Thandla: नवकार आराधना के साथ नवपद ओलिजी का समापन

Update: 2024-10-18 10:45 GMT
Thandla थांदला। आत्मोत्कर्ष अणुवत्स वर्षावास में थांदला नगर में ऐतिहासक धर्म आरधना से अनेक श्रावक श्राविकाओं ने अपना आत्मोत्कर्ष साधा है व साध रहे है। जिन शासन गौरव जैनाचार्य पूज्य  उमेशमुनिजी म.सा. "अणु" के दिव्यशीष से बुद्धपुत्र प्रवर्तक   जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. की आज्ञा से थांदला में अणुवत्स पूज्य  संयतमुनिजी, पूज्य आदित्यमुनिजी, पूज्य   अमृतमुनिजी एवं पूज्य  अचलमुनिजी तथा मधुर व्याख्यानी पूज्या  निखिलशीलाजी, पूज्या   दिव्यशीलाजी, पूज्या  प्रियश्रीलाजी एवं पूज्या  दीप्तिश्रीजी म.सा. के सानिध्य में धर्मध्यान का ठाठ लगा हुआ है। वर्षावास के प्रारम्भ से ही तप आराधना का दौर चला जिसमें अभी तक 15 मासक्षमण उपवास के व करीब 10 मासक्षमण एकासन के इस तरह 25 मासक्षमण की उग्र आराधना हुई। इसी के साथ 65 सिद्धितप, 2 श्रेणितप व 2 लघु सर्वतोभद्र तप की उग्र आराधना से संघ में उत्साह का वातावरण बना हुआ है।
तप के साथ आध्यात्मिक आराधना में इस बार नवकार आराधना का अभिनव प्रयोग सबको आनंदित व हर्ष विभोर कर गया। तप आराधना के माहौल के बाद ज्ञान-दर्शन-चारित्र आराधना का समन्वय लिए नवकार आराधना में पूज्यश्री व विराजित सन्तों ने 20 लोगस्स का रागात्मक ध्यान करवाया जिसमें सभी ने जिनेश्वर देव के स्वरूप का चिंतन करते हुए आपने ध्यान को प्रशस्त किया। दोपहर वाचनी में गुरुदेव के लिखे चारित्र के माध्यम से कर्मों की विविधता पर चिंतन प्रस्तुत किया इस दौरान नवकार आराधना से जुड़े करीब 40 से अधिक श्रावक श्राविकाओं ने प्रातः 5 बजे राईसी प्रतिक्रमण किया, प्रातः 9 से 10 प्रवचन जिसमें अणुवत्स के सहज में होने वालें 18 पाप के दुष्परिणाम तथा आदित्यमुनिजी के धर्म रत्न के पात्र बनने के 13वें गुण सतकथा में 8 प्रकार की निषेधकारी भाषा के प्रयोग से होने वाली हानि का वर्णन करते हुए ऐसी भाषा से बचने के उपाय सुझाए गए। मंगल प्रवचन के बाद अणुवत्स द्वारा रचित नवकार चालीसा का सामूहिक गान, तीर्थंकर व उपकारी गुरु वंदना कर सबने 10 माला नवकार मंत्र की गिनी आराधकों ने रात्रि में भी देवसी प्रतिक्रमण के बाद 10 माला गिनी यही क्रम पूरे 9 दिन तक चला।
नवकार आराधना में अणुवत्स ने अपने मधुर वचनों के माध्यम से जैन दर्शन पर निर्मल श्रद्धा व कर्मों के खेल से लाचार होने के बजाय उससे बचने के उपाय बताए तो महासतियों ने 9 दिनों तक रोज क्रमशः महाविदेह क्षेत्र की यात्रा, नवकार के पद, 10 दुर्लभ बोल के साथ मैं आज कौन सा तप करु ..? जैसे विषयों पर ध्यान करवाते हुए अद्भुत चिंतन दिया। उसके बाद सबने सामूहिक रूप से गुरुदेव द्वारा रचित णमोक्कर अणुप्पेहा की गाथाओं का स्मरण किया। सम्पूर्ण आराधना के दौरान आराधकों ने बड़े स्नान के त्याग, जमीकंद, रात्रिभोजन व सचित वस्तुओं का त्याग, ब्रम्हश्चर्य का पालन करते हुए एकासन बियासन की आराधना की जिसकी व्यवस्था श्रीसंघ थांदला द्वारा स्थानीय महावीर भवन पर की गई। नवकार आराधकों ने नवकार आराधना के अपने अनुभव महासतियों को लिखकर दिए जिसमें उन्होंनें आराधना से मिली नई ऊर्जा व अनायास ही कर्म बंध व कर्म निर्जरा के विभिन्न पहलुओं को जानकर उसे अपनाने के साथ गुरुभगवंतों द्वारा नवकार मंत्र की अनुप्रेक्षा से आत्म साधना में मिली गति का वर्णन करते हुए प्रतिवर्ष नवकार आराधना करवाने की बात कही। इस दौरान आराधकों ने नवकार आराधना में लगे दोषों को प्रकट करते हुए आत्मशुद्धि भी की। समस्त नवकार आराधकों को रतलाम निवासी शैलेषजी पीपाड़ा परिवार व थांदला राजुल प्रकाशचन्द्र तलेरा परिवार द्वारा प्रभावना प्रदान की गई।
नवपद ओलिजी का समापन
नवकार आराधना के साथ ही थांदला में गुरुभगवंतों के सानिध्य में नवपद ओलिजी की आराधना भी संपन्न हुई। जानकारी देते हुए संघ अध्यक्ष भरत भंसाली, मंत्री प्रदीप गादिया प्रवक्ता पवन नाहर ने बताया कि इस बार नवपद ओलिजी का लाभ श्रीसंघ थांदला द्वारा लिया गया जिसमें करीब 40 आरधकों ने वरण, आयम्बिल निवि आदि से नवपद की आराधना की। नवकार आराधना के साथ 9 अक्टोबर से प्रारम्भ हुई नवपद ओलिजी का समापन 17 अक्टोबर पक्खी पर्व पर हुआ ऐसे में पक्खी पर्व की उपवास से आराधना करने वालें तपस्वियों व नो दिनों तक दूध, दही, घी, तेल, मिठाई, नमक मिर्च के त्याग कर केवल एक समय मात्र उबला हुआ भोजन करने वालें समस्त नवोपद ओलिजी आराधकों के पारणें संघ द्वारा स्थानीय महावीर भवन पर रखे गए जिसकी व्यवस्था ललित जैन नवयुवक मंडल अध्यक्ष रवि लोढ़ा व उनकी टीम द्वारा की गई।
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