OBC में शामिल इन मुस्लिम जातियों के आरक्षण पर संकट के बादल

सरकार हाई पावर कमेटी बनाकर मुस्लिम जातियों के ओबीसी कोटे का रिव्यू करवाएगी

Update: 2024-05-25 09:06 GMT

जयपुर: राजस्थान की भजनलाल सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल मुस्लिम जातियों के आरक्षण को रिव्यू करने की तैयारी कर रही है। लोकसभा चुनावों की आचार संहिता हटने के बाद सरकार हाई पावर कमेटी बनाकर मुस्लिम जातियों के ओबीसी कोटे का रिव्यू करवाएगी। सीएम भजनलाल शर्मा और सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत ने मुस्लिम जातियों के ओबीसी आरक्षण का रिव्यू करवाने की पुष्टि की है।

दरअसल, कांग्रेस शासनकाल में ओबीसी की 14 से ज्यादा जातियों को अलग-अलग समय पर आरक्षण दिया गया था. इनमें से कई जातियाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों से संबंधित हैं। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत ने कहा- कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत अलग-अलग समय में मुस्लिम जातियों को ओबीसी आरक्षण दिया. बाबा साहेब अम्बेडकर ने संविधान में प्रावधान किया था कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। कांग्रेस ने 1997 से 2013 के बीच अलग-अलग समय में 14 मुस्लिम जातियों को ओबीसी में शामिल किया है. हमारी सरकार और विभाग इसकी समीक्षा करेगा.

गहलोत ने कहा- हमें कई शिकायतें मिली हैं. हम उन शिकायतों की जांच भी कराएंगे और कानूनी परीक्षण भी कराएंगे। इस मामले में निकट भविष्य में एक उच्च स्तरीय समिति निर्णय लेगी.

सरकार एक हाई पावर कमेटी बनाकर समीक्षा कराएगी

आचार संहिता हटने के बाद सरकार मुस्लिम जातियों के आरक्षण की समीक्षा के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन करेगी. इस कमेटी में कानूनी विशेषज्ञ और आरक्षण विशेषज्ञ शामिल किये जा सकते हैं. इस पर 4 जून के बाद फैसला आने की उम्मीद है. बीजेपी ने इस मुद्दे को केंद्रीय स्तर पर भी गरमा रखा है. राजस्थान समेत कई बीजेपी शासित राज्यों में ओबीसी में शामिल मुस्लिम जातियों के आरक्षण की समीक्षा के संकेत मिले हैं. इस एजेंडे को भजनलाल कैबिनेट की अगली बैठक में रखा जा सकता है.

राज्य सरकार को ओबीसी आरक्षण की समीक्षा करने का अधिकार है

राज्य सरकार को किसी जाति को ओबीसी में शामिल करने या बाहर करने का अधिकार है, लेकिन पूरी प्रक्रिया काफी जटिल है. राज्य सरकार को सर्वे के जरिये यह साबित करना होगा कि अमुक जाति अब आर्थिक और सामाजिक रूप से इतनी सक्षम है कि उसे आरक्षण की जरूरत नहीं है. इसके लिए सभी जातियों का सर्वे कर डेटा जुटाना होगा. जो जातियां आरक्षण से बाहर होंगी, वे इन्हें कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं. अदालत में उनके बहिष्कार को उचित ठहराना आसान नहीं होगा।

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