Jaipur जयपुर । राज्यपाल एवं कोटा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री हरिभाऊ बागड़े ने कहा कि शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन में नैतिक मूल्यों को आत्मसात करने की प्रक्रिया है। उन्होंने तैत्तिरीय उपनिषद का उल्लेख करते हुए कहा कि एक आचार्य का कर्तव्य है कि वह अपने आचरण से आदर्श प्रस्तुत करे। उन्होंने कहा कि दीक्षांत केवल औपचारिक शिक्षा का अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।
राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री हरिभाऊ बागड़े शुक्रवार को कोटा विश्वविद्यालय के 11वें दीक्षांत समारोह में संबोधित कर रहे थे। समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं को उद्धृत करते हुए कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य के मानसिक और नैतिक विकास में निहित है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का उल्लेख करते हुए कहा कि जीवन में निरंतर सीखना आवश्यक है क्योंकि ज्ञान ही विकास की कुंजी है।
उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा की चर्चा करते हुए आर्यभट्ट, वराह मिहिर, सुश्रुत और भास्कराचार्य जैसे महान विद्वानों के योगदान को रेखांकित किया और बताया कि भारत ने गणित, चिकित्सा और खगोलशास्त्र के क्षेत्र में दुनिया को अनमोल योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि दशमलव प्रणाली और शून्य की खोज भारतीय विद्वानों की देन है जिससे आधुनिक विज्ञान की नींव रखी गई।
राज्यपाल ने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि बाल्यावस्था से ही शिक्षा और संस्कारों का समावेश आवश्यक है ताकि वे राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा सकें। उन्होंने समाज सुधारक देवी अहिल्याबाई होल्कर के कार्यों की सराहना करते हुए पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्षारोपण और जल संरक्षण की महत्ता को रेखांकित किया।
राज्यपाल ने कहा कि नई शिक्षा नीति का उद्देश्य युवाओं को कौशल विकास और रोजगारपरक शिक्षा से जोड़ना है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने कहा कि अगर एक छोटी सी चिड़िया अपने घोंसले का निर्माण इतनी कुशलता से कर सकती है तो मनुष्य अपने दो हाथों से स्वयं का भाग्य निर्माण क्यों नहीं कर सकता।
दीक्षांत उद्बोधन में प्रो. डी.पी. सिंह ने कोटा विश्वविद्यालय की प्रगति की सराहना करते हुए कहा कि कोटा आज एक उन्नत और प्रगतिशील जिला बन चुका है। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। प्रो. सिंह ने भारतीय संस्कृति में निहित 16 संस्कारों की व्याख्या करते हुए बताया कि इनमें से चार संस्कार विद्या से जुड़े हैं, जो व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल नौकरी पाने का माध्यम नहीं है बल्कि यह व्यक्ति को सही निर्णय लेने की क्षमता भी प्रदान करती है। उन्होंने युवाओं की ऊर्जा और क्षमता पर जोर देते हुए कहा कि सही मार्गदर्शन और उच्च शिक्षा के माध्यम से युवा देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा के साथ-साथ उच्च चरित्र का निर्माण भी आवश्यक है ताकि प्रत्येक कार्य को निष्ठा और कर्तव्यपरायणता के साथ किया जा सके।
कोटा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी ने अपने संबोधन में कहा कि वर्तमान भारत एक नए युग में प्रवेश कर चुका है, जहां शिक्षा, तकनीक और अनुसंधान के क्षेत्र में देश ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। प्रो. सोडाणी ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है और आज का युवा आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अपना योगदान दे रहा है।