पंजाब के आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति दयनीय, कर्मचारी खुद भर रहे 6000 का किराया

केंद्र और पंजाब सरकार के संयुक्त सहयोग से चल रहे पंजाब के आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति दयनीय हो रही है।

Update: 2022-10-09 06:04 GMT

न्यूज़ क्रेडिट : punjabkesari.in

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। केंद्र और पंजाब सरकार के संयुक्त सहयोग से चल रहे पंजाब के आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति दयनीय हो रही है। न तो पंजाब सरकार इन्हें ठीक से संभाल रही है और न ही केन्द्र सरकार इन्हें ठीक से देख पा रही है। हालत यह है कि पिछले 3 वर्षों से राज्य सरकार ने किराए पर चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों का मामूली किराया भी अदा नहीं किया। परिणामस्वरूप खानाबदोशों की तरह आंगनबाड़ी कर्मचारी और बच्चे एक से दूसरे ठिकाने की ओर भटक रहे हैं। ये केंद्र कही बंद न हो जाएं इसलिए मजदूरों जैसे मानदेय पर काम कर रही आंगनबाड़ी कर्मचारी खुद किराया भर कर इन केन्द्रों का अस्तित्व बचा रही हैं।

पिछले माह 30 सितंबर को कांग्रेस के विधायक अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने शून्यकाल में इस मामले को विधानसभा में उठाया था जिसमें उन्होंने कहा था कि पंजाब के आंगनबाड़ी केन्द्रों के कर्मचारियों को 3 माह से वेतन नहीं मिला और 3 से अधिक वर्षों से सरकार ने राज्यभर में कई स्थानों पर किराए के कमरे में चल रहे केन्द्रों का किराया भी अदा नहीं किया। कर्मचारी खुद के वेतन से किराया अदा कर रहे हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों में से अनेक को किराया न मिलने से मकान मालिकों ने उनसे घर खाली करवा लिया है। राज्य में कुल 27000 आंगनबाड़ी केंद्र हैं जिनमें से 6000 से अधिक केंद्र किराए के कमरे में चलाए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र, अर्ध शहरी क्षेत्रों में तो इन कमरों का मासिक किराया 1500 से 2000 रुपए तक है परंतु शहरों अथवा शहरों के करीब वाले केन्द्रों का किराया 5000 रुपए तक है।
कोरोना काल में मकान मालिकों ने कुछ हमदर्दी दिखाई परंतु कई स्थानों पर किराया न मिलने पर आंगनबाड़ी कर्मचारियों और बच्चों को खदेड़ दिया गया। लेकिन आंगनबाड़ी कर्मचारी अपने मानदेय में से कुछ हिस्सा निकाल कर कमरे का किराया 3 वर्षों से अदा कर रही हैं। उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनकी अदा की राशि वापस दे देगी। मुश्किल उन कर्मचारियों के लिए है जो शहरी क्षेत्रों में अथवा आस-पास के कमरों का किराया 5000 तक अदा कर रही हैं परन्तु सरकार ने यह राशि 2000 रुपए और अधिकतम 4000 रुपए तय की हुई है परंतु बच्चों को बिठाने के लिए कर्मचारियों को अधिक राशि भी देनी पड़ी। लुधियाना, नवांशहर, बठिंडा और खरड़ में किराए को लेकर आंगनबाड़ी केन्द्रों को एक से तीन बार किराए का कमरा बदलना पड़ा है। खरड़ केंद्र की दलजीत कौर, सतिंद्र कौर और अमनदीप कौर ने बताया कि किराया न अदा करने से उन्हें मालिक ने निकाल दिया जिस वजह से केंद्र को कहीं और चलाना पड़ा। अन्य स्थानों पर आंगनबाड़ी वर्करों और हैल्परों को राशि एकत्र करके किराया अदा करना पड़ा तो ही उन्हें आंगनबाड़ी केंद्र चलाने की अनुमति मिली।
बाल एवं महिला विकास मंत्री से की भेंट
ऑल पंजाब आंगनबाड़ी कर्मचारी यूनियन की अध्यक्ष हरगोबिन्द कौर का कहना था कि कोरोना काल से पूर्व ही सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों का किराया नहीं दिया। अनेक केंद्र बंद हुए परन्तु आंगनबाड़ी कर्मचारियों ने खुद राशि अदा करके उन केंद्रों को चलाया और अभी तक चला रहे हैं। इस बारे में पहले कैप्टन सरकार फिर चरणजीत सिंह चन्नी और अब भगवंत मान सरकार में बाल एवं महिला विकास मंत्री से बार-बार भेंट की जा चुकी है परन्तु कुछ नहीं हुआ। सरकार आंगनबाड़ी वर्करों को प्रति माह 9500 रुपए और हैल्पर को 5100 रुपए मानदेय देती है। 3-3 माह बाद मानदेय मिलने के पश्चात आंगनबाड़ी कर्मचारियों की प्राथमिकता परिवार चलाना नहीं बल्कि इन केंद्रों का किराया अदा करना होता है। उन्होंने कहा कि खुद बाल एवं महिला विकास मंत्री के विधानसभा क्षेत्र मलोट में किराए के आंगनबाड़ी केंद्र की स्थिति भी ऐसी ही है। बाल कल्याण विभाग के सूत्रों का कहना था कि आंगनबाड़ी केन्द्रों के किराए के स्थाई हल के लिए मुख्यमंत्री के पास प्रस्ताव तैयार करके ले जाया जा रहा है।
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