Ranchi: रांची : पड़ोसी राज्य ओडिशा और छत्तीसगढ़ के खनन मॉडल का अध्ययन करने के लिए झारखंड का उच्चस्तीय दल इन दोनों राज्यों में जाएगा. राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने मीडिया से बातचीत में कहा कि झारखंड में देश का 40 फीसदी खनिज होने के बावजूद 11 से 12 हजार करोड़ रुपए का ही राजस्व मिलता है. जबकि ओडिशा को खनन से 50 हजार करोड़ रुपए राजस्व की प्राप्ति होती है. 2016-17 में ओडिशा को खनन से 4,900 करोड़ रुपए राजस्व की प्राप्ति हुई थी, जो 2021-22 में बढ़कर 50 हजार करोड़ हो गयी.
मंईयां सम्मान योजना के लिए 17700 करोड़ की जरूरत
राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि सरकार मईंया सम्मान योजना योजना सहित कई कल्याणकारी योजनाओं की लागत को कवर करने में जुट गई है. 1.28 लाख करोड़ रुपये के वार्षिक बजट के बावजूद, राज्य सरकार को अकेले मंईयां सम्मान योजना के लिए प्रति वर्ष कम से कम 17,700 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. एक महिला के लिए 2,500 रुपये की रकम भी काफी मायने रखती है. इसका मतलब है कि उसे अब सेटिरिज़िन या कैलपोल टैबलेट जैसी बुनियादी दवाओं का खर्च उठाने के लिए भीख नहीं मांगनी पड़ेगी. न ही उसे ‘टिकली-बिंदी’ जैसी छोटी चीजें खरीदने के लिए अपने पति पर निर्भर रहने की जरूरत है.
राज्य बनने के बाद से ग्रामीण विकास की नहीं बनीं योजनाएं
झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद से लगातार सरकारों में ग्रामीण विकास की कोई योजना नहीं बनाई गई हैं. कृषि उत्पादन बढ़ाने या कृषि-संबद्ध उद्योगों को बढ़ावा देने की दृष्टि का अभाव था, जो झारखंड में 80 फीसदी आबादी को सशक्त बना सके. पिछली सरकारों ने अस्पताल भवन तो बनाए लेकिन उन्हें संचालित करने के लिए आवश्यक मानव संसाधन उपलब्ध कराने में विफल रहीं. ग्रामीण अस्पतालों में कोई डॉक्टर, नर्स या दवाएं उपलब्ध नहीं हैं.
1.36 लाख करोड़ बकाए पर भी रखी अपनी बात
वित्त मंत्री ने केंद्र के पास 1.36 लाख करोड़ बकाए पर भी अपनी बात रखी. 1.36 लाख करोड़ के लंबित बकाए पर तर्क दिया कि राजनीतिक नैतिकता यही है कि केंद्र सरकार से निष्पक्षता से कार्य करने और धन जारी करने की मांग की जाएगी. हमारी संघीय शासन प्रणाली के तहत, केंद्र से अपना बकाया मांगने के लिए अदालत जाना तो कलंक होगा. केंद्र को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए. बातचीत की मेज पर आकर चर्चा करनी चाहिए कि वे झारखंड के लंबित फंड को कैसे जारी करने की योजना बना रहे हैं