Thandla। भारत में प्रवर्तन रूप सकल धर्मों में तिथियों का बड़ा महत्व दर्शाया गया है। जैन धर्म भी इससे अछूता नही है। जैन परम्पराओं में माघ सुदी दशमी के दिन अनेकानेक चारित्र आत्माओं से संसार का त्याग कर मोक्ष मार्ग कि ओर कदम बढ़ाया है। स्थानकवासी परंपरा में पूज्य श्री धर्मदास गण के नायक आगमज्ञाता बुद्धपुत्र प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. व पुण्य पुंज पूज्या श्री पुण्यशीलाजी महासती सहित 8 संत-सतिया जी ने जिन शासन गौरव जैनाचार्य पूज्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. "अणु" से संयम लेकर अपना जीवन मोक्ष पाने की आराधना में लगा दिया है। उनके गुणों का अनुमोदन करने स्थानीय महिला स्थानक पर आयोजित धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए सरलमना पूज्या श्री निखिलशीलाजी म.सा. ने कहा कि दुनिया में अनेक चारित्र आत्माओं ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है तो अनेक आत्मा इस दिशा में अप्रमत्त भावों से अपने कदम बढ़ा रही है, उनमें से एक आत्मा है प्रवर्तकश्री की जिनके निश्रा में आज सैकड़ो संत-सती श्रावक-श्राविका धर्म की आराधना कर रहे है। उनके आगमज्ञान की बात करें, उनकी सेवा सुश्रुषा की बात करे, अपनी काया तक के मोह विजय की बात करें या फिर सकल जीवन को अपनी सरलता व निस्पृहता से धर्म मार्ग में जोड़ने की बात करें वास्तव में उनका पूरा जीवन ही प्रेरणा दायक रहा है। उन्होंनें अपनी उत्कृष्ट आराधना में आगम के अनुसार भगवान की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए अंश मात्र भी दोष नही लगाया है। उनके साथ ही आज उनकी बहन ने भी संयम अंगीकार किया था जो आज पुण्य पुंज पूज्या श्री पुण्यशीलाजी म.सा. के नाम से अनेक सतियों की गुरुणी मैया बनकर अपना अप्रितम वात्सल्य प्रदान कर रही है। दोनों ही महान आत्माओं ने वर्ष 1987 में अपनी जन्मभूमि कुशलगढ़ में संयम लिया था। आज ही के दिन आप श्री के दिक्षा के बाद 1997 में बामनिया में चार दिक्षा हुई थी। विशेष बात यह है कि वो चारों ही दिक्षा एक ही परिवार से थी। उनमें सरलता की मूर्ति पूज्य श्री वर्धमानमुनि जी म.सा., अणुवत्स संस्कार शिल्पी पूज्य गुरुदेव श्री संयतमुनिजी म.सा.,
आप दोनों पिता-पुत्र ने एवं वात्सल्यवारिधि तपस्वी रत्ना पूज्या श्री दिव्यशीलाजी (माताजी) म.सा. एवं आगम व्याख्यानी पूज्या श्री प्रियशीलाजी म.सा. आप दोनों मां-बेटी ने भी दिक्षा धर्म को स्वीकार करके दृढ़तम पालन करके अपने आत्मा को परमात्मा बनानें वाला सत्व जगाया हैं। आज के दिन ही सेवाभावी पूज्या श्री भव्यताजी म.सा. (2023) व नव दिक्षिता पूज्या श्री अंजलिजी म.सा.(2024) ने भी संयम लेकर अपना जीवन जिन शासन की सेवा में समर्पित किया था। पूज्याश्री के साथ पूज्याश्री दीप्तिश्रीजी व प्रियशीलाजी म.सा. ने स्तवन के माध्यम से सभी संयमी आत्माओं के संयमी जीवन की शुभकामनाएं अभिव्यक्त की। उल्लेखनीय है कि बामनिया में दीक्षित चारों आत्माओं से पूज्याश्री निखिलशीलाजी म.सा. का भी सांसारिक नाता है। आपने अपने माता-पिता व भाई बहन म.सा. के पूर्व ही संयम लेकर जिन शासन को समर्पित हो गए थे। इस अवसर पर श्रीसंघ कि ओर से पूर्व अध्यक्ष रमेशचंद्र चौधरी ने स्तवन के माध्यम से प्रवर्तक श्री व अन्य चारित्र आत्माओं के उपकारों को याद किया।
राष्ट्रीय दिक्षा दिवस घोषित हो - पवन नाहर
माघ सुदी दशमी कोई सामान्य तिथि नहीं हैं। इस तिथि पर जैन धर्म अनुयायीयों फिर चाहे वह श्वेतांबर हो या दिगंबर हर पंथ हर सम्प्रदाय में इस दिन अनेक आत्माओं ने संयमी जीवन की शुरुआत की है। दिगम्बर व श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के अनेकानेक आचार्य व उनके शिष्य समुदाय में दीक्षा, तेरापंथ महासभा के आचार्य महाप्रज्ञ जी की दीक्षा व आचार्य श्री महाश्रमणजी के नैश्राय में एक साथ अनेक दीक्षा, स्थानकवासी सम्प्रदाय में धर्मदास गण के नायक व अन्य संत सतियों की दीक्षा, अन्य सम्प्रदाय में भी इसी तिथि को अनेक आत्माओं ने दीक्षा लेकर संसार सागर से पार होने का प्रबल पुरुषार्थ कर आत्मा का कल्याण किया है। ऐसे में जीवदया अभियान के राष्ट्रीय संयोजक पवन नाहर का कहना है कि जिस प्रकार शासन ने देश में अनेक पर्व व त्यौहारों के महत्व व प्रासंगिकता को देखते हुए उसे मनाने के लिए एक दिन निश्चित किये है उसी तरह हमारें संघ समाज व शासन को चाहिए कि वे भी आज की तिथि को राष्ट्रीय दीक्षा दिवस घोषित करें। पवन नाहर का कहना है कि यदि ऐसा किया जाता है तो जैन समाज में धर्म पर्व का महत्व बढ़ेगा व अनेक आत्माओं के दीक्षा प्रसंग को देखते हुए समाज के अन्य श्रावक-श्राविकाएं भी कुछ त्याग - प्रत्याख्यान, व्रत - नियम लेकर अपने जीवन को भावित कर धन्य बना सकेंगें। नाहर का कहना है कि राष्ट्रीय दीक्षा दिवस के पुनीत प्रसंग पर अनेक आत्मन अपने आराधक महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर व उनके गुणों का स्मरण करके अपना कल्याण साध सकते है। इसलिए आज का दिन राष्ट्रीय दीक्षा दिवस घोषित होना चाहिए।