किसानों को खेतों में नौलाई नहीं जलाने की सलाह फसल अवशेष जलाने पर होगी दण्डात्मक कार्यवाही
बारां । जिला कलक्टर रोहिताश्व सिंह तोमर ने जिले के किसानों को खेतों में फसलों के अवशेष नहीं जलाने की नसीहत देते हुए उसका उपयोग भूसे व खाद के रूप में उपयोग लेेने की सलाह दी है। उन्होंनेे उपखण्ड अधिकारियों व तहसीलदारों को फसल कटाई के उपरान्त अवशेषांे को जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में किसानों को सावचेत करते हुए ऐेसे कार्य में लिप्त होने वाले कृषकों के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही के निर्देश दिए हैं।
जिला कलक्टर ने कहा कि जिले मेें फसल के अवशेष जलाना गंम्भीर चिंतनीय विषय है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली की ओर से मॉनिटरिंग करते हुए फसल अवशेषों को जलाने की घटनाओं की सेटरलाइट इमेजेज के साथ रिपोर्ट भेजी जा रही है। फसल अवशेषांे को जलाने से भूमि की उर्वरता शक्ति, मृदा मंे उपस्थित सूक्ष्मजीवों की संख्या में कमी आ रही है एवं साथ ही जलाने से विभिन्न हानिकारक गैसें वातावरण को प्रदूषित करती है जिनसे कैंसर, अस्थमा एवं अन्य हानिकारक रोग होते हैं। फसल अवशेषों को जलाने के बजाय किसान इससे भूसा बनाएं, जो पशुओं के चारे में काम आए। साथ ही मृदा में मिला देने से खाद का काम करेगा।
फसल अवशेष दहन के दुष्परिणाम
कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक अतीश कुमार शर्मा ने बताया कि कार्बनिक पदार्थ, जीवांश पदार्थ मृदा संसाधन का एक महत्वपूर्ण घटक है परन्तु फसल अवशेषांे को जलाने से यह अमूल्य पदार्थ नष्ट हो जाता है जिसके कारण मृदा की उर्वरता व उत्पादकता कम हो जाती है। फसल अवशेषो को जलाने से मृदा का तापमान बढ़ जाता है जिससे मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते है जो कि मृदा जैव विविधता के लिए गम्भीर चुनौती है। फसल अवशेष जलाने पर भारी मात्रा मे हानिकारक गैसे मिथेन, कार्बनडाई ऑक्साईड, सल्फरडाई ऑक्साईड आदि गैसें निकलती है परिणामस्वरूप पृथ्वी का तापमान बढ़ता है और जलवायु में विभिन्न परिवर्तन होते है। कृषि अवशेषांे को जलाने से मृदा का तापमान बढ़ने से मृदा मे उपस्थित मित्र कीट व फफून्द नष्ट हो जाते है जिसके परिणाम स्वरूप कीटों व फफून्द को नियन्त्रित करने के लिए जहरीले कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है जिससे मृदा भी प्रदूषित होती है तथा साथ ही उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है।
लाभकारी खेती के लिए हो फसल अवशेष प्रबन्धन
शर्मा ने बताया कि फसल अवशेष एक प्राकृतिक संसाधन है जिससे उपस्थित कार्बनिक पदार्थ मृदा मे उपस्थित सूक्ष्मजीवों के लिए भोजन का एक प्रमुख स्त्रोत है तथा साथ ही मृृदा के जैविक, रासायनिक एवं भौतिक गुणो मे भी वृृद्धि करते हैं। पादप द्वारा अवशोषित कुल नाइट्रोजन एवं फास्फोरस का 25 प्रतिशत एवं 75 प्रतिशत पोटाश जड़, तना एवं पत्तियों मंे संग्रहित रहते हैं। फसल अवशेष पादप पोषक तत्वांे का भंडार है एवं इन्ही फसल अवशेषों को मृदा मे मिला देने से मृदा की उर्वरता शक्ति मे भी वृद्धि होगी व फसल लागत मंे भी कमी आएगी। फसल अवशेष भूमि के तापमान को उचित बनाए रखते हैं।
जुर्माना लगाने का ये है प्रावधान
राजस्थान राज्य अधिसूचना द्वारा वायु अवशेष 19(5) (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत् फसल अवशेष जलाना प्रतिबंधित किया गया है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फसल अवशेषों को जलाने पर भूमि स्वामित्व के अनुसार 2500 रूपए (2 एकड से कम), 5000 रूपए (2-5 एकड) और 15000 रूपए (5 एकड से अधिक) प्रति घटना जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है। इसकी अवहेेलना किए जाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 एवं अन्य सुसंगत धाराओं के तहत दंडित किया जा सकता है। शासन सचिव गृह (विधि) गृह (ग्रुप-10) विभाग ने भी पुलिस थानों के अधिकारी यह निर्देश दिए हैं कि थाने की परिसीमाओं में फसल के अवशेषों को जलाने की घटना घटित होती है, तो थानाधिकारी स्वयं इसके लिए उत्तरदायी होंगे।