रायसेन। जिला अस्पताल में शादी से पहले जांच करवा लें तो बच सकते हैं थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से। इन सावधानियों से रोकी जा सकती है यह बीमारी जिला अस्पताल के मेडिकल आफिसर डॉ. यशपाल सिंह बाल्यान कहते हैं कि थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला ब्लड डिसऑर्डर है। इस रोग के प्रति जागरुकता के अभाव के कारण बच्चों अधिक ग्रसित हो रहे हैं। जिन परिवारों में थैलेसीमिया का कोई मामला है या इस तरह की बीमारी का संदेह है तो विवाह पूर्व माता-पिता दोनों की रक्त जांच करना चाहिए। गर्भधारण के पूर्व भी विशेषज्ञों की सलाह लेना चाहिए।
थैलेसीमिया तीन प्रकार का होता है। बीटा थैलेसीमिया, अल्फा और माइनर थैलेसीमिया। थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला ब्लड डिसऑर्डर है। इस रोग के होने पर शरीर में हीमोग्लोबिन बनने प्रक्रिया बंद हो जाती है। जिससे खून की कमी होने लगती है। यह बीमारी जन्म से ही बच्चों को होती है। बच्चा जब दो से तीन माह का हो जाता है तब मर्ज का पता चलता है। ऐसे बच्चों को हर दो से तीन माह में रक्त चढ़ाया जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है। यह काफी घातक होता है। किन्तु माता-पिता में से एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। खून में हीमोग्लोबिन होना कितना जरूरी है, यह सब जानते हैं। लेकिन यदि किसी शरीर में हीमोग्लोबिन बनना ही बंद हो जाए तो क्या होगा? जी हां, कई बच्चों के शरीर में हीमोग्लोबिन बनना बंद हो रहा है। थैलेसीमिया जैसी खतरनाक बीमारी की चपेट में आ रहे बच्चों के शरीर में इसी कारण से बार-बार खून बदलना पड़ता है।