सहकारी चीनी मिल, संचालन की उम्मीद में शेयरधारक नहीं ले रहे हिस्सा

Update: 2023-08-03 18:19 GMT
बूंदी। बूंदी प्रदेश की एक मात्र सहकारिता आधारित मिल के स्थापना के तीस साल बाद बंद कर ताले लगे हुए है। सहकारी चीनी मिल की स्थापना के बाद राज्य सरकार ने 2 किस्म के शेयर जारी किए गए। इसमें 250 रुपए वाले शेयर 8345 व 500 रुपए वाले शेयर 7173 जारी किए गए। किसान जब गन्ना बेचने आते थे तो उनसे 50 पैसा प्रति क्विंटल काट कर शेयर खाते में जमा किया जाता था। जब 250 रुपए कट जाते थे तब शेयर जारी किया जाता था। ग्रामीण सेवा सहकारी अरनेठा ने किसानों को 250 रुपए का ऋण देकर शेयर पेटे जमा किए। मिल के पास वर्ष 2022 तक किसानों के शेयरों की 56 लाख 72 हजार 750 रुपए व 65 लाख 77 हजार 630 रुपए राशि जमा है। इनके शेयर जारी नहीं है। मिल में 4338 कृषक सदस्यों में 131 कृषक सदस्यों अपनी हिस्सेदारी वापसी ले चुके हैं। 4207 शेयर धारक किसानों के पास 250 रुपए वाले 8345 व 500 रुपए वाले 7173 शेयर थे। कई शेयरधारी दुनिया छोड़ चुके हैं तो की के पास से शेयर गुम हो गए। अंत में घाटे में जाने पर मिल बंद का कारण बना।
प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस की सरकार आती-जाती रही। मिल को कांग्रेस के शासन के दौरान अकाल के बहाने बंद किया गया था, उसके बाद भाजपा की परिवर्तन यात्रा में वसुंधरा राजे ने मिल को चलाने का वादा किया था, लेकिन वह वादा भी अधूरा रहा। मिल की करोड़ों की सम्पत्ति विरान पड़ी है। अधिकारियों के आवास, विश्राम गृह अब खण्डर बन चुके हैं। मिल के पास सौ करोड़ से अधिक की सम्पत्तियां है। सरकारी चीनी मिल की स्थापना के समय मिल के पास 636 बीघा से भी अधिक जमीन थी। इस जमीन को मिल प्रशासन नहीं संभाल पाया। मिल भूमि पर लोगों ने अतिक्रमण कर मकान बना लिए, सरकारी कार्यालय बन गए व सड़कें निकलने के बाद 636 बीघा जमीन घाटे में चल रही मिल के लिए वरदान साबित हुई। राज्य सरकार ने देनदारियों चुकाने के लिए 458 बीघा जमीन 56 करोड़ में जयपुर विद्युत प्रसारण निगम को बेचकर देनदारियों चुकाई। इसके बाद मिल के पास 169 बीघा जमीन बची थी, लेकिन अभी उसके खाते में 136 बीघा जमीन ही रह गई है। अन्य जमीन सब खुर्द बुर्द हो चुकी है। जमीन बेचने के बाद देनदारियों चुकाई। देनदारियां चुकाने के बाद शेष रही राशि को मिल प्रशासन ने एफडी करवाई। वह एफडी अब 49 करोड़ की हो चुकी है। कंगाल मिल अब करोड़पति है लेकिन राज्य सरकार फिर भी मिल संचालन के प्रति गंभीर नहीं है।
जब क्षेत्र में असिंचित भूमि थी तो ज्वार, उड़द, मूंग की फसलें होती थी। साल में बारिश के समय की फसलों से ही गुजारा करते थे। इस बंजर भूमि को उपजाऊ करने के लिए जब कोटा बैराज का निर्माण किया गया तो किसानों की आंखों में चमक आई। वर्ष 1962 में केंद्र सरकार ने हाड़ौती में नहरों का निर्माण कर असिंचित क्षेत्र को सरसब्ज करने का बीड़ा उठाया। इस निर्णय से किसानों की आंखों में खुशी की लहर थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कोटा बैराज का उद्घाटन कर नहरों में जलधारा शुरू की। सिंचित क्षेत्र होने के बाद राज्य सरकार ने सोसायटी का गठन कर सरकारी चीनी शुगर मिल प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना कर 1969-70 में गन्ना पेराई शुरू की। इस सोसाइटी में राज्य सरकार की हिस्सा राशि 86 प्रतिशत व किसानों की 14 प्रतिशत थी। सरकार ने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर नियुक्त कर मिल का संचालन शुरू किया तो क्षेत्र में किसानों ने गन्ने की फसलें करना शुरू किया। गन्ना उत्पादक किसानों को शेयर बेचकर भागीदारी दी। मिल बंद होने तक 4300 शेयर होल्डर हो चुके थे। मिल के पास इनके अभी तक 1 करोड़ 25 लाख रुपए शेयर के जमा है। मिल बंद हो गई, देनदारियां चुका दी, लेकिन फिर भी शेयर होल्डर का हिसाब नहीं हो पाया। मिल व बची भूमि का भविष्य अब मिल के शेयर होल्डर किसानों के हाथों में है।
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