मध्यप्रदेश: बुंदेलखंड के दमोह से 42 किलोमीटर दूर कुम्हारी गांव के रहने वाले संतोष रजक बीए पास हैं. आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते संतोष 20 साल पहले दिल्ली चले गए और वहां ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम किया. वहां का माहौल देख खुद का व्यापार करने की सुंदर राखी बनाने का काम शुरू किया. मालिक के नाम से इतना लगाव कि दुकान का नाम भी मालिक के नाम पर ‘राहुल राखी वाला’ रख दिया और दिल्ली से राखी बनाने का कच्चा माल लाकर गांव में राखी बनाने लगे.
संतोष ने बताया कि शुरुआत में यह कारोबार सीजन तक ही सीमित रहता था. लेकिन, धीरे-धीरे कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली और बाजारों में राखियों की डिमांड बढ़ गई. डिमांड इतनी अधिक मात्रा में बढ़ी की तकरीबन 400 लोगों की मदद से साल भर में राखियां बनवाना शुरू कर दिया. अब यह कारोबार पूरे कुम्हारी गांव में फैला हुआ है. गांव की हर महिला अब रोजगार पा रही है.
पहले गांव, शहर अब अन्य जिलों सागर, दमोह, जबलपुर, पन्ना, छतरपुर तक के व्यापारियों को हम राखियां सप्लाई कर रहे हैं. कम पैसों की लागत से शुरू किया कारोबार अब लाखों रुपये तक पहुंच गया है. इतना ही नहीं, संतोष रजक पढ़े-लिखे होने के साथ देश मे दिनों दिन फैल रही बेरोजगारी को भांपते हुए खुद तो रोजगार से जुड़े ही साथ ही 400 लोगों को भी रोजगार मुहैया कराया.
3 सालों से बना रही राखी
चील घाट की रहने वाली रश्मि लोधी ने बताया कि वह राहुल की दुकान से राखी बनाने का कच्चा माल लेकर जाती हैं और घर में सभी यही काम करते हैं. जिससे हमारे पूरे परिवार का खर्चा चलता है. कुम्हारी गांव में राहुल की दुकान से राखी खरीदने आए खरीदार ने बताया कि वह बीते 15 सालों से वहां से माल खरीदी कर रहे हैं. सारा कच्चा माल दिल्ली से लाते हैं, जिन्हें किलो के भाव से ग्रामीण महिलाओं के घर तक पहुंचाया जाता है, जिसके बाद एक दर्जन राखी के 2 से 3 रुपये दिए जाते हैं.