बैंगलुरू: कर्नाटक झुग्गी विकास बोर्ड (कर्नाटक स्लम डेवलपमेन्ट बोर्ड) के आयुक्त श्री बी. वेंकटेश ने वंचित शहरी समुदायों के लिए भूमि अधिकारों, आवास एवं बुनियादी सुविधाओं पर दो दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि पिछले दो सालों में राज्य में एक लाख से अधिक झुग्गीवासियों को ज़मीन के अधिकार दिए गए हैं। नवम्बर 2020 में कर्नाटक सरकार ने झुग्गीवासियों को ज़मीन के अधिकार देने के आदेश पारित किए थे। श्री वेंकटेश ने बताया कि बोर्ड झुग्गीवासियों के लिए स्थायी जीवनशैली को सुनिश्चित करने पर काम कर रहा है और उनके अधिकारों को पूरा करने की आवश्यकता पर ज़ोर दे रहा है।
सम्मेलन ‘वेयर विल द सिटी-मेकर स्टे?’’ का आयोजन स्लम जन संगठन एवं एक्शन ऐड एसोसिएशन द्वारा 25 और 26 मई 202 को बैंगलुरू में किया गया। देश भर से 11 राज्यों के सिविल सोसाइटी लीडरों, नीति निर्माताओं और अकादमिकज्ञों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। हिमाचल प्रदेश सरकार के पूर्व अपर मुख्य सचिव श्री दीपक सनन ने मौजूदा मुद्दों पर रोशनी डाली। दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान इन मुद्दों के समाधान सुझाए गए। महाराष्ट्र हाउसिंग एवं एरिया डेवलपमेन्ट ऑथोरिटी, नासिक के पूर्व चेयरपर्सन श्री शिवाजी राव ढवाले ने सरकारी योजनाओं को इंटरलिंक करने की बात कही, ताकि सीमांत समुदायों के लिए आवास सुविधाओं को सुलभ बनाया जा सके।
शहरी ज़मीन अधिकारों पर काम करने वाले समुदाय आधारित संगठन- स्लम जन संगठन के लीडर श्री आइज़क अमृतथा राज ने ऐसे अभियानों एवं सामुहिक प्रयासों पर चर्चा की, जो ज़मीन के अधिकार सुनिश्चित करने में कारगर हुए हैं। उन्होंने कहा कि वंचित शहरी समुदायों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए इस दिशा में काफी करना बाकी है।
दो दिनों के दौरान देश भर के 11 राज्यों की टीमों ने अपनी रणनीतियों एवं संघर्षों के बारे में बताया, जो शहरी समुदायों के लिए ज़मीन, आवास एवं बुनियादी सुविधाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने में कारगर हो सकती हैं। लोगों से बताया कि किस तरह ये झुग्गियां विकसित हुईं और सौन्दर्यीकरण के नाम पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में रूकावटें आईं, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का भी इसमें योगदान रहा। आपदा के समय में अक्सर लोगों को शहर से दूर ले जाया जाता है, ये स्थान उनके घर एवं आजीविका के साधनों से बहुत दूर होते हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं होतीं। लोगों ने ऐसे कई उदाहरण दिए जहां शहरों का स्वामित्व कॉर्पोरेट संस्थाओं के पास है।
हालांकि सभी उम्मीदें खोई नहीं हैं। लोगों ने चर्चा के दौरान अपने अनुभव साझा किए, उन्हें उनके अधिकारों के बारे में बताया गया। हमें ऐसे उदाहरणों के बारे में सुनने को मिला, जहां लोगों को स्थानान्तरित किया गया था। सिविल सोसाइटी संगठनों ने जागरुकता कार्यक्रमों, क्षमता निर्माण कार्यशालाओं, सर्वेक्षणों एवं सरकारी एजेन्सियों के साथ इंटरफेसिंग का आयोजन किया। इस तरह के प्रयासों के परिणामस्वरूप कई राज्य ऐसी नीतियां एवं कानून लेकर आए, जो शहरी वंचित समुदायां के लिए ज़मीन एवं आवास अधिकार के मुद्दों को हल करने में कारगर रहे। ऐसे कुछ उदाहरण हैं- उड़ीसा लैण्ड राईट्स को स्लम ड्वेलर्स एक्ट 2017, पंजाब स्लम ड्वैलर्स (प्रॉपराइटरी राईट्स) एक्ट 2020, कर्नाटक सरकार की आदेश संख्याः एचडी 88 एसबीएम, 2020। इन सभी कानूनों और नीतियों ने शहरी क्षेत्रों में झुग्गीवासियों के ज़मीन अधिकारों को पहचाना, हालांकि इनमें कुछ अंतर रहे।
सम्मेलन का समापन इस विचार के साथ हुआ कि देश में हर तरह की बेदखली को रोकने की ज़रूरत है। हालांकि ऐसे मामलों में जहां अनुपयुक्त भूमि है, नीतियों को लागू करने से पहले पुनर्वास किया जाना चाहिए, इसके अलावा आवास के न्यूनतम मानकों पर राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा बनाना चाहिए। चूंकि ज़मीन और आवास स्थिर विषय नहीं हैं, हर राज्य और क्षेत्र की अपनी आवश्यकताएं होती हैं और राज्य सरकार द्वारा इस दिशा में कदम उठाया जाना सबसे ज़्यादा मायने रखता है। अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे ये हैं कि शहरी क्षेत्रों में कामगारों की कॉलोनियां स्थापित की जाएं, पुनर्वास कॉलोनियों में आजीविका का प्रबन्धन भी किया जाए और वंचित शहरी समुदायों के लिए ज़मीन के सुरक्षित अधिकार हों।
वंचित शहरी समुदाय के लिए ज़मीन के अधिकार तर्कसंगत होने चाहिए, ताकि वे मर्यादा और गरिमा के साथ जीवन जी सकें। ज़मीन के साथ-साथ अन्य बुनियादी सुविधाओं को भी उपलब्ध कराना ज़रूरी है जैसे आवास, जल एवं सेनिटेशन सुविधाएं, बिजली एवं अन्य युटिलिटी सेवाएं। ज़मीन और आवास को सिर्फ सम्पत्ति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि ये बुनियादी ज़रूरतें हैं, इसलिए गरिमामय जीवन और जीवनशैली के लिए मूल अधिकार हैं, जो न सिर्फ मौजूदा पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। देश भर के लोगों के लिए इन अधिकारों को सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
नंदिनी के, जो कर्नाटक में एक्शन ऐड एसोसिएशन के प्रयासों का नेतृत्व करती हैं, ने कहा, ‘शहरीकरण अचानक नहीं हुआ, यह राज्य की व्यवस्थित योजना है, जो आर्थिक विकास का अभिन्न हिस्सा है। हालांक शहरीकरण के साथ-साथ बहुत से लोगों को झुग्गियों में धकेल दिया जाता है। ये झुग्गीवासी आंखों की किरकिरी नहीं हैं बल्कि शहरों को बनाने वाले हैं। हमें शहरों के संचालन में उनक योगदान को समझना होगा। हमें शहरी वंचित समुदायों के लिए नीति निर्माण को प्राथमिकता देनी होगी और उनके अधिकारों को पहचान देनी होगी।’