राजस्थान में अक्षय तृतीया की धूम, किसान सुबह खेत में जाकर देखते हैं शगुन
किसानों का महापर्व अक्षय तृतीया बाड़मेर जिले में बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. त्योहार को लेकर गांव-गांव उत्साह नजर आ रहा है क्योंकि इस त्यौहार पर शगुन विचार होता है कि जमाना आएगा या नहीं.
किसानों का महापर्व अक्षय तृतीया बाड़मेर जिले में बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. त्योहार को लेकर गांव-गांव उत्साह नजर आ रहा है क्योंकि इस त्यौहार पर शगुन विचार होता है कि जमाना आएगा या नहीं. गांवों में सभाएं, रियाण होती है, जिसमें परंपरागत बाजरे से बने व्यंजन खींच, गुळवाणी, देसी सब्जियों बनाकर एक-दूसरे के घर भेजी जाती है.
आखा तीज वैशाख सुदी तीज को मनाई जाती है. इसे अकाल-सुकाल को लेकर सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. हाळी अमावस्या से आखा तीज तक चारों दिन आंगन में सात अनाजों बाजरा, गेहूं, मूंग, मोठ, तिल, ग्वार और मतीरा के बीजों के अलग-अलग ढेरियां बनाई जाती हैं.
किसान सुबह अंधेरे में खेत में जाकर शगुन देखते हैं. खेत में पशु-पक्षियों, शगुनचिड़ी, हिरण, धोलाढींग आदि की बोली से शगुन विचारे जाते हैं. छोटे बच्चे किसानों की परंपरागत वेशभूषा में अलसुबह लकड़ी के हळ जोतते हैं और खेतों में सात तरह के अनाज बोए जाते हैं.
बालक बुजुर्ग और युवा झुंड में टंकोरे बजाकर खुशी मनाते हैं. यह किसानों को खरीफ फसल की तैयारी करने का जागृति संदेश होता है. आखा तीज के दिन किसान कच्ची मिट्टी के चार बर्तन बनाकर उनमें पानी भरते हैं. चारों बर्तनों को चौमासे के चारों महीनों ज्येष्ठ, आसाढ, सावण, भाद्रपद नाम दिया जाता है, जो बर्तन सबसे पहले फूटता है, उसके बारे में माना जाता है कि उस महीने में अच्छी बरसात होगी.
ये त्योहार विशेष कर किसान कौम के लिए इस बारिश का अनुमान लगाया जाता है, बारिश के लिए विशेष प्रार्थना की जाती है. लोग अपने खेत में सुबह जल्दी उठकर सूखी जमीन पर हल चलाते हैं, जिसे प्रकृति को ये मैसेज जाता है कि खेतिहर, किसान लोग अपनी फसल उगाने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं.
यह त्योहार विशेष कर बारिश पर आधारित खेती करने वाले किसान लोग मनाते हैं. इसी दिन अच्छी बारिश के लिए कामना करते हैं. अपने छोटे बच्चों को बाहर खेत में हल चलाने के प्रेरित करते हैं. इसमें खाना भी अलग प्रकार का होता है.
पश्चिम भारत में तो घर में सुबह महिलाएं जल्दी उठ जाती हैं और बाजरा धान को भीगो देती हैं. फिर बाजरा को कुटकर, चूल्हे पर बनाया जाता है, जो माल बनता है. उसको यहां की भाषा में खिच बोला जाता है. वो पूरे दिन के लिए एक साथ बनाया जाता है. सभी लोग इसमें घी, गुड़ डालकर बड़े चाव से खाते हैं.
आखा तीज का त्योहार अबू दिशाओं के लिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि जिन युवक-युवतियों का शादी के लिए योग नहीं बन रहा है. उनको आखा तीज पर बिना पंडित को पूछे ही उनकी शादी हो जाती है और यही कारण है कि आखा तीज पर बंपर शादियां होती है.
बदलती दुनिया के साथ त्योहार मनाने का रुख भी बदलता है. हर त्योहार का आधुनिक स्वरूप आ गया है, लेकिन इस किसान कम्युनिटी के त्योहार अभी तक नहीं बदला है. ये अपनी संस्कृति को सहेज कर रखे हुए है और पहले की पंरपरा के अनुसार मनाते हैं.