मुंबई : एक कहावत मशहूर है कि घर का भेदी लंका ढाए। यह कहावत सच्चाई बयान करने लगी है। पुलिस ने ऐसे ही घर के भेदी से बीस साल पहले हुए हत्या के मामले को सुलझाया है। अब जाकर आरोपी को पकड़ने में पुलिस को सफलता प्राप्त हुई है। जिस आरोपी को गिरफ्तार किया गया है उसका नाम रूपेश है। रूपेश ने अपने दोस्त की हत्या पैसों के लिए की। हत्या के बाद उसके पास मौजूद 1 लाख 30 हजार रुपये लेकर आरोपी भाग गया था। मामले की अधिक जांच पुलिस द्वारा की जा रही है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामला 2003 का है जब कपड़ा व्यवसायी दीपक राठौड़ (Deepak Rathod) अपने दोस्त रूपेश के साथ सांताक्रुज के एक होटल में रुकाया हुआ था। दोनों के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ और फिर रूपेश ने राठौड़ की हत्या कर उसके पास मौजूद पैसे लेकर फरार हो गया था। घटना 20 साल पुरानी है, तभी हत्या और उससे संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज किया गया था। जिसकी जांच जारी थी, लेकिन जब कभी पुलिस उसे ढूंढने उंसके गांव मुजफ्फरपुर बिहार जाती थी, आरोपी उन्हें नहीं मिलता था। लेकिन पुलिस ने कपना दिमाग चलाया और गांव में नेटवर्क डेवलप किया। जिससे जानकारी मिलने के बाद ठाणे से उसे गिरफ्तार (Arrested) कर लिया गया।
पारिवारिक झगड़े से मिला आरोपी का सुराग
एक अधिकारी ने नाम न बताने के शर्त पर बताया कि आरोपी के घर में पारिवारिक झगड़े चल रहे थे। इसी झगड़े का फायदा पुलिस ने उठाया और गांव में जाकर अपना नेटवर्क बनाया। जिसके जरिये पुलिस को पारिवारिक झगड़े की जानकारी मिली। इसीका फायदा पुलिस ने उठाया और फिर दूसरा परिवार जिससे झगड़ा चल रहा था उसे संपर्क कर आरोपी के नाम और ठिकानों का पकता लगाया। इसीके बाद आरोपी को ठाणे से पकड लिया गया।
घर के लोगों से गुप्त तरीके से करता था संपर्क
संयुक्त आयुक्त सत्यनारायण चौधरी ने बताया कि आरोपी गांव या मुंबई में कहीं किसीके साथ संपर्क में नहीं रहता था। इसलिए एक एक कड़ी ढूंढते हुए आरोपी तक पुलिस पहुंची। चुकी आरोपी किसीसे संपर्क नहीं करता था। आरोपी अपने घरवालों से ही संपर्क में रहता था, इसलिए पुलिस को घर में से ही एक भेदी को ढूंढना पड़ा। इसके बाद आरोपी को जानकारी मिलते ही गिरफ्तार कर लिया।
नाम छिपाकर रहता था
फरार आरोपी दिल्ली, गुजरात जैसे शहरों में टूरिस्ट गाइड (tourist guide) से लेकर ऑटो ड्राइवर के रूप में काम कर रहा था। इस दौरान मुंबई पुलिस अलग अलग शहरों में सुराग की तलाश में जुटी रही। साथ ही आरोपी के रिश्तेदारों से भी सबूत इकट्टा करती रही। जहां भी आरोपी जाता था वह अपना नाम बदलकर रहता था। इसीसे आरोपी का सुराग नहीं मिल रहा था।