Nagda: मां गंगा के तट पर बनारस के अस्सी घाट में नई पीढ़ी ने सीखी सर्वप्राचीन ब्राह्मी लिपि
Nagda नागदा: ब्राह्मी लिपि विशेषज्ञा विदुषी डॉ. मुन्नी पुष्पा जैन एवं डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव (दिल्ली) ने नई पीढ़ी को सभी लिपियों की जननी, विश्व की सबसे प्राचीन ब्राह्मी लिपि को सिखाने के उद्देश्य से मां गंगा के अस्सी घाट पर सांयकाल सर्वप्राचीन ब्राह्मी लिपि की कार्यशाला का आयोजन किया। जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ने राजा ऋषभांदेव के रूप में सर्वोत्तम राज्य किया था । उन्होंने समस्त प्रजा जन को असि-मसि-कृषि-विद्या-वाणिज्य-शिल्प आदि छह कलाएं सिखाकर जीवन जीने की एवं निर्वहन करने की कला सिखाई थी और राजा ऋषभदेव ने सर्वप्रथम बालिका शिक्षा का उद्घोष करते हुए अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या एवं पुत्री सुंदरी को अंक (गणित) विद्या सिखाई थी । अंक विद्या का विकास आज गणित के रूप में है और ब्राह्मी लिपि के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसी लिपि से सभी लिपियों का जन्म और विकास हुआ है इस तरह उन्होंने छात्रों-छात्राओं को लिपि के इतिहास एवं विकास की परम्परा को समझाया ।
उन्होंने बताया कि भारत का नाम भी राजा ऋषभदेव King Rishabhdev के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत The eldest son, Emperor Bharata के नाम पर पड़ा । BHU, विद्यापीठ, हरिश्चन्द्र आदि के विद्यार्थियों एवं बाहर से आए पर्यटकों ने बेहद उत्सुकता के साथ ब्राह्मी लिपि सीखी एवं सफलता के साथ परीक्षा भी दी । नई पीढ़ी ने ब्राह्मी लिपि को सीखकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस किया और कहा कि वो अब प्राचीन शिलालेख को पढ़ सकते हैं। युवाओं ने ब्राह्मी लिपि को रोज अभ्यास करने एवं इसका प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लिया। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, जैनदर्शन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष, भारतीय संस्कृति-भाषा एवं लिपि का संरक्षण-संवर्धन करने वाले प्रो. फूलचंद जैन 'प्रेमी' जी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में इस कार्यशाला का आयोजन किया गया। उन्होंने बताया कि गंगा तट पर समय-समय पर ब्राह्मी लिपि की ऐसी ही कार्यशाला का आयोजन होता रहेगा एवं नई पीढ़ी को सिखाने का यह क्रम जारी रहेगा।