महात्मा गांधी की पुण्यतिथि : अमृतसर में फूटा था अंग्रेजों के खिलाफ शुरू किए गए बापू के असहयोग आंदोलन का अंकुर
अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी की तरफ से शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का अंकुर अमृतसर की धरती पर फूटा था।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी की तरफ से शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का अंकुर अमृतसर की धरती पर फूटा था। बापू वैसाखी वाले दिन हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद तीन दिन के दौरे पर अमृतसर आए थे। दिसंबर 1919 में अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जो 26 दिसंबर से लेकर 28 दिसंबर 1919 तक एचिसन पार्क (अब गोल बाग) में आयोजित हुआ था।
बापू के साथ पंडित मोती लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, सैफुद्दीन कुचलू, डा. हाफिज मोहम्मद बशीर, डा. सत्यपाल, चौधरी बुग्गा मल भी इस अधिवेशन में शामिल हुए थे। गांधीजी ने अमृतसर के चाटीविंड में स्वराज आश्रम की स्थापना कर देशभक्तों को प्रशिक्षण देने का सिलसिला शुरू किया। ताकि लोगों को सत्याग्रह और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए तैयार किया जा सके।
जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद देश के बच्चे-बच्चे के दिल में बदले की आग सुलग रही थी। क्योंकि अंग्रेज सरकार रॉलेट एक्ट लागू कर भारतीयों से अपील, दलील और वकील का अधिकार छीन चुकी थी। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता भी इन दमनकारी नीतियों से आहत थे। महात्मा गांधी भी व्याकुल थे। महात्मा गांधी व पंडित मोतीलाल नेहरू ने अधिवेशन में अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन चलाने का निर्णय किया और लोगों को अंग्रेज सरकार के खिलाफ चलाए असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने की अपील की। बापू के आह्वान के बाद देश का हर नागरिक सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो गया था।
जलियांवाला बाग के नरसंहार के ठीक आठ माह बाद 27 दिसंबर 1919 को अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। नरसंहार से आहत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस अधिवेशन में गुलामी की जंजीरों में जकड़े देश को अंग्रेजी हुकूमत के चंगुल से मुक्त करवाने के लिए जनमानस में अपने शब्दों के माध्यम से नए रक्त का संचार किया था।
गांधी को बुखार होने पर की गई थी मुल्तानी मट्टी की पट्टियां
इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ कहते हैं कि अमृतसर के एचिसन पार्क (अब गोल बाग) में आयोजित किए गए कांग्रेस अधिवेशन के दौरान महात्मा गांधी अचानक बीमार हो गए थे। उन्होंने अंग्रेज डॉक्टर से इलाज कराने के बजाय घरेलू उपचार को प्राथमिकता दी। उनके इलाज के लिए मुल्तानी मिट्टी मंगवाई गई और मुल्तानी मिट्टी की पट्टियां गांधीजी को बांधी गईं। अधिवेशन के दौरान उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड और रॉलेट एक्ट का भारी विरोध किया और जलियांवाला बाग नरसंहार की घटना से आहत महात्मा गांधी ने यहीं से विद्रोह का ध्वज उठाया।
जलियांवाला नरसंहार के बाद अंग्रेजों के कट्टर विरोधी बने गांधी जी
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की पुस्तक में यह दावा किया गया है कि जलियांवाला बाग नरसंहार ने गांधी जी को झकझोर दिया था। उनके कहने के बाद भी जब आरोपी अंग्रेज अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई तो वे अंग्रेजों के कट्टर विरोधी बन गए। गुहा की किताब 'शहादत से स्वतंत्रता' में दावा किया गया है कि बापू ने 1919 से पहले कभी पंजाब का दौरा नहीं किया। 13 अप्रैल 1919 को डायर ने वैसाखी के मौके पर जलियांवाला बाग में बैठक कर रहे निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दीं। इस नरसंहार से बापू बेहद आहत थे।
गुहा की किताब में यह भी दावा किया गया है कि उन्होंने ब्रिटिश वायसरॉय से कहा कि जनरल डायर और तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओड्वायर को नरसंहार के लिए दोषी मानकर तुरंत बर्खास्त किया जाए। लेकिन वायसरॉय ने जनरल डायर के एक्शन पर खेद जताया और ओड्वायर को सर्टिफिकेट ऑफ कैरेक्टर दे दिया। इसमें उनकी मुक्तकंठ से सराहना की गई। तब गांधीजी ने आंदोलन चलाने का फैसला किया।
स्वतंत्रता सेनानी हरी राम बहल के पौत्र महेश बहल ने बताया कि उनके दादा हरी राम बहल मदन मोहन मालवीय के साथ दिल्ली या लाहौर में मिले थे। उनके दादा गांधीवादी सोच से प्रभावित थे और उनका जीवन गांधीजी की विचारधारा को समर्पित था। उनके दादा 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला नरसंहार के दौरान शहीद हो गए थे। अभी 12 साल पहले ही भारत सरकार ने उनके दादा को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया।
2015 में कंपनी बाग में गांधी के बुत पर हुई थी फायरिंग
देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कंपनी बाग में लगे बुत पर साल 2015 में फायरिंग की गई थी। लेकिन यह पता नहीं चल सका कि किसने की और क्यों की? इसका खुलासा आज तक नहीं हो सका। जबकि मामले की शिकायत के आधार पर इसकी जांच के आदेश प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा पंजाब सरकार के चीफ सेक्रेटरी को दिए गए थे। मामले में जांच तो नहीं हो सकी, अमृतसर नगर निगम ने प्रधानमंत्री कार्यालय को गोलमोल जवाब भेजते हुए गांधी जी के बुत की उचित तरीके से देखभाल उचित तरीके से किए जाने की जरूर कही।