Nagda: "जैन दंपति ने गंगा तट पर नई पीढ़ी को विश्व की सर्वप्राचीन ब्राह्मी लिपि एवं सर्वप्राचीन प्राकृत भाषा सिखाई"

Update: 2024-06-24 16:55 GMT
Nagda, नागदा: बनारस सर्वविद्या की राजधानी है और काशी के गंगा नदी के सुप्रसिद्ध घाट अस्सी में आये दिन देश की संस्कृति,ज्ञान विज्ञान से संबंधित भव्य आयोजन होते रहते हैं । जैनधर्म के चार तीर्थंकरों की जन्मभूमि एवं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ब्रह्मी लिपि सिखाने की मूल भावना सफल हुई और नेपाल, बंगाल, गुज़रात , विहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दक्षिण, मध्यप्रदेश आदि से आए पर्यटकों एवं बनारस के विभिन्न विद्यालय एवं विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने भारतीय संस्कृति, शिलालेखों को समझने के लिए विश्व की सबसे प्राचीन लिपि एवं सभी लिपियों की जननी ब्राह्मी लिपि एवं सर्वप्राचीन प्राकृत भाषा को मां गंगा के सानिध्य में अस्सी घाट पर उत्सुकता के साथ सीखा । पर्यटकों एवं विद्यार्थियों ने भारतीय संस्कृति-भाषा-लिपि को सहज-सरल तरीके सी सिखाने के लिए और कार्यशाला के आयोजन की अत्यधिक प्रशंसा की ।
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, जैनदर्शन विभाग Department of Jain Philosophy के पूर्व विभागाध्यक्ष, भारतीय संस्कृति-भाषा एवं लिपि का संरक्षण-संवर्धन करने वाले , राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो. फूलचंद जैन प्रेमी जी, ब्राह्मी लिपि विशेषज्ञा , आदर्श महिला सम्मान से सम्मानित विदुषी डॉ. मुन्नी पुष्पा जैन एवं नवीन संसद भवन में काशी का प्रतिनिधित्व करने वाली, जैनधर्म की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि विदुषी डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव (दिल्ली) ने भारतीय भाषा एवं लिपि की मूल भावना से जन-जन को जोड़ने के लिए प्राकृत भाषा, ब्राह्मी लिपि की सफल कार्यशाला का आयोजन किया ।
डॉ. जैन ने बताया कि जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ने राजा ऋषभदेव के रूप में प्रागैतिहासिक काल में सर्वप्रथम अयोध्या Ayodhya first पर राज्य किया था और उन्होंने ही सर्वप्रथम सभी प्रजा जन को असि-मसि-कृषि-विद्या-वाणिज्य-शिल्प आदि छह कलाएं सिखाकर जीवन जीने की एवं निर्वहन करने की कला सिखाई थी और राजा ऋषभदेव ने सर्वप्रथम स्त्री शिक्षा का उद्घोष करते हुए अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या एवं पुत्री सुंदरी को अंक (गणित) विद्या सिखाई थी । अंक विद्या का विकास आज गणित के रूप में है और अक्षर विद्या ब्राह्मी लिपि के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसी लिपि से देवनागरी आदि सभी लिपियों का जन्म और विकास हुआ है । सर्वप्राचीन प्राकृत भाषा का महत्त्व एवं इससे कैसे भाषाओं का विकास हुआ, कैसे भारत का नाम राजा ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर पड़ा और कैसे प्राचीन हाथीगुंफा शिलालेख में प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में लिखा हुआ भारत नाम प्राचीन विद्या सीखकर विद्यार्थी पढ़ सकते हैं ये सभी तथ्य सहज-सरल ढ़ंग से समझाएं गए । सभी विद्यार्थी ब्राह्मी लिपि में अपना नाम लिखकर एवं प्राकृत भाषा के विषय में समझकर प्रसन्न हुए।
नई पीढ़ी ने विश्व की सर्वप्राचीन प्राकृत भाषा एवं सर्वप्राचीन ब्राह्मी लिपि को सीखकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस किया और कहा कि वो अब प्राचीन शिलालेख को पढ़कर अपना इतिहास समझ सकते हैं। युवाओं ने ब्राह्मी लिपि को रोज अभ्यास करने एवं इसका प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लिया। सुबह श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में नैतिक शिक्षण शिविर के समापन समारोह में भी डॉ. मुन्नी पुष्पा जैन ने ब्राह्मी लिपि अनेक बच्चों को ब्राम्ही लिपि सिखाई एवं गंगा तट ,अस्सी घाट पर प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि की तीन दिवसीय सफल कार्यशाला फिलहाल सम्पन्न हुई किन्तु जैन दंपति का संकल्प मज़बूत है और वे प्राचीन भाषा-लिपि को जन-जन तक पहुंचाने के लिए समय-समय पर यह कार्यशाला लगाकर , इस मुहिम का क्रम जारी रखेंगे और नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति -भाषा-लिपि से रूबरू करवाते रहेंगे।
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