जोधपुर: बलात्कार के आरोपी अधिवक्ता को पीडि़ता की एफआइआर सोशल मीडिया में वायरल करना भारी पड़ गया। जब पीडि़ता ने उसके खिलाफ पहचान उजागर करने का आरोप लगाकर एक और एफआइआर दर्ज करवा दी।थानाधिकारी ने बताया कि 39 साल की एक महिला ने गत 4 जुलाई को अधिवक्ता के खिलाफ झांसा देकर दस-बारह साल तक बलात्कार व देह शोषण करने का मामला दर्ज कराया था। महिला की अपने पति से अनबन है और दोनों अलग रहते हैं। आरोपी अधिवक्ता और महिला दस-बारह साल तक लीव इन रिलेशनशिप में साथ रहे थे। महिला का आरोप है कि इस दौरान अधिवक्ता ने उससे बलात्कार व देह शोषण किया था। पीडि़ता के बयान दर्ज किए गए हैं और जांच चल रही है।
उच्च न्यायालय ने कुछ मीडिया घरानों द्वारा हैदराबाद बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला करने में मदद करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन को न्याय मित्र नियुक्त किया है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि मामले को गुण-दोष के आधार पर सुना जाएगा।याचिका में आरोप लगाया गया था कि कुछ व्यक्तियों और मीडिया घरानों द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 228 ए का घोर उल्लंघन किया गया, जिन्होंने विभिन्न पोर्टल पर हैदराबाद बलात्कार मामले की पीड़िता और चार आरोपियों की पहचान का खुलासा करने वाली विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी।उधर, आरोपी अधिवक्ता ने खुद को निर्दोष बताते हुए बलात्कार के आरोप संबंधी एफआइआर सोशल मीडिया में वायरल कर दी। जिससे पीडि़ता की पहचान उजागर हो गई। इसका पता लगा तो पीडि़ता ने विरोध जताया, लेकिन तब तक एफआइआर वायरल हो चुकी थी। पीडि़ता थाने पहुंची व अधिवक्ता के खिलाफ पहचान उजागर करने की एक एफआइआर और दर्ज करवा दी। पुलिस ने जांच शुरू की है।