जयपुर में द्रौपदी मुर्मू बोलीं- गुलाबी नगरी में आना उतना ही सुखद है, जितना अपनों के बीच अपने मन और दिल की बात
जयपुर में द्रौपदी मुर्मू बोलीं
एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का जयपुर भाजपा और आदिवासी नेताओं ने जोरदार स्वागत किया गया। जयपुर एयरपोर्ट से लेकर कार्यक्रम स्थल तक कई किमी में उनके लिए मानव श्रृंखला भी बनाई गई। भाजपा विधायकों और सांसदों को संबोधित करते हुए द्रौपदी मुर्मू ने कहा, गुलाबी नगरी जयपुर में आना उतना ही सुखद है, जितना अपनों के बीच अपने मन और दिल की बात कहना।
राजस्थान और ओडिशा में भौगोलिक परिस्थितियों में भिन्नता होने के बाद भी दोनों राज्यों में काफी समानताएं हैं। जिनमें प्रकृति के साथ जीना, राजस्थान के लोगों द्वारा जल को जीवन की भांति संवारकर रखना, इसी प्रकार ओडिशा के लोगों को चक्रवाती तूफानों के बावजूद जिंदगी का पहिया नई उम्मीदों के साथ घूमाते रहना आता है।
भाजपा नेताओं ने मुर्मू का भेंट की जयपुर के आराध्य गोविंददेवजी की तस्वीर।
मुर्मू ने कहा कि एक राजस्थानी कहावत है कि 'अम्मर को तारो-हाथ से कौनी टूटे' मैं जहां से यहां तक आई हूं, इस कहावत की व्यवहारिकता को मैं समझती हूं। मेरी अब तक की जीवन यात्रा का अनुभव कहता है कि अनायास कुछ नहीं होता, हमारे आज के साथ बीते हुए कल के संघर्ष जुड़े हुए रहते हैं। संघर्ष हमें उद्देश्य और संकल्पों के प्रति सचेत रखते हैं।
उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन और आदिवासी अब सुरक्षित एवं विकसित होती व्यवस्था के मुख्य भागीदार बन रहे हैं। पिछले कई वर्षों में वंचितों, शोषितों और आदिवासियों के जीवन में उन्नति के साथ बड़े बदलाव आए हैं। विकास अब दूरस्थ क्षेत्रों तक बराबरी से पहुंच रहा है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार आदिवासी समाज की एक बेटी को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना, जिसका सबसे जीवंत उदाहरण है, जो देश के सभी आदिवासी भाई-बहनों का सम्मान है।
द्रौपदी मुर्मू ने कहा, हम अनेकता में एकता का ध्वज थामे भारत मां की संतान हैं।
मुर्मू ने कहा कि राष्ट्रपति का पद प्राप्त करना मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं होगी, यह किसी एक स्थान, समुदाय या समाज के लिए भी गर्व का विषय नहीं होगा। यह भारतीय समाज में अन्त्योदय के प्रवाह से उपजी समावेशी एकता की मिसाल साबित होगा। भौगोलिक-सांस्कृतिक बहुलता हमें व्यक्तिगत पहचान देती है, लेकिन मूलतः सवा सौ करोड़ से अधिक 'मैं' मिलकर भारतीयों के रूप में 'हम' हो जाते हैं।
हम अनेकता में एकता का ध्वज थामे भारत मां की संतान हैं। उन्होंने कहा कि मरूधरा में आकर हल्दीघाटी की माटी को माथे पर लगाने की कामना होती है, जहां स्वाभिमान की रक्षा के लिए वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और आदिवासी जननायक राणा पूंजा भील ने एक ध्वज तले अपने से कहीं विशाल सेना के विरूद्ध युद्ध किया था।
राजस्थान के वीरों ने मातृभूमि की रक्षा और नारी सम्मान की सुरक्षा को शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा। उन्हें राज्य और देश में ही नहीं वैश्विक रूप से भी नायकत्व प्राप्त हुआ है। यही कारण है कि आत्मसम्मान को जीवन मूल्यों में अग्रणी रखने वाले इस राज्य में रणबांकुरों के नामों की सूची का अंत नहीं है, विस्तार ही विस्तार है।
उन्होंने कहा कि एनडीए और समर्थक दलों की ओर से जब मुझे राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी बनाया गया तो मैं इसके पीछे की सोच को समझ सकती थी, क्योंकि मेरा माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संवेदनशील चेतना और दूरदर्शी सोच से साक्षात्कार है। वह मरूभूमि की मां-बेटियों के हाथों में किताब और कलम देखना चाहते हैं और वनभूमि की मां-बेटियों को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि मोदी सरकार के शासन में नारी शक्ति के घर नल से जल पहुंच रहा है। साथ ही जनजाति समाज की बेटियों को शिक्षा से जोड़कर उनको सपने देखने की स्वतंत्रता का अधिकार मिल रहा है।
भाजपा नेताओं ने किया स्वागत।
मुर्मू ने कहा कि ओडिशा में छोटे-छोटे सपनों के साथ पली-बढ़ी जनजाति समाज की एक बेटी को राष्ट्रपति भवन तक जाने का रास्ता दिया गया, यह लोकतांत्रिक स्वप्न है, यही अन्त्योदय है। यह गांव, गरीब और जंगल की बेटी पर विश्वास जताना है। यहां उपस्थित सांसदों और विधायकों के माध्यम से राजस्थान की देवतुल्य जनता का समर्थन मांग रही हूं। मैने कभी राष्ट्रपति बनने के विषय में नहीं सोचा था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने अंतिम छोरों पर बसे गांवों के लोगों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए मुझे माध्यम बनाया है। वंचित, आदिवासी और शोषित मुझमें स्वयं को देख सकते हैं। हम में न कोई भेद है, न मतभेद है। हम नये भारत के निर्माण के लिए आशांवित, अग्रसर और आश्वस्त हैं।