आयुर्वेदिक चिकित्सालय में रोगियों की बढ़ रही संख्या

Update: 2022-12-03 12:52 GMT

कोटा न्यूज़: जिले में कोरोना के बाद गत दो वर्ष से विभिन्न बीमारियों के उपचार में लोग आयुर्वेद का सहारा ले रहे है। यहां आयुर्वेदिक चिकित्सालय में भी गत समय से रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में कई साइड इफेक्ट को देखते हुए लोगों का अब परंपरागत चिकित्सा पद्धति की ओर रुझान बढ़ा है। ऐसे में यहां आयुर्वेदिक चिकित्सालय में गत वर्षों से रोगियों की संख्या बढ़ रही है। आयुर्वेद में कोई साइड इफेक्ट नहीं होने के कारण प्रत्येक माह यहां उपचार कराने आने वाले रोगियों की संख्या में निरन्तर इजाफा हो रहा है।

कास प्रतिश्याय व ज्वर के बढ़े रोगी आयुर्वेदिक चिकित्सालय में इस साल जनवरी से नवंबर माह के बीच 36702 रोगियों को ओपीडी में उपचार किया गया है। वहीं 943 रोगियों का आईपीडी में उपचार किया है। आयुर्वेदिक चिकित्सालय की प्रभारी डॉ. अंजना शर्मा ने बताया कि वर्तमान में कास प्रतिश्याय व ज्वर के रोगी अधिक आ रहे हैं। अब सर्दी का असर ज्यादा होने के कारण वात व्याधि, दर्द, लकवा, साइटिका, माइग्रेन के मरीज भी बढ़े हैं। यहां पर मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए काढ़ा भी पिलाया जा रहा है।

पंचकर्म चिकित्सा से भी मिल रहा लाभ: यहां आयुर्वेदिक चिकित्सालय में खोले गए पंचकर्म चिकित्सा केन्द्र में भी रोगी बढ़ रहे है। जिसमें जटिल व्याधियों को दुरुस्त किया जा रहा है। जिससे आयुर्वेद चिकित्सा में कई रोगियों को राहत मिल रही है। यहां आयुर्वेद चिकित्सालय में पंचकर्म चिकित्सा केन्द्र पर कई रोगी पहुंच रहे है। यहां पंचकर्म केन्द्र पर विभिन्न रोगों का उपचार किया जा रहा है। जिसमें प्रमुख रूप से शिरशूल, संधिवात, कटिशूल, जीर्ण प्रतिघात, अंगसुप्तता आदि रोगों में यहां पंचकर्म चिकित्सा से लाभ दिया जा रहा है।

यह है पंचकर्म चिकित्सा: आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य का शरीर 5 तत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से बना है। उन्हीं तत्वों से ब्रह्मांड भी बना है। जब शरीर में इन 5 तत्वों के अनुपात में गड़बड़ी होती है तो दोष यानि समस्याएं पैदा होती हैं। आयुर्वेद इन तत्वों को फिर से सामान्य स्थिति में लाता है और इस तरह से रोगों का निदान होता है। गठिया, लकवा, पेट से जुड़े रोग, साइनस, माइग्रेन, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, साइटिका, बीपी, डायबीटीज, लिवर संबंधी विकार, जोड़ों का दर्द, आंख और आंत की बीमारियों आदि के लिए पंचकर्म किया जाता है।

खास चिकित्सा विधि से करते हैं उपचार: पंचकर्म को आयुर्वेद की खास चिकित्सा विधि माना जाता है। यह शरीर की शुद्धि (डिटॉक्सिफिकेशन) और पुनर्जीवन (रिजूविनेशन) के लिए उपयोग किया जाता है। इस चिकित्सा विधि से तीनों शारीरिक दोष वात, पित्त और कफ को सामान्य अवस्था में लाया जाता है और शरीर से इन्हें बाहर किया जाता है। शरीर के विभिन्न अंगों और रक्त को दूषित करने वाले अलग-अलग रसायनिक और विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकालने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाएं प्रयोग में लाई जाती हैं। इन प्रक्रियायों में पांच कर्म प्रधान हैं। इसीलिए इस खास विधि को पंचकर्म कहते हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सालय में रोगियों की स्थिति

रोगी सितं. अक्टू. नव.

कास 93 94 141

प्रतिश्याय 101 74 105

ज्वर 110 46 44

मधुमेह 98 96 193

अर्श, भंगदर 413 328 466

वात रोग 156 453 636

माहवार रोगियों का विवरण

सितंबर में ओपीडी - 3629

सितंबर में आईपीडी - 77

सितंबर में आॅपरेशन - 39

अक्टूबर में ओपीडी - 3263

अक्टूबर में आईपीडी - 72

अक्टूबर में आपेरशन - 48

नवम्बर में ओपीडी - 4212

नवम्बर में आईपीडी -107

नवम्बर में आॅपरेशन - 50

यहां आयुर्वेदिक चिकित्सालय में गत वर्ष से रोगियों की संख्या बढ़ रही है। कोरोना महामारी के बाद लोगों का आयुर्वेद चिकित्सा में रुझान बढ़ा है। आयुर्वेद औषधियों से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। योग-प्राणायाम, प्राकृतिक चिकित्सा, दिनचर्या, ऋतुचर्या, आहार-विहार आदि से लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे है। यहां पंचकर्म चिकित्सा सहित विभिन्न केन्द्रों के माध्यम से रोगियों का उपचार किया जा रहा है।

- डॉ. अंजना शर्मा, प्रभारी, आयुर्वेदिक चिकित्सालय कोटा

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