जान जोखिम में डाल कर बीच गंजाल नदी को पार कर स्कूल जाते है बच्चे

पढ़ना है जरूरी इसलिए रोज है यह मजबूरी. यह कोई स्लोगन नहीं है. हरदा जिले के वनांचल में स्कूल जाने वाले बच्चों की कष्ट भरी हकीकत है.

Update: 2022-07-27 11:26 GMT
जान जोखिम में डाल कर  बीच गंजाल नदी को पार कर स्कूल जाते है  बच्चे
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पढ़ना है जरूरी इसलिए रोज है यह मजबूरी. यह कोई स्लोगन नहीं है. हरदा जिले के वनांचल में स्कूल जाने वाले बच्चों की कष्ट भरी हकीकत है. रोज की जिंदगी का हिस्सा. जिले के आदिवासी क्षेत्र राजाबरारी में कई गांव के स्कूली बच्चे रोज खतरों के बीच गंजाल नदी को पार कर स्कूल पहुंचते हैं.

इस इलाके के मारपाडोह, महगांव, सालय, साहबनगर, टेमरूबहार, मोग़राढाना जैसे करीब 12 गांव के 70 से ज्यादा स्कूली बच्चे बोरी गांव के सरकारी हायर सेकंड्री स्कूल में पढ़ने जाते हैं. बीच में पहाड़ी गंजाल नदी का रपटा पड़ता है, जो पूरी बारिश में डूबा रहता है. क्षेत्र के ग्रामीण और बच्चे रोज इसी तरह नदी पार करते हैं. इस जगह बड़े पुल की मांग वर्षो से की जा रही है.
हरदा जिले के आदिवासी अंचल में बारिश किसी मुसीबत से कम नहीं होती है. अंचल के गांवों में रहनेवाले ग्रामीण और स्कूली बच्चे अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रोज खतरों का सामना करते हैं. वो बारिश के मौसम में अपनी जान जोखिम में डालकर उफनती नदी पार करते हैं. एक तरफ ये मजबूरी है तो दूसरी तरफ आगे बढ़ने का जज्बा जो स्कूली बच्चों को रोज स्कूल जाने के लिए प्रेरित करता है. राजबरारी इलाके के कई गांव के बच्चे पढ़ाई के लिए रोज इस तरह जान की बाजी लगाते हैं.
नदी पार स्कूल
बोरी में हायर सेकेंड्री स्कूल है. इसलिए 10 किमी के क्षेत्र में बसे गांवों के बच्चे इसी स्कूल में पढ़ने आते हैं. शासन ने क्षेत्र में दो जगह 12वीं तक के स्कूल खोले हैं. पहला बोरी में दूसरा कायदा गांव में. लेकिन मुसीबत दोनों जगह है. बच्चों को और ग्रामीणों को दोनों जगह ही इसी तरह नदी पार जाना पड़ता है. स्कूल में पढ़ने वाली छात्राएं कहती हैं पानी कम होने पर किसी के सहारे पार होते हैं. ज्यादा होने पर तैरकर जाना होता है. इस स्थान पर बड़ा पुल बनना चाहिए.
नहीं सुन रहे नेता
राजाबरारी क्षेत्र की दूरी जिला मुख्यालय से लगभग 70 किमी है. वन क्षेत्र में कई ऐसे रपटे हैं, जो बारिश में पूरे समय डूबे रहते हैं. इलाके के ग्रामीण भी लंबे समय से गंजाल नदी के डोलाडोह रपटे पर पुल बनाने की मांग कर रहे हैं. पर नतीजा कुछ नहीं हुआ.
कई बार हो चुके हैं हादसे
टेमरूबहार गांव के युवा आदिवासी सरपंच मनोज धुर्वे ने कहा कई बार बारिश में आना जाना रुक जाता है. चेन बनाकर स्कूली बच्चे पार होते हैं. बोरी में आदिवासी हॉस्टल है लेकिन 50 सीट टेमागांव क्षेत्र के विद्यार्थियों को दे दी गयी. इससे स्थानीय विद्यार्थियों की परेशानी बढ़ गयी. ग्रामीण जुगलाल उइके बताया कई बार रपटा पार करने के दौरान लोग बह जाते हैं. जिन्हे तैरना आता है वह बहाव के साथ तैरकर अपनी जान बचाते हैं. जनप्रतिनिधियों को भी ज्ञापन दिए पर कुछ नहीं हुआ. अगर यहां पुल बन जाए तो 15 किमी की दूरी पर यह क्षेत्र नेशनल हाइवे से जुड़ जाएगा. गुलरधाना गांव के बच्चों ने तो इस मुसीबत के कारण स्कूल जाना ही छोड़ दिया क्योंकि कायदा गांव के स्कूल जाते समय नदी में पूरे समय उफान रहता है. रपटा और पुल भी नहीं है


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