मध्य प्रदेश में 50 वर्ष पहले हथियार डाल चुके डकैत सुनाएंगे आपबीती
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मुरैना, मध्य प्रदेश में 50 साल पहले 14 अप्रैल, 1972 को 654 बागियों (डकैतों) ने महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने हथियार डालकर आत्मसमर्पण किया था। दुनिया के सबसे बड़े आत्मसमर्पण को गुरुवार को 50 वर्ष हो रहे हैं, जिसे मुरैना के जौरा स्थित गांधी सेवा आश्रम द्वारा स्वर्ण जयंती समारोह के तौर पर मनाया जा रहा है। समारोह में कई राज्यों के गांधीवादी, साहित्यकार, चिंतक और समाजसेवी जुट रहे हैं। उस समय हथियार डालने वाले कुछ बागी मसलन बहादुर सिंह, अजमेर सिंह, सोनेराम जीवित हैं और वे इस आयोजन में शामिल होकर अपने बागी बनने, हथियार डालने और उसके बाद सामान्य जीवन जीने की जद्दोजहद साझा करेंगे।
चंबल के बीहड़ बागियों (डकैतों) की दहशत से थर्राते थे। उस समय गांधीवादी विचारक डा. एसएन सुब्बाराव, लोक नायक जयप्रकाश नारायण और विनोवा भावे ने सात साल की मेहनत के बाद चंबल के डकैतों को आत्मसर्पण के लिए तैयार किया था। तब 450 डकैतों ने जौरा के गांधी सेवा आश्रम में, 104 ने राजस्थान के तालाबशाही और 100 डकैतों ने उत्तर प्रदेश के बटेश्वर में समर्पण किया था। इन डकैतों को सरकार ने पांच से 10 साल तक अशोक नगर के मुंगावली में बनाई गई खुली जेल में रखा था। पूर्व दस्यु कूट सिंह उर्फ कुट्टा निवासी गोहटा ने बताया, कि खुली जेल से छूटने के बाद अधिकांश डकैत सामान्य जीवन जीने लगे। सरकार ने जो जमीन दी उस पर खेती करने लगे है।
आतंक से मुक्त गांवों में बनी सड़कें, स्कूल
चंबल के बीहड़ में पिछले तीन दशक में फूलनदेवी, दयाराम-रामबाबू गड़रिया, निर्भय ¨सह जैसे कई दुर्दांत डकैत हुए, लेकिन 50 साल पहले हुए आत्मसर्पण के बाद मुरैना, भिंड, शिवपुरी से लेकर उत्तर प्रदेश व राजस्थान के कई क्षेत्रों से खौफ के बादल धीरे-धीरे छंटने शुरू हो गए थे, और विकास का सिलसिला शुरू हुआ था। उस समय अपहरण के डर से सड़क -पुल, स्कूल निर्माण करने के लिए ठेकेदार व इंजीनियर बीहड़ के गांवों में जाने को तैयार नहीं होते थे। गांव के बुजुर्ग रामेश्वर सिंह बताते हैं कि डाकुओं के सामूहिक आत्मसमर्पण के बाद बीहड़ के गांवों में सड़कें और स्कूल बनाने का काम तेज हो गया था। आज गांवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी नहीं है। यही नहीं बीहड़ सैलानियों के आकर्षण का केंद्र भी बन गए हैं।