रमजान और ईद के मुख्य बाजार , इब्राहिमपुरा, नदीम रोड पर टोपियों की बड़ी दुकानें अब भी आबाद

Update: 2024-03-30 05:22 GMT
भोपाल : एक जमाना था, जब इबादतगाह में बुजुर्ग ही दिखाई दिया करते थे। या यूं कहें कि पूजा, पाठ, नमाज, इबादत सिर्फ रिटायर्ड लोगों के हिस्से का कर्म हुआ करता था। शिक्षा के बढ़ते दायरे ने सिखाया कि जिंदगी स्थाई नहीं है, न स्थिर है और न किसी तयशुदा समय तक निरंतर है। आज के गुनाहों की माफी आज ही मांग ली जाए, समय रहते कुछ भलाई कर ली जाए और कुछ सवाब (पुण्य) कमा लिया जाए तो कल जब ईश्वर अल्लाह से मुलाकात होगी तो इस बात की शर्मिंदगी से बच जाएंगे कि वक्त ने हमें कुछ बेहतर नहीं करने दिया।
 जवानी की उम्र में इबादत और मस्जिदों की तरफ बढ़े तो अपनी पसंद नापसंद भी साथ चलती गई। परंपरागत, दकियानूसी टोपियों की जगह नई फैशनेबल और सुंदर लुक देने वाली टोपियों ने ले लिया। किसी जमाने कपड़ों की सिलाई के साथ बचे कपड़ों से बनने वाली टोपियां अब चलन से बाहर हैं। सिर की टोपियों को ताज की तरह सजाने की ललक ने इस कारोबार को भी बड़ा रूप दे दिया। अब जितने सिर उतनी टोपी, अफगानी टोपी, तुर्की टोपी, चाइना टोपी, लखनवी टोपी और भोपाली टोपियों का क्रेज यूथ पर चढ़ा दिखाई दे रहा है। आम दिनों की टोपियां अलग, रमजान के लिए कुछ खास पसंद और ईद के त्योहार की अलग तैयारी।
20 से 500 रुपए तक की टोपी
वीनस एंटरप्राइजेस रमजान के लिए खास टोपी कलेक्शन लेकर बाजार में है। इब्राहिमपुरा मेन मार्केट की इस शॉप के संचालक अमीन अहमद और जुनैद अहमद कहते हैं कि युवाओं में टोपियों को लेकर खासा उत्साह है। उनकी पसंद के मुताबिक कई वेरायटी की टोपियां मौजूद हैं। महज 20 रुपए कीमत से शुरू होने वाली ये टोपियां 500 रुपए तक की कीमत पर भी उपलब्ध हैं। त्योहारों और खास मांगलिक आयोजन में घर के बुजुर्गों द्वारा धारण की जाने वाली फर वाली टोपियां भी कम लेकिन डिमांड में रहती हैं। इसके अलावा मोटे गत्ते वाली खास टोपी के चाहने वाले भी एक अलग मुकाम रखते हैं।
एक सदका यह भी
आमतौर पर जल्दीबाजी में घर पर टोपी भूल आने, कामकाजी व्यस्तता में बिना टोपी के मस्जिद पहुंच जाने या किसी और वजह से टोपी न ला पाने वालों के लिए मस्जिद में भी टोपियां उपलब्ध रहती हैं। मस्जिद आने वाले नमाजियों में से ही कुछ लोग इनका इंतजाम कर देते हैं। मंशा ये होती है कि उनके खर्च से रखी गई टोपी से नमाज अदा किए जाने पर उन्हें भी नमाज से मिलने वाले सवाब में हिस्सा मिलेगा। आमतौर पर यह टोपियां कपड़े की या प्लास्टिक की होती हैं।
गले में गमछा, जेब मिसवाक
गले में एक खास तरह का गमछा डाले रखने की अदा भी भोपाल में बड़ी तादाद में पाई जाती है। संभवतः फिल्मों में मुस्लिम चरित्र को परिलक्षित करने बनाई गई इस वेशभूषा से इसकी शुरुआत हुई, जो धीरे धीरे प्रचलन में आ गई। इसी तरह मुंह की ताजगी और शुद्धता के लिए मिसवाल की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। तबलीगी जमात से जुड़े लोग इसका नियमित उपयोग करते हैं। बाजार में रमजान की खरीद फरोख्त के बीच टोपियों के साथ कलरफुल गमछों और मिसवाक की बिक्री भी जोरों पर दिखाई दे रही है।
यहां सजी हैं दुकानें
रमजान और ईद के मुख्य बाजार चौक, इब्राहिमपुरा, नदीम रोड पर टोपियों की बड़ी दुकानें आबाद हैं। जहां कई तरह की टोपियां मौजूद हैं। इसके अलावा इतवारा, जहांगीराबाद, काजी कैंप, बुधवारा, जुमेराती, लक्ष्मी टाकीज, शाहजहांबाद पर टोपियों की दुकानें सजी हैं। इसके अलावा शहर की मस्जिदों के आसपास भी टेबल लगाकर भी इनकी बिक्री की जा रही है।
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