आगामी फिल्म इमरजेंसी का ट्रेलर दिखाते हुए कहा कि इसे देखने के बाद भारत का काला अध्याय जानोगे और भारत भक्ति दुगुनी हो जाएगी। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान, राणा प्रताप, श्रीराम और चाणक्य को फैमिली ट्री बताया। सनसनाती हवा सी थी वो.. दीये जैसी उजाला थी वो के द्वारा महिला सम्मान की सीख देते हुए कहा कि महिला का सम्मान जरूर करें, यह किसी को खूबसूरत कहने से ज्यादा खूबसूरत है।
दिखाए भारत के तेवर
मनोज मुंतशिर शुक्ला ने भारत के तेवर बताते हुए कहा कि अंग्रेज भारत को सपेरे का देश कहते थे और आज भारत का सबमरीन देखकर थर्राते हैं। चंद्रमा पर शिव शक्ति पॉइंट देखकर दांतों तले उंगली दबाते हैं। विंस्टन चर्चिल कहते थे भूख से मर जाएगा यह देश। वक्त ने जवाब दिया आज स्पेस से लेकर खेल के मैदान तक भारत का नाम है। हम भाला फेंक कर गोल्ड उठा लाते हैं। हम वेदों पुराणों की भाषा बोलते हैं, लेकिन क्वांटम फिजिक्स भी हमें बराबर आता है। दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन ड्राइव चलाने वाला देश भारत है। हमारे सीने में हवन कुंड की चिंगारी है। 19वीं सदी ब्रिटेन की, 20वीं सदी अमेरिका की थी तो 21वीं सदी तुम्हारी और हमारी है। 75 साल पहले नहीं रुके जब रेंग रहे थे तो अब तो पंख उठा लिए हैं।
वक्त आ गया है कहावतें बदलने का
मनोज मुंतशिर शुक्ला ने कोचिंग छात्रों को प्रेरित करते हुए कहा कि दुनिया कहती है कि जो जीता वही सिकंदर। लेकिन जिसे हिंदुस्तानियों ने खदेड़ दिया हो वो कैसा सिकंदर। इसलिए वक्त आ गया है कि कोटा के बच्चे अब इन झूठे नायकों को मिटाकर अपने और असली नायकों को प्रतिस्थापित करेंगे। लेकिन, यह तब तक संभव नहीं जब आप खुद को स्थापित नहीं कर सकते। इसलिए पूरी जान झोंक दीजिए। सफलता जरूर मिलेगी। क्योंकि, हमारे यहां तो भगवान भी सालों जंगलों में भटकते हैं, लेकिन मर्यादाएं नहीं छोड़ते। हमारे यहां तो राजा भी सालों घास की रोटियां खाते हैं, लेकिन हार मंजूर नहीं करते। तो फिर आपको भी जीतना होगा। खुद से, अपने सपनों से, इम्तहानों से और हर अवसाद से।
खुद के संघर्षों से किया प्रेरित
मनोज मुंतशिर शुक्ला ने बच्चों से संवाद स्थापित करते हुए कहा कि आज आपसे मुम्बई का मनोज मुंतशिर मिलने नहीं आया। इलाहाबाद का अल्हड लड़का, गौरीगंज का छोरा मिलने आया है। मेरी आपकी कहानी एक जैसी है। हम दोनों अपने सपनों को साकार करने के लिए परदेशी हो गए। हितोपदेश में लिखा है, घर छोड़ना विद्यार्थी का सबसे बड़ा लक्षण है। विद्यार्थियों को कभी नहीं भूलना चाहिए कि जो अपना घर छोड़कर नहीं आया, वह शिक्षा और सफलता हासिल नहीं कर सकता। आज आप सूट-बूट में मुझे देख कर खुश हो सकते हैं, लेकिन इस खुशी को हासिल करने के लिए फटे कपड़े, नंगे पैर और खाली पेट भी जिया हूं। बस कभी अपना लक्ष्य नहीं भूला और ना ही सपनों का पीछा करना। नतीजा, आप देख रहे हैं कि एक छोटे से गांव से निकले इस लड़के को पूरी दुनिया मनोज मुंतशिर के नाम से जानती है। उन्होंने कहा, ष्मैं अपनी यादों से बिछडा, मुझे यह रंज रहता है, मेरी यादों में मेरा गौरीगंज रहता है।
अयोध्या न छोड़ते तो मर्यादा पुरुषोत्तम कैसे बनते
मनोज मुंतशिर ने कहा कि जरा सोचकर देखिए राम क्यों पूजे जाते हैं? क्या इसलिए कि वह अयोध्या के राजा थे, या फिर उन्होंने लंका जीत ली थी। नहीं, राम अगर जीवन भर अयोध्या में ही रहे होते तो उन्हें हम सिर्फ राजा के तौर पर ही पहचान पाते। लेकिन, उन्होंने अयोध्या छोड़ी और 14 साल तक वन-वन भटकते हुए राक्षसों का नाश कर राम राज्य की स्थापना की इसलिए वह राजा राम नहीं भगवान राम हो गए। कभी वचन से नहीं डिगे और जीवन भर मर्यादा स्थापित की इसलिए वह भगवान कहलाए। छात्रों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कि जब हमारे ईश्वर कष्टों में नहीं डिगे तो फिर हम कैसे हौसला हार सकते हैं। भगवान राम के जीवन चरित्र से जुड़े कई प्रसंग सुनाकर उन्होंने विद्यार्थियों में खूब हौसला भरा।
समझाई हिंदी की ताकत
मनोज शुक्ला ने कहा कि गांव कस्बों के बच्चों में बड़े शहरों में आते ही भाषा को लेकर हीनभावना आ जाती है। उन्हें लगता है कि अंग्रेजी नहीं आती तो कुछ भी नहीं आता। लेकिन, सच यह है कि भाषा कभी भी सफलता के आड़े नहीं आ सकती। इंग्लिश से उसी दिन विश्वास उठ गया था। जब निमोनिया की स्पेलिंग पी से शुरू होने के बारे में पढ़ा था। हिंदी का तेवर, हिंदी की धाक, हिंदी की रंगबाजी, हिंदी का लेवल इंग्लिश में कहां से आएगी। खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि मुझे भी अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिए पहचान बनाने में खासा समय लगा। एक लंबे समय तक वह पर्दे के पीछे ही रहे। छह साल तक संघर्ष करना पड़ा मुम्बई में काम मांगने के लिए। लेकिन, जब कौन बनेगा करोड़पति लिखा और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने लोगों को संबोधित करने के लिए हिंदी में कहा “देवियो और सज्जनों” तब जाकर मुझे पहचान मिली।
फिल्में नहीं चली, हार नहीं मानी
उन्होंने कहा कि असफलताओं से हारने की बजाय उनसे सीखने की जरूरत है। पहले तो मुझे छह महीने तक मुझे मायानगरी में काम नहीं मिला। जब काम मिला और मेरी पहली फिल्म रिलीज हुई तो उसे दर्शक नहीं मिले, लेकिन मैने हार नहीं मानी और लगातार कोशिश करता रहा। नतीजा, दस साल के संघर्ष के बाद जब मैने अपनी ही पिक्चर देखनी चाही तो इतनी भीड़ थी कि चार महीने तक मुझे टिकट ही नहीं मिला। वह मूवी थी बाहुबली। आज मेरी पहली मूवी को कोई नहीं जानता और दूसरी को कोई भूल नहीं सकता।
यूं भरा आत्मविश्वास
उन्होंने कहा कि मां वीणा वादिनी कोटा लेकर आईं हैं, आगे भी वही लेकर जाएंगी।
जिन माता पिता ने पेट काटकर यहां भेजा उनके पते पर आप खुशियों का मनी ऑर्डर जरुर भेजेंगे कोई रोक नहीं सकता
- तुम जैसे हो वैसा ही तुम्हें भगवान ने बनाया है। तुम गॉड का परपज हो, तुम आस्तिक या नास्तिक नहीं बल्कि वास्तविक बनकर रहो।
- यदि जीवन को पुरुषार्थ का लहू पिलाया तो सफलता की फसल जरूर लहलगाएगी।
- अपने डर से लड़ो, दुनिया से जीत सकते हो
- हौसलों का हस्तिनापुर हम ही बताएंगे ले गए कोहिनूर तो क्या हुआ 280 करोड़ कोहिनूर अभी बाकी हैं
- बैठे रहो गूगल खोल के पिचाई और पराग कहां से लाओगे
कविता और शेर पढ़कर किया मोटिवेट
आसमानों से ऐसी खबर भी आएगी.. आज तेरी मुट्ठी में रेत है तो क्या हुआ.. कभी समन्दर में ऐसी लहर भी आएगी
- यह जो सूरज देख रहे हों जुगनू जुगनू बॉय हमने
- तुम्हारा चूल्हा ठंडा है तो हमसे आग ले जाओ, यह साझेदारियां होती है गांव में मेरे.. गले मिलकर छते रोती है गांव में मेरे..
- औकात में रहकर तो किराए के मकान देखे जाते हैं, सपने तो वही हैं जो औकात के बाहर देखे जाते हैं।
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