करोड़ों की लागत वाली ई-मित्र प्लस मशीनें खा रही धूल

Update: 2023-02-07 15:00 GMT

कोटा: आधुनिक तकनीक के माध्यम लोगों को एक ही छत के नीचे कई तरह की सरकारी और निजी सेवा मिले, इसी उद्देश्य से पूर्व सरकार की ओर से शुरू की गई ई-मित्र प्लस मशीनें कई विभागों में शो-पीस बन कर रह गई है। इसकी कोई सुध नहीं ले रहा है। आमजन में जागरुकता व जानकारी के अभाव में सालों बीत जाने के बाद भी संबंधित विभागों की बेपरवाही के कारण आमजन इसका उपयोग नहीं कर पा रहा है। नतीजा ये है कि कोटा जिले में लगाई करीब 8 करोड़ लागत की 398 ई-मित्र प्लस मशीनों में से कई धूल फांक रही हैं तो कुछ पीक थूकने का एक कॉर्नर बनकर रह गई है। करीब 5 साल पहले जिले में 398 ई-मित्र प्लस मशीनें लगाई गई थी। इनमें से कई स्थानों पर इन मशीनों से एक दिन भी काम नहीं लिया गया। इसका एक उदाहरण एमबीएस में पूछताछ काउंटर, फिजियोथैरेपी विभाग और पुरानी ओपीडी में 5 साल पहले 3 मशीनें भी हैं जिनका संचालन आज तक नहीं हुआ है। इन मशीनों पर धूल जमी हुई है। इसके अलावा नगर निगम, नगर विकास न्यास मेडिकल कॉलेज और रामपरा सेटेलाइट हॉस्टिपल के अलावा भी शहर में कई विभागों में लगाई हुई मशीनें उपयोग में नहीं ली जा रही है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन मशीनों के रख रखाव का जिम्मा एक निजी कम्पनी को दिया हुआ है और वो कम्पनी विभाग से पैसा उठा रही है। गौरतलब है कि 2018 में तत्कालीन राजस्थान सरकार की ओर से राज्य के 33 जिलों की 328 तहसील और 171 उप तहसील मुख्यालयों सहित विभिन्न स्थानों व सरकारी कार्यालयों में 14891 ई-मित्र मशीनें लगाई गई थी। करीब 3.72 अरब रूपए की लागत से राज्यभर में लगाई गई मशीनों में से कई मशीनों का संचालन नहीं हो पाया है। तत्कालीन राज्य सरकार ने यह सोचकर मशीनें लगाई थी कि सरकारी कार्यालयों में इन मशीनों के शुरू होने के बाद लोगों को दफ्तर के चक् कर नहीं काटने पड़ेंगे लेकिन विभागीय लापरवाही से मशीनें उपयोग में नहीे आ रही है।

मशीन के जरिए यह मिलती हैं सेवाएं

लोगों को विभागीय कार्यों के लिए भटकना ना पड़े इसलिए इस मशीन से गिरादावरी, जमाबंदी की नकल, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, जाति, मूल निवास प्रमाण पत्र का प्रिन्ट, बिजली-पानी का बिल जमा करने सहित अन्य कई प्रकार की सुविधाएं।

ऐसी होती है ई-मित्र प्लस मशीन

ई-मित्र मशीनें एटीएम जैसी दिखाई देती है। इसमें 32 इंच एलईडी के साथ मॉनिटर डिवाइस, वेब कैमरा, केश असेप्टर, कार्ड रीडर, मैटलिक कीबोर्ड, रसीद के लिए नॉर्मल प्रिंटर तथा लेजर प्रिंटर आदि मौजूद है। मशीन में मौजूद वैब कैमरे से आम नागरिक उच्चाधिकारियों से वीडियो कांफ्रेंस के जरिए बातचीत भी कर सकते हैं।

इनका कहना है

कोटा जिले में लगी 398 में से ब्लॉक में लगी 4 मशीनें बारिश के दौरान खराब हो गई थी जो चार्जेबल है। शहरी क्षेत्र की सभी मशीनें चालू हैं। संस्थान उपयोग में नहीं ले रहे वो अलग बात है। जिन-जिन विभागों में लगाई गई हैं उन विभागाध्यक्षों को एक-एक नोडल कार्मिक इन मशीनों के लिए नियुक्त करने के निर्देश दिए हुए है। एमबीएस अस्पताल में भी इसके बारे में पत्र लिखे गए है। सभी संस्थानों में कहा गया है कि इन मशीनों का प्रचार-प्रसार करें और ऐसे स्थानों पर लगाए जहां ये आसानी और सुगमता से आॅपरेट हो सकें।

-मुकेश विजय, अतिरिक्त निदेशक, सूचना प्रोद्यौगिकी विभाग

करीब 4-5 साल पहले लगाई गई थी। इनको चलाने की ट्रेनिंग नहीं दी गई है। शुरू से ही नॉन आॅपरेटिव है। कभी काम में ही नहीं ली। मेडिकल कॉलेज में भी लगाई गई थी, वहां भी बंद पड़ी है।

-डॉ. दिनेश वर्मा, अधीक्षक, एमबीएस अस्पताल

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