नागपंचमी का है खास महत्व, इस मंदिर में दर्शन मात्र से होती है संतान की प्राप्ति
बड़वानी। निमाड़ के प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र नागलवाड़ी शिखर धाम स्थित भीलट देव मंदिर में बीती रात 10 बजे से विशेष आयोजन शुरू हुआ. बाबा भीलट देव का 101 लीटर दूध से अभिषेक किया गया. (Bhilatdev Temple) इस दौरान गर्भ गृह को आकर्षक फूलों से सजा कर बाबा का श्रृंगार किया गया, नागलवाड़ी के टमाटर ग्रुप और कातोरा गादी भक्त मंडल के द्वारा बाबा को 108 व्यंजनों का भोग लगाया गया. रात भर में करीब 50 हजार से ज्यादा लोगों ने शिखर धाम पहुंचकर बाबा भीलट देव के दर्शन किए.(Nag panchmi 2022)
नागपंचमी पर उमड़ता है श्रद्धा का सैलाब: सतपुड़ा की हरी-भरी वादियों में बड़वानी के नागलवाड़ी गांव में भीलट देव शिखरधाम है, सतपुड़ा पर्वत पर चारों तरफ से हरियाली ओढ़े भीलट देव धाम किसी तीर्थ से कम नहीं है. नाग पंचमी पर यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन कर खुद को भाग्यशाली मानते हैं. मंदिर का निर्माण गुलाबी पत्थरों से किया गया है. इस मंदिर की वास्तुकला दर्शनीय है, नागपंचमी के दिन करीब 4 से 5 लाख श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं. खासतौर पर जिन्हें संतान नहीं होती, उनके लिए ये मंदिर श्रद्धा का केंद्र है. लोगों का दावा है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी होती है. कुछ लोग इस मंदिर को चमत्कारिक मानते हैं.भीलट देव धाम का इतिहास: पौराणिक कथाओं के मुताबिक प्राचीन समय में एक किन्नर ने संतान प्राप्ति की मनोकामना कर इन्हें आजमाना चाहा था. तब कुछ समय बाद भीलट देव के आशीर्वाद से किन्नर गर्भवती हो गया. हरदा के रोलन गांव पाटन में जन्में भीलट देव भगवान शिव के वरद पुत्र माने जाते हैं, उनका जन्म एक गवली परिवार में हुआ था. जागीरदार राणा रेलन और उनकी पत्नी मैदा बाई संतान नहीं होने से दुखी थे, पति-पत्नी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की, जिसके बाद शिव ने उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दिया, लेकिन उन्होंने दंपति को कहा कि जिस दिन आप मेरी भक्ति करना छोड़ देंगे, उस दिन मैं उस पुत्र को वापस ले लूंगा. (Barwani Bhilatdev Temple)
कैसे हुआ भीलट देव का जन्म: विक्रम संवत 1220 में राणा के यहां बाबा भीलट देव का जन्म होता है, लेकिन कुछ साल बाद पति-पत्नी भगवान का स्मरण करना भूल जाते हैं. तब भगवान शंकर जोगी का वेश रखकर रोलन गांव आते हैं और एक वृक्ष के नीचे अपना डेरा जमा कर बैठ जाते हैं. मैदा बाई बाबा भीलट देव को झोली में सुलाकर मकान के समीप पानी लेने माचक नदी पर जाती है, इधर भगवान शिव बच्चे को झोली से निकाल कर ले जाते हैं और उस झोली में एक नाग को छोड़ देते हैं. भीलट देव की मां जब पानी लेकर वापस आती हैं तो झोली खाली देख कर विलाप करती हैं. बाद में वे झोली में रखे नाग को निकालती हैं, तब उन्हें शिव को दिए वचन की याद आती है. वह नाग को सिलट नाम देकर पालती है.
मान्यताओं के लिए ये करें: माना जाता है कि बाबा भीलट देव अपनी शक्तियों से जनमानस की सेवा के लिए नांगलवाड़ी गांव और तपस्या के शिखर को चुना था. मंदिर संचालकों का कहना है कि, "वर्षों से चली आ रही पशु बलि को इस स्थान पर प्रतिबंधित कर दिया गया है, नागलवाडी शिखर धाम पर भीलट देव के दर्शन कर मन्नतधारी यहां नारियल पर उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मांगते हैं, साथ ही मन्नत पूरी होने पर नारियल पर सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान को चढ़ाते हैं."
अलौकिक शक्ति हैं भीलट देव: बालक भीलट देव की तंत्र शिक्षा-दीक्षा भगवान शिव और पार्वती की देखरेख में संपन्न होना माना जाता है. तांत्रिक शक्तियों को आजमाने के लिए बाबा भीलट देव अपने साथी भैरव के साथ देशभर में जाकर कई तांत्रिकों ओझाओं को पराजित कर किया था. बाबा भीलट देव का विवाह बंगाल की राजकुमारी राजल के साथ हुआ था. बाद में बाबा तपस्या के लिए पत्नी सहित सतपुड़ा के पर्वत पर चले गए और दिव्य ज्योति में विलीन हो गए थे. मान्यता है कि बाबा आज भी एक अलौकिक शक्ति के रूप में सतपुड़ा के पर्वत पर विराजित हैं.