पैसे की तंगी से नहीं हो सका ऑपरेशन, दोस्त ने बदल दी बंटी की किस्मत

Update: 2023-01-19 06:36 GMT

भोपाल न्यूज़: शारीरिक अपंगता इंसान को और कमजोर बना देती है. मैं इसी कमजोरी को ताकत बनाकर कुछ अलग करने की चाह लिए भोपाल आया हूं. मैं एक साल का था तभी से दोनों पैर मुड़े हुए हैं. गांव में खेलने जाता था तो लोग मना करते थे, लेकिन कुछ दोस्त हौसला भी बढ़ाते थे. यह कहना है ग्वालियर के बंटी यादव का. जो एक पैरा एथलीट हैं. वो टीटी नगर स्टेडियम में पिछले कुछ दिनों से अपनी तैयारी में जुटे हैं, उनके दोनों पैर मुड़े हैं. वो 100 मीटर की दौड़ में भाग लेते हैं.

खेले हैं दो नेशनल: मैंने स्टेट लेवल पर दो बार मेडल जीते हैं. 2018 में पंचकुला नेशनल के लिए सिलेक्शन हुआ. इसमें कोई पॉजिशन नहीं लगी. 2022 में ओडिशा के कलिंगा स्टेडियम में हुए नेशनल में छठवां स्थान पाया. दो साल करोनो के चलते खेल नहीं सका.

बंटी बताते हैं कि पैदा होने के बाद जब परिवार ने देखा कि मेरे दोनों पैर मुड़े हुए हैं तो वे गांव से ग्वालियर के एक अस्पताल लेकर आए. छह महीने तक अस्पताल में हर रोज प्लास्टर चढ़ता, था लेकिन पैर ठीक नहीं हुआ. डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी. जिसमें मैं 50 प्रतिशत ही ठीक हो सकता था. इसीलिए परिवार ने मना कर दिया था. खेल में रुचि बचपन से ही रही. गांव में स्कूल में खेलता था. तब एक दोस्त ने मुझे पैरा स्पोर्ट्स की जानकारी दी. फिर मैं गांव से 40 किमी दूर एलएलआईपीई ग्वालियर में अभ्यास करने जाता था. इसके लिए सुबह और शाम को बस में ही सफर करना पड़ता था. इसके लिए सुबह चार बजे से उठना पड़ता था. वहां कोच एसके प्रसाद से मुलाकात हुई और वो मुझे टीटी नगर स्टेडियम लेकर आ गए.

बाणगंगा में किराए के मकान में रहते हैं: 24 साल के बंटी ने बताया कि मैं ग्वालियर से आया हूं. बाणगंगा में किराए के मकान में रहता हूं. खाना भी खुद बनाता हूं. मैं इंडिया के टॉप-6 एथलीट्स में शामिल हूं. मेरा लक्ष्य नेशनल में स्वर्ण पदक जीतना है. मेरे पिता गांव में मजदूरी करते हैं. जब पहली बार आया था तब टीटी नगर स्टेडियम में फीस देकर अभ्यास करता था. कुछ दिनों के बाद पैरा होने के नाते विभाग ने मेरी फी माफ कर दी.

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