फिलहाल जो संभावना है उससे बीजेपी के पीयूष गोयल, शिवसेना से संजय राउत और एनसीपी से प्रफुल पटेल की सेकंड इनिंग लगभग तय मानी जा रही है. पीयूष गोयल केंद्रीय मंत्री हैं और अहम विभाग संभाल रहे हैं. संजय राउत राज्य सभा में बीजेपी पर करारा प्रहार करने में माहिर हैं. कई बार वे अकेले शिवसेना की ओर से टक्कर लेते हैं. इसलिए शिवसेना में उनकी तोड़ का कोई दूसरा शख्स दिखाई नहीं देता. इसी तरह शरद पवार के बाद एनसीपी में कोई राष्ट्रीय स्तर पर सबसे मजबूत नेता है तो वे प्रफुल पटेल हैं. वे विदर्भ के धुरंधर नेता हैं. शरद पवार का उन पर कितना भरोसा है, इसी बात से समझा जा सकता है कि 2014 की मोदी लहर में जब वे लोकसभा चुनाव हार गए थे तो पवार ने उन्हें बिना देर किए तुरंत राज्य सभा में भेजने का इंतजाम किया.
एक बार पी.चिदंबरम का भी कांग्रेस से राज्य सभा में आना लगभग तय है. अगर वे महाराष्ट्र के रास्ते और कांग्रेस की ओर से नहीं आ पाए तो तमिलनाडू से डीएमके कांग्रेस की मदद कर सकती है और पी.चिंदबरम को मौका दे सकती है. आर्थिक क्षेत्र में राज्य सभा में बीजेपी को घेरने वाला कांग्रेस में और कोई दिखाई नहीं देता है. लेकिन कांग्रेस में अगर सीनियर्स वर्सेस यंग का संघर्ष बढ़ा तो, मामला पेचीदा भी हो सकता है. अब दो सीटों पर बात आकर ठहरती है. बीजेपी के विनय सहस्त्रबुद्धे और विकास महात्मे को लेकर दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता. विनय सहस्त्रबुद्धे संगठन के आदमी है. उनकी इस योग्यता को देख कर ही राज्य सभा की सीट दी गई थी. विकास महात्मे को धनगर समाज को प्रतिनिधित्व देने के लिए जगह दी गई थी. लेकिन इस लिहाज से विधान परिषद में गोपीचंद पडलकर से इसकी भरपाई की जा सकती है. गोपीचंद पडलकर आक्रामक भी हैं और शरद पवार के गढ़ में उन्हें चुनौती देने का माद्दा रखते हैं.
पांच सीटों पर तो अपने उम्मीदवारों का चुनाव करवाने में पांचों पार्टियों को कोई दिक्कत नहीं होगी. नंबर गेम के हिसाब से बीजेपी दो और बाकी पार्टियां एक-एक उम्मीदवार अपने हिसाब से दे चुनाव आसानी से करवा लेगी. छठी सीट में अगर महाविकास आघाडी की एकता कायम रहे और दूसरी तरफ बीजेपी भी अड़ी रहे तो फिर दोनों पक्ष के लिए नाकों चने चबाने जैसा काम होगा. ऐसे में छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशनज संभाजीराजे निर्दलीय रूप से सभी पार्टियों की सहमति से राज्य सभा की सीट एक बार फिर पाने की कोशिश में लगे हैं. पिछली बार उन्हें बीजेपी की मदद मिली थी और प्रेसिडेंशियल सीट से चुन कर आए थे. इस बार भी चाह रहे हैं की सभी पार्टियां आम सहमति से उन्हें चुने जाने में मदद करें.
छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज होने की वजह से यह तो तय है कि कोई भी पार्टी उनका खुलकर विरोध करने से बचेगी, पर क्या खुल कर हर पार्टी उनका सहयोग करेगी? एनसीपी का सपोर्ट लेकर वे बीजेपी से हाथ मिला चुके हैं और बीजेपी की मदद से राज्य सभा में चुने जाने के बाद उसे भी अपना टशन दिखा चुके हैं. मराठा आरक्षण को लेकर अगर वे आक्रामक होते हैं तो महा विकास आघाडी सरकार को मुश्किलों में डालते हैं. अगर कुछ नहीं करते तो बीजेपी के सपोर्ट का कोई ऋण नहीं चुकाते. ऐसे में देखना यह है कि उन्हें सभी पार्टियां सपोर्ट कर निर्दलीय रूप से चुने जाने में मदद करती हैं या छठी सीट के लिए बीजेपी और महा विकास आघाडी में तनातनी दिखाई देती है.
शिवाजी महाराज के वंश की एक शाखा कोल्हापुर में रही जिसका प्रतिनिधित्व संभाजीराजे करते हैं. दूसरी शाखा सातारा की है जहां से उदयनराजे पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े थे और एनसीपी के उम्मीदवार हार गए थे. शिवेंद्रराजे बीजेपी से विधायक हैं.